________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 105 / / इसलिए महाराज, हमारी प्रार्थना स्वीकार कीजिए और राजकुमारी को जीवनदान देकर हम अनुग्रहीत कीजिए / महाराज, पुत्री चाहे सुशीला हो, चहि कुशीला, लेकिन पिता उसके अपराध के लिए उसे क्षमा करता ही है। विदेशी दुर्जनों की बातों का विश्वास कर के आप अपनी राजपुत्री पर अन्याय मत कीजिए. उसके प्राण मत लीजिए, महाराज!" महाजन से राजा को समझाने की भरसक कोशिश की, लेकिन व्यर्थ ! राजा की क्रोधाग्नि तनहा हुई / निराश होकर महाजन लौट गया। फिर क्रोधांध राजा ने चंडालों को फिर से सापा, "इस दुष्ट पुत्री को इसी क्षण श्मशान में ले जाकर उसका काम तमाम कर दो। मैं इस दुष्टा का मुँह भी नहीं देखना चाहता हूँ। जाओ।" कम के कोप को शांत करने की शक्ति जहाँ इंद्र में भी नहीं होती, वहाँ बेचारे राजा या महाजन की क्या बिसात ? राजा की आज्ञा पाते ही चंडाल प्रेमला को लेकर तेजी से श्मशान की ओर चल पड़े। सारे नगर में बड़ा हाहाकार मच गया। श्मशान में पहुँचने के बाद चंडालों ने हाथ जोड़ कर प्रेमला से कहा, "हे राजकुमारीजी, सापकापताजी ने हमें यहीं इसी समय आपका वध करने का आदेश दिया हैं। आदेश का पालन तो हमें करना ही पड़ेगा। हमारे इस जीवन और व्यवसाय को धिक्कार हैं। पूर्वजन्म में संचित किए पाप के उदय से हमें यह निंध कर्म करना पड़ रहा है। इस जन्म में फिर से परवधरूपी कार्य रह, अगले जन्म में नरकादि की दुर्गति में न जाने कितना दुख भोगना पड़ेगा ?" यहाँ यह दखने को मिलता है कि उस काल में आर्यदेश के चंडाल में भी पालभीरुता और परलोक की 'पता कितनी बड़ी मात्रा में थी। आज के तथाकथित विज्ञानयुग में मानवजाति में यह पापभीरुता और परलोक की चिंता बहुत कम मात्रा में देखने को मिलती है। मनुष्य भले ही परिवार, देश चा शरार के लिए पाप करे, लेकिन किए हुए पाप का सारा फल नरकादि गति में उसको अकेले को भी भोगना पड़ता है। चंडालों ने प्रेमला से आगे कहा, “हे बहन, यह पेट ही सारे पापों का कारण है . यह पापी पट ही मनुष्य से सारे पापकर्म कराता है। इसलिए राजकुमारीजी, हमारे इस अपराध के लिए आप हमें क्षमा कीजिए। आप अपने इष्टदेवता का स्मरण कीजिए और हमें अपना कर्तव्य पालन करने की आज्ञा दीजिए।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust