________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 121 प्रेमला ने अपने पिता का उपदेश ध्यान से सुना और फिर वह योगिनी को अपने साथ ले गई और उसने बडी श्रद्धा के भाव से योगिनी को भोजन कराया। भोजन के बाद योगिनी अपने का आर चली गई / प्रेमला पहले की तरह परमात्मा की भक्ति करने में अपना समय व्यतीत करने लगी। वीरमती का भीषण छलकपट इधर आभानरेश चंद्र को मुर्गा बने हुए आभापुरी में लगभग एक महीना बीत गया / आभापुरी के नगरजनों को एक महीने तक अपने प्रिय राजा के दर्शन नहीं मिले, इसलिए सारी नगरा में कोलाहल मच गया। अभी तक लोगों को पता नहीं था कि राजमाता वीरमती ने राजा कामुगा बना दिया है। आभानरेश की पत्नी रानी गणावली ने भी अपनी सास के डर से अपने मुर्गा बने हुए पति को अपने महल में छिपा कर रखा था। . एक बार सभी नगरजन मिल कर मंत्री के पास जा पहँचे और उन्होंने मंत्री से प्रार्थना की, मात्रराज, कृपा करके हमें राजा के दर्शन कराइए। पिछले एक महीने से हमने महाराज को नहीं देखा है। इसलिए उनके दर्शन करने के लिए हम सब अत्यंत उत्सुक हैं। आपने महाराज के दर्शन हमें नहीं कराए, तो हम सब यह देश छोड़ कर चले जाएँगे, आभापुरी में नहीं रहेंगे। हाथी, मूर्ति से रहित मंदिर, बिना पानी की नदी और चंद्रमा के बिना रात्रि शोभा नहीं देती है, वैसे हो राजा के बिना राज्य भी शोभित नहीं होता है. अच्छा नहीं लगता है। सारी प्रजा के आधार, रक्षक और शरण राजा ही होते हैं। यदि राज्य मे राजा ही न हो तो फिर उस राज्य में - राजनगरी में निवास करने के क्या लाभ ? इससे तो वन में निवास करना अच्छा है !" मत्रा ने नगरजनों की कही हुई सारी बातें शांति से सुनीं और उन्हें दिलासा देते हुए मंत्री ने कहा, “हे नगरजनो, चिंता मत करो। तुम सबको अपनी प्रिय आभापुरी छोड़ कर जाने की कोई आवश्यकता नहीं है / वैसे मैंने भी महाराज को पिछले एक महीने से नहीं देखा है। इसलिए तुम सबके समान मेरा मन भी महाराज के दर्शन करने को अत्यंत लालायित है / मैं अभी राजमाता वीरमतीजी के पास जाता हूँ और उनसे पूछ लेता हूँ कि 'हमारे महाराज कहाँ है ? कहाँ गए हैं ? वे पिछले एक महीने से दिखाई क्यों नहीं दे रहे हैं ?' राजमाता से इन प्रश्नों के उत्तर जानकर मैं लौट आऊँगा और फिर तुम्हें हमारे महाराज के संबंध में समाचार दूंगा। इस समय तुम सब अपने अपने घर जाओ। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust