________________ 142 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र अपने स्वामी के प्राणों की रक्षा के लिए पिंजड़े के साथ यह मुर्गा बड़े प्रेम से मुझे सौंप दीजिए। ज़िद मत कीजिए। इसमें आपकी और आपके पति की ही भलाई है।" अंत में गुणावली ने मंत्री के कथन और आग्रह पर बहुत गंभीरता से विचार किया और फिर मुर्गे को सोने के पिंजड़े के साथ मंत्री के हाथ में सौंप दिया। गुणावली बार बार अपनपात मुर्गे के कंठ का आलिंगन करते हुए कहने लगी, "हे नाथ, आप तो मुझे छोड़ कर दूर पर जा रहे हैं। आपकी इच्छा ही दूर देश में जाने की दिखाई देती है। लेकिन मैं तो अपने नायक जिंदा होते हुए भी अनाथ हो जाऊँगी। अब मेरा कोई आधार नहीं रहा है / में अपना दुख किससे कहूँ ? मैं अब अपने मन की बात किससे कहूँगी ? हे नाथ, आप जहाँ भी जाएँगे, मुझमत भूलिए / मुझ पर दया का भाव रखिए / मेरी ओर से आपके प्रति कोई अपराध हुआ तो मुझ क्षमा कीजिए / आप अपनी इस दासी को कभी मत भूलिए / अब आप मुझस फिर मिलेंगे? जिस दिन हमारा फिर से मिलन होगा, उस दिन मैं स्वयं को धन्य समयूंगी। अब जात जाते एक बार अपनी इस अभागिनी पत्नी पर स्नेह की दृष्टि डालिए। आपके विरह का भावना से मेरा हृदय तो भस्मोभूत हो रहा है। पुष्करावर्त मेघ से भी मेरे हृदय का दावानल शात नका हो सकेंगा। क्रूर दैव ने आपके ऊपर बड़े दुःख का पहाड गिराया है। ऐसा दु:ख ता शत्रु जीवन में भी कभी न आए। ऐसी अत्यंत दु:खमय अवस्था मे भी आपके पवित्र दर्शन करकर अपनेआपको धन्य मानती थी। लेकिन निर्दय दैव ने मुझसे मेरा यह सुख भी छीन लिया है। . हे नाथ, आप कृपा करके फिर से लौट आइए। आप ही मेरे जीवन हैं, मेरे प्राण हा 19 आपको इस स्थिति में अपने पास रख कर आप का पालन करने में आपके प्राणों का बड़ा भय है, इसलिए मैं मंत्रीजी के कहने से आपकीसुरक्षितता के लिए ही आपको नटराज को सापनक लिए तैयार हो गई हूँ।" सद्गतित कंठ से रोते-रोते इतना बोल कर गुणावली चुप ही गई / मुगे के पास म की तरह बोलने की शक्ति नहीं थी। और उधर मुर्गे की भाषा को समझने की शक्ति गुणावल के पास नहीं थी। इसलिए मुर्गे ने अपने पाँव के नाखून से भूमि पर लिख कर गुणावला र बताया, "हे प्रिये, तुझे बिल्कुल चिंता करने को आवश्यकता नहीं है। यदि मैं जिंदा रहू, ताह दोनों का फिर से मिलन होना संभव है। मैं शरीर से अवश्य तुझसे दूर देश में जा रहा हूँ लोक हृदय से मैं हरदम तेरे पास ही रहूँगा। P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust