________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 71 निकट आता गया। बरात लेकर प्रस्थान करने से पहले हमने राजकुमार कनकध्वज को वस्त्रों से चारों ओर से आच्छादित शिविका में सजाए हुए गजराज पर बिठाया और फिर ताशो बाजे के साथ विमलापुरी की ओर प्रस्थान किया। सौभाग्य से हमारी यह कपटलीला किसी की समझ में नहीं आई। हम लोगों ने पूरे ठाटबाट से विमलापुरी में प्रवेश किया। राजा मकरध्वज ने हम सब का बहुत शानदार स्वागत किया। राजा ने बरात के निवास के लिए पहले से ही सुंदर प्रबंध कर रखा था। हमें एक भव्य महल निवास के लिए दिया गया था। अनेक दिनों तक यहाँ रह कर हमने राजा मकरध्वज के आदरातिथ्य का उपभोग किया / इन दिनों में हमारे सामने कोई कठिनाई उत्पन्न नहीं हुई। लेकिन हे आभानरेश, आज तो विवाह का मुहूंत निकट आ गया है / अब हमारी लाज रखना सिर्फ आप ही के हाथ मे हैं। आप बुद्धिनिधान और परोपकारी राजा हैं / मैंने सारी हकीकत यथातथ्य रूप में आपके सामने अथ से इति तक कह सनाई है / मुझे पूरी आशा है महाराज, कि आप इस कठिन प्रसंग में हमारी सहायता करेंगे।" / इस पर राजा चंद्र ने हिंसक मंत्री से कहा, "हे मंत्री, यह सारा प्रपंच तुम लोगों ने ही जानबूझकर खड़ा किया है। अब तुम लोग इस षड़यंत्र में मुझे भी धसीटना चाहते हो, लेकिन मुझे यह बिल्कुल उचित नहीं लगता है।" हिंसक मंत्री ने आभानरेश की बात पर कहा, “हे राजन, कुलदेवी के आदेशानुसार कार्य करने में हमें या तुम्हे कोई दोष नहीं है। अब कृपा कीजिए और समय बिगाड़े बिना हमारी प्रार्थना स्वीकार कर हमारी चिंत्ता दूर कीजिए।" आभानरेश ने हिंसक मंत्री की बात सुन कर कहा, "राजकुमारी के साथ विवाह करके बाद में वह कन्या तुम्हारे कोढी राजकुमार को सौंप देना बाज़ार में से बकरी खरीद कर, कशाई को सौंप देने के समान निर्दय कार्य है। यह ऐसा विश्वासघात पूर्ण काम है जैसे कमर में रस्सी बाँधकर कोई किसीको किसी कार्यवश गहरे कुएँ में उतार कर फिर उपर से रस्सी काट दें ! इसलिए तुम ऐसा अनुचित कार्य करने के लिए मुझसे बार बार बिनती मत करो। मैं ऐसा लोकनीति के विरूद्ध, सदाचार से रहित और दुर्गति का मार्ग बताने वाला काम हरगीज़ नही करूँगा। चाहे दु:ख क्यों न आए, जहर क्यों न खाना पड़े, मूर्खता क्यों न करनी पड़े, बीमारी क्यों न आए, भले ही मृत्यु ही क्यों न आ जाए, लेकिन सद्गति को सुलगा देनेवाला यह सदाचार रहित काम अच्छा नहीं है।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust