________________ 76 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र आभापुरी के चंद्र का, संयोग ही से साथ है। इस अचानक प्रेम का, निर्वाह किसके हाथ है ? बेचारी राजकुमारी प्रेमलालच्छी उसके विवाह के बारे में घटित सारी घटनाओं से अनजान थी, इसलिए आभानरेश की बताई हुई समस्या का सही अर्थ वह नहीं समझ सकी। इसलिए उसने आकाश और चंद्रमा के संयोग की बात समझकर चंद्रराजा की बताई हुई समस्या का उत्तर इस प्रकार दिया - आकाश से इस चंद्र का, जिसने मिलाया साथ है। उस पथ का निर्वाह करना, बस उसीके हाथ है। राजकुमारी का दिया हुआ उत्तर सुनकर चंद्रराजा ने सोचा कि यह प्रेमलालच्छी चतुर होते हुए भी मेरी सांकेतिक बात को समझ नहीं सकी। इसलिए इसे स्पष्ट शब्दों में नाम-ग्राम बताना उचित होगा। इसलिए बहुत देर तक पाँसों का खेल प्रेमलालच्छी के साथ खेलते-खेलते अंत में अपना अभिप्राय प्रकट होते हुए चंद्र राजा ने कहा - पूर्व दिशा में आभानगरी, चंद्र नृपति का राज्य जहाँ / क्रीड़ा योग्य भवन हैं उनके, पाँसे भी है रम्य वहाँ // वैसी यहाँ सजावट हो तो, जी अपना बहलायें हम / नीरस खेल में कही सुंदरी, कैसे रात बिताएँ हम ? राजा चंद्र के मुख से ऐसी बातें सुन कर प्रेमलालच्छी विचारसागर में डूब गई और अपने मन में विचार करने लगी कि मेरे पतिदेव ऐसे आनंद के अवसर पर ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं ? ये तो सिंहलपुरी से मेरा पाणिग्रहण करने आए हैं, फिर सिंहलपुरी के स्थान पर ये आभापुरी और वहाँ के भवनों की प्रशंसा क्यों करते जा रहे हैं ? ऐसा लगता है कि सिंहलपुरी के राजकुमार के स्थान पर आभानरेश ही मुझसे विवाह करने को आए हैं / इसीलिए उनकी बातें बड़ी रहस्यमय लग रही हैं / अन्यथा, वे ऐसी अप्रसंगिक लगनेवाली बातें क्यों करते ? लम्बे समय तक प्रेमलालच्छी के साथ पाँसों का खेल खेलने के बाद खेल पूरा कर चंद्रराजा भोजन करने के लिए बैठा / भोजन करते-करते चंद्र राजा ने पीने के लिए पानी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust