________________ 101 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र कपिला को जब प्रेमला से ऐसी कड़ी हाँटफटकार सुननी पड़ी, तो वह आगबगूला किर महल के बाहर आई और उसने जोरशोर से पुकारना, शुरू किया - "दौड़ो, दौड़ो, किसी नष्णात वैघराज को तुरन्त बुला लाओ। नई बहू के स्पर्श से कुमार कनकध्वज कोढ़ी हो गया / / उसके सारे शरीर में कोढ फैल गया है, राजकुमार की कंचनवर्णी काया जस्ते की तरह ष्टिभ्रष्ट हो गई है। अब मैं क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? अरे कोई आओ हमारी मदद करो।" कपिला जब यह 'नाटक' कर रही थी, तभी सुबह हुई, पूर्व दिशा में सूर्यनारायण उदित हुए। नगरजन अभी नींद से जाग कर प्रात:विधि परी करने को तैयार हो रहे थे कि कटिल कापला के रोनेचिल्लाने की आवाज सुन कर लोग क्या हुआ है यह जानने के लिए महल के वाहर इकट्ठा होने लगे। तमाशा देखने के लिए किसीको निमंत्रण थोड़े ही देना पड़ता है ? इतने पहले से ही बनाई गई योजना के अनुसार वहाँ हिंसक मंत्री, कनकरथ राजा, उसकी रानी और अन्य अनेक दर्शक भी आ गए वहाँ बड़ा हाहाकार मच गया। . कोढ़ी कनकध्वज कुमार की माँ जोरशोर से रोती-चिल्लाती हुई बोली, "हे पुत्र, तुझे यह क्या हो गया ? तेरी कंचनवर्णी काया अचानक ऐसी जस्ते जैसी कैसे हो गई ? पुत्र, मुझे तो ऐसा लगता है कि तेरी यह पत्नी कोई विषकन्या है !" राजा कनकरथ भी बोले, "हाय रे दैव ! मेरे पुत्र के अलौकिक रुप को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे। हे पुत्र, तेरा वहा अद्भुत सुंदर रूप कहाँ गया ? हे पुत्र, तेरी यह पत्नी तो मुझे तेरी शत्रु ही लगती है। यदि पहले मुझे यह बात मालूम होती, तो मैं अपने पुत्र का विवाह इस विषकन्या से कभी न करता।" राजा, रानी और कपिला को ये सारी बनावटी और मनगढन्त बातें प्रेमला चुपचाप खड़ी रह कर सुन रही थी। वह अपने मन में सोच रही थी कि इस समय यदि मैं सच्ची बात कहने जाऊँ तो वह अरण्य रुदन ही होगा / मेरी कही हुई सत्य बात को भी ये लोग झूठ मानेंगे। इसलिए कुछ समय ऐसे ही जाने देना ही ठीक है। आखिर विजय सत्य की ही होगी, क्योंकि कहा भी गया है कि 'सत्यमेव जयते!' महल के बाहर मचे हुए इस हाहाकार की बात प्रेमला के पिता राजा मकरध्वज के कानों तक बिजली की गति से पहुँची। राजा मकरध्वज दौड़ता हुआ घटनास्थल पर पहुँच गया। दामाद कनकध्वज कुमार के शरीर पर फैला हुआ कोढ़ देख कर वह दंग रह गया / राजा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust