________________ 56 . श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र __राजा की सांत्वनाभरी बातें सुन कर रानी कनकवती ने राजा से कहा, “हे प्राणनाथ, आपकी कृपा से मुझे किसी चीज की कमी नहीं है। किसी ने मेरी आज्ञा का उल्लंघन भी नही किया है / आप जैसा पति पाकर मैं तो यहाँ रोज़ नई-नई वस्तुओं का उपभोग करती हूँ। वैसे तो मैं सभी तरह से सुखी हूँ, लेकिन संतानहीनता से मुझे अपना सारा सुख दु:खमय लगता है। नि:संतान धनवान का मुखदर्शन प्रात:काल में अशुभ माना जाता है। सुपुत्र के होने से यश, किर्ति और वंशपरंपरा की वृद्धि होती है। सुपुत्र के बिना मुझे अपनी गोद और अपना महल दोनों शून्यवत् लगते हैं। . हे प्राणनाथ ! मैं इसी संतानहीनता की चिंता से इतनी उदास-निराश हो गई हूँ। मेरे दुःख का अन्य कोई कारण नहीं है। क्या करूँ, महाराज, अब मुझसे यह दुःख सहा नहीं जाता।" / राजा ने रानी को समझाया, “दैवाधीन वस्तुनि किं चितया ? अर्थात्, जो वस्तु भाग्य के अधीन है, उसकी चिंता करने से क्या होगा ? फिर तुम यह चिंता अपने चित्त से निकाल दो। मैं पुत्रप्राप्ति के लिए कोई मंत्रतंत्र यंत्र की आरधना करूँगा ! पुरुषार्थ करना मनुष्य के बस में हैं, लेकिन फलप्राप्ति भाग्याधीन है !" . “हे राजन्, इस तरह राजा ने अपनी कनकवती को दिलासा दिया और फिर मुझे बुलाया। राजा ने मुझसे सारी बातें सच कह दी। मैंने राजा को अष्टम तपस्या करके कुलदेवी की आराधना करने और उसे प्रसन्न कराके उससे पुत्रप्राप्ति के लिए प्रार्थना करने की सलाह दी / राजा को मेरी सलाह पसंद आई। इसलिए राजा ने अगले ही दिन से कुलदेवी की आराधना प्रारंभ की। स्वार्थ के काम में मनुष्य आलस्य या विलंब नहीं करता है। राजा की आराधना के फलस्वरूप तीसरे दिन कुलदेवी राजा के सामने प्रकट हुई। राजा की कुलदेवी के चरम जमीन से चार अंगुल ऊपर ही थे। उसके गले में सुगंधित, ताजा फूलों की माला थी। उसकी आँखें स्थिर थीं। उसका मुख अत्यंत प्रसन्न था और वह दिव्य वस्त्रालंकारों से विभूषित थी / देवी ने राजा से कहा, ___"हे राजन्, मैं तेरी आराधना से प्रसन्न हो गई हूँ / तू अपनी खुशी से वरदान माँग ले / मैं तेरी मनोकामना अवश्य पूरी कर दूंगी।" - कुलदेवी की ऐसी वात्सल्य और सहानुभूति से युक्त बातें सुन कर राजा मन में बहुत खुश हुआ और उसने कुलदेवी से प्रार्थना की. 'हे माता, तुम कुलवृद्धि करनेवाली हो / समृाड P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust