________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 97 __ लागी के बीच चल रही इस चर्चा की खबर कुछ ही क्षणों में वीरमती तक पहुँची। वह काधाविष्ट होकर दौड़ती हुई वहाँ आई जहाँ गुणावली मुर्गे के पिजडे के साथ बैठी थी और उसने Sोटफटकार सुनाते हुए गुणावली से कहा, "हे दुष्टा, क्या तू आज यहाँ लोगों को कौतुक दखाने को बैठी है ? यदि तू अपने इस पति मुर्गे को जिंदा देखना चाहती है तो अभी, इसी वक्त पहा स उठ कर और इसे ले कर अंदर चली जा। घर की बात इस तरह सबके सामने प्रकट करते हुए तुझे शर्म नहीं आती ? याद रख, आज मैंने तेरा यह अपराध सहन कर लिया है, लेकिन फिर से तूने ऐसा अपराध किया तो मैं सहन नहीं करूँगी, समझी ? तू शायद सोचती होगी कि तू ऐसा करेगी, तो लोग मेरी निंदा करेंगे, लेकिन में लोगों की निंदा से नहीं डरती हूँ। क्या तू दावानल को अंजलि भर पानी से बुझाना चाहती है ? शायद तू यह भी सोचती होगी कि तू ऐसा करेगी, तो तेरी सास का नगरी में बहुत निंदा होगी और लोगों की निंदा से डर कर तेरी सास तेरे मुर्गा बने हुए पति का फिर मनुष्य बना देगी, लेकिन तेरी यह गंदी इच्छा कभी सफल नहीं हो सकेगी, यह बात बराबर ध्यान में रख ले। याद रख कि तू सिर्फ अपने प्रिय मुर्गे को उत्तम भोजन दे सकती है, उसमें मैं बाधा नहीं डालूगी। लेकिन यदि तू फिर कभी ऐसे महल की अटारी में तेरे पति मुर्गे को लेकर बैठी हुई -दखाई दी तो मैं तुझे भी मुर्गी बना डालूँगी। फिर मुझे दोष मत देना। अगर तू अपने पति मुर्गे के साथ जिदा रहना चाहती है, तो मेरी आज्ञा का ध्यान से पालन करती जा, अन्यथा, न तेरे मुर्गे की न तेरी खैरियत है / जा, चली जा।" वीरमती के तीखे और तीक्ष्ण वाग्बाणों से गुणावली का हृदय बिंद्ध हो गया। सिसकससक कर रोती हुई वह सोने का पिंजड़ा लेकर अपने महल में लौट आई। वीरमती के डर के कारण उसने फिर से अपने पति मुर्गे को लेकर महल की अटारी में बैठना बंद कर दिया। पति का आशा के आश्रय से रहनेवालो गुणावली को पति के बिना सारा जगत् शून्यवत् लगता या। इसलिए अब उसे भोजन-भूषण भी अच्छा नहीं लगता था। जीव को भगवान के बिना यह संसार शून्य कब लगेगा ? जिस मनुष्य के मन में भगवान के प्रति प्रेमभाव उत्पन्न होता है, उसे मिष्टान्नों का भोजन और मनभावन उपभोग्य चीजें और अलंकार आदि नहीं भाते हैं। जिसको भगवान अच्छा लगता है, उसको भोग-भोजन-भार्या-भूषण अच्छे नहीं लगते हैं। जिसे 'जिन' भाते हैं, उसे 'जगत्' नहीं भाता है। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust