________________ 133 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र सुपारी पर खड़ी रही तो ऐसा प्रतीत हुआ मानो कोई हठयोगी नीचे मस्तक और ऊपर पाँव _करके समाधि लगाकर ध्यान कर रहा हो / ___शिवमाला फिर वहाँ से कूदी और अपना एक पाँव सुपारी पर रख कर वह गोलाकार घूमने लगी। ये सारे द्दश्य देख कर वहाँ उपस्थित दर्शकों ने शिवमाला की कला की दिल खोल कर प्रशंसा की। अंत में शिवमाला अलग-अलग रंग के पाँच वस्त्र लेकर बाँस पर चढ़ी और उसने वे पाच वस्त्र एक दूसरे में ऐसे गूंथ दिए कि उन में से एक अद्भुत पंचरंगी पुष्य निर्माण हो गया। शिवमाला की यह अद्भूत कलाकुशलता देख कर दर्शक उसपर मुग्ध हो गए। अब शिवमाला ऊँचे बाँस पर से रस्सी पकड़ कर झट से नीचे उतर आई। उसके पिता - शिवकुमार ने उसकी पीठ थपथपाई और उसे मन से आशीर्वाद दिया। नाटक का खेल समाप्त होने के बाद सभी कलाकार वाद्य बजाते हुए और राजा चंद्र की जयजयकार करते हुए वीरमती रानी के सामने पुरस्कार की माँग करने लगे। रानी वीरमती राजा चंद्र का नाम और उसके नाम की जयजयकार सुनकर बहुत नाराज हो गई। एड़ी से चोटी तक उसका सारा शरीर चंद्र राजा के प्रति ईर्ष्या की आग में जलने लगा। उसके मुंह पर से प्रसन्नता गायब हो गई / इसलिए यद्यपि कलाकार शिवकुमार बार-बार पुरस्कार के लिए प्रार्थना करता रहा, फिर भी उसने शिवकमार. शिवमाला और अन्य कलाकारों को कोई पुरस्कार नहीं दिया। रानी ने शिवकमार की ओर देखा भी नहीं. देखकर भी अनदेखा किया। _ इस घटना से नटराज शिवकुमार सोचने लगा कि शायद हमारी नाटयकला से रानी / वारमती का चित्त पूरी तरह प्रसन्न नहीं हुआ है। अन्यथा, उन्होंने हमें तुरन्त बड़ा पुरस्कार प्रदान किया होता। इसलिए नटराज शिवकुमार ने अपने कलाकारों की सहायता से नाटक के अनेक नएनए अद्भुत खेल दिखाए, आश्चर्यजनक कला प्रकट की। फिर चंद्र राजा की जयजयकार करता हुआ शिवकुमार अपनी नाटकमंडली के साथ बड़ी आशा से रानी वीरमती के पास पुरस्कार पाने की प्रार्थना करता हुआ आया / लेकिन उन्हें निराश होना पड़ा। वीरमती को कलाकारों की नाटयकला तो बहुत पसंद आयी थी, लेकिन उन कलाकारों ने चंद्र राजा की जो जयजयकार की थी, इससे वह बहुत नाराज़ हो गई थी। इसलिए कलाकारों को पुरस्कार देना तो दूर, रानी ने इन कलाकारों की ओर देखा तक नहीं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust