________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 131 _ह? तूया मैं ? तू मुझे एक अबला समझ कर मुझसे युद्ध करने को आया, लेकिन तेरी गंदी मुराद मिट्टी में मिल गई। . हमरथ, तू निरंतर याद रख कि यदि तू हाथी है, तो मैं केसरी सिंह हूँ। यदि तो कबूतर 9 ताम श्येन (बाज) पंछी हूँ। यदि तू सर्प है, तो मैं नेवला हूँ। यदि तूने फिर कभी भूल कर भी = मेरे राज्य की सीमा में पाँव रखने की कोशिश की. तो मैं तझे जिंदा नहीं छोडूंगी। मेरे पुत्र चंद्र राजा ने तुझे कितनी बार जीवनदान दिया है, लेकिन मेरे पुत्र के किए हुए उपकारों को भूल कर - तू फिर युद्ध करने के लिए यहाँ आ पहँचा। ऐसा करते समय तुझे कोई शर्म नहीं आई ? क्या यही क्षत्रिय का कर्तव्य है ?" = इस तरह रानी वीरमती ने हेमरथ राजा को कडी डाँट-फटकार सनाई। वीरमती के मन = में राजा हेमरथ को आबापरी के कारगार में आजीवन कैद की सजा दिलाने को तीव्र इच्छा थी। लेकिन मंत्री सुबुद्धि ने रानी वीरमती को बताया, "हे राजमाता, किसी के साथ शश्वत शत्रुता रखने की अपेक्षा शत्रु को भी मित्र बना कर उसे अपनी आज्ञा में रखना अच्छा है।" वीरांगना वीरमती ने अपने मंत्री के आग्रह को स्वीकार कर लिया और तुरन्त कैदी राजा मरथ का बधनमुक्त करने का आदेश दिया। वीरमती की आज्ञा के अनसार कैदी हेमरथ को न सिर्फ बंधनमुक्त किया गया, बल्कि उसे बहुमूल्य वस्त्रालंकारों का दान भी दिया गया। राजा / हमरथ ने भी प्रसन्न होकर आभापुरी के साथ होनेवाली शत्रुता का त्याग किया और वीरमती की आज्ञा शिरसावंद्य मानना स्वीकार कर लिया। उसने निरंतर रानी वीरमती की आज्ञा का पालन करन की प्रतिज्ञा की। इससे खश होकर रानी ने हेमरथ का सारा राज्य उसे लौटा दिया और उसे सम्मान के साथ उसके देश की ओर रवाना कर दिया। दिन व्यतीत होते जा रहे थे। एक बार आभापुरी में विश्वविख्यात नटराज शिवकुमार आया। उसकी नाटकमंडली में उसकी पुत्री शिवमाला और अन्य पाँच सौ कलाकार थे। सबके सब नाटयकला में बहुत कुशल थे। सभी कलाकारों में शिवमाला सिरमौर थी। नाटकमंडली के प्रमुख शिवकुमार ने वीरमती की राजसभा में आकर रानी को प्रणाम कर कहा, "हे महारानीजी, यदि आप आज्ञा दें, तो हम अपनी नाटयकला दिखाएँगे।" वीरमती ने शिवकुमार से उसका नाम और वह कहाँ से आया है यह पूछा / इसपर नटराज शिवकुमार ने हाथ जोड़ कर कहा, “रानीजी, मेरा नाम शिवकुमार है। हम उत्तर दिशा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust