________________ 82 श्री चन्द्रराजर्षि च लाए ? शास्त्रों में चारण मुनि को छोड़ कर ऐसी द्रुतगति अन्य किसी की भी नहीं है, समझ पंछी भी आकाश में ऊँची उड़ान भर कर अधिक से अधिक बारह योजन दूर ही जा सकते हैं जहाँ वायु जा सकता है वहाँ जाने की शक्ति मुझ में भी है। इसके साथ ही अन्य पुरुषों के लि असाध्य सा होनेवाला कार्य मैं बहुत कम प्रयास से करने में समर्थ हूँ।" वीरमती ने ऐसी आत्मप्रशंसा गुणावली के सामने की। गुणावली अपनी सास की ऐ मिथ्या बड़प्पन की बातें सुन कर बोली, “हे पूज्य माताजी आपका कहना बिलकुल सच है आपकी शक्ति के बारे में मेरे मन में बिलकुल आशंका नहीं रही है। उसका प्रमाण तो = प्रत्यक्ष देख ही लिया हैं / लेकिन माँजी, विमलापुरी में आपने जिसे कनकध्वज राजकुमार म लिया, वह आपका भ्रम है। वह राजकुमार कनकध्वज नहीं था, बल्कि आपका पुत्र ही था। * आपके पुत्र ने ही राजकुमारी प्रेमला से विवाह किया है। इस संबंध में मेरे मन में बिलकुल संदै नहीं है। यदि मेरी कही हुई बात झूठ निकले तो आप मुझे सख्त से सख्त सजा दे सकती है। मेरा तिरस्कार कर सकती है।" गुणावली की बात सुन कर मुँह बनाते हुए वीरमती ने कहा, “अरी बहू, क्या तू मुझ भी अधिक चतुर है ? जो बात मेरी समझ में नहीं आई, क्या वह बात तूने जान ली है ? क्या मुझ से बढ़ कर सयानी है ? तू व्यर्थ ही आशंकाएँ उठा रही है। बस, तू तो जिस रूपवान् पुरस् को देखती है, उसे चंद्र ही समझ लेती है। तेरी नजर को तो सब चंद्र चंद्र ही दिखाई देता है लेकिन बहू, देख, वह तेरी मूर्खता हैं इसलिए मेरी बात पर विश्वास रख ! मामा का घर का तक होता हैं ? जब तक दिया जलता है तब तक ही न ? वैसे ही आभापुरी में राजमहल पहुँचने के बाद तुझे पता चल जाएगा कि किसकी बात सच है ? तेरी या मेरी ? इस समय अ तू व्यर्थ का विवाद बंद कर दे।" आम्रवृक्ष के कोटर में बैठा हुआ चंद्रराजा सास-बहू का यह वार्तालाप ध्यान से सुन रह था / आम्रवृक्ष आकाशमार्ग से उडता हुआ आभापुरी के उद्यान में उतर गया / उद्यान में पहु कर वह स्थिर हो गया। फिर सास और बहू दोनों वृक्ष की डाली पर से उतर पडी और निकः में होनेवाली बावड़ी में शरीरशुद्धि के लिए चली गई। अवसर पाकर चंद्रराजा भी धीरे से वृद्ध के कोटर मे से बाहर निकल आया और तुरन्त महल में चुपचाप पहुँच कर अपने पलग प रजाई ओढ़ कर सो गया। सास और बहू दोनों हँसते-हँसते महल में प्रवेश कर गई और अप अंत:पुर में आ पहुँची। वीरमती ने गुणावली के हाथ में कनेर की छड़ी देखकर कहा, “बहू, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust