________________ . - - श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र / .. राजा के घर पुत्र का जन्म होने का समाचार सारी नगरो में वायु की गति से फैल ... सारी प्रजा ने राजपुत्र के जन्म का आनंद मनाने के लिए घरों के दरवाजों पर वंदनवार सारी नगरी सजाई गई / नगरजनों ने राजसभा में आकर राजा को प्रणाम करके = दिए / राजा ने भी प्रतिदान में नगरजनों को यथोचित सत्कार-पुरस्कार देकर सभी को किया / पुत्रजन्म के बाद बारहवें दिन राजपुत्र का नामकरण किया गया / राजपुत्र क 'कनकध्वज' रखा गया। स्वकर्म के उदय से कनकध्वज अपने जन्म के दिन से ही कुष्ट परेशान हो गया। राजपुत्र की कुष्ठ रोग की पीडा को मिटाने के लिए राजा ने खानगी में अनेक ब .. और कुशल राजवैद्यों को बुलाया, उपचार कराया। अनेक मांत्रिकों को बुला कर मंत्रप्रय कराए। लेकिन पापकर्म के उदय के फलस्वरूप राजकुमार को इन भिन्न-भिन्न उपायों में लाभ न पहुँचा / उसका कोढ़ बढ़ता ही रहा। कर्मगति रोकने में कौन समर्थ है ? . राजा ने कनकध्वज की कोढ की पीड़ा मिटाने के लिए जो-जो उपाय किए, है विफल सिद्ध हुए। कर्म अनुकूल हो तो एक चुटकी राख लगाने पर कोई बड़ी बीमारी न सकती है, लेकिन कर्म प्रतिकूल हुआ तो लाख रुपयों की दवा भी कारगर सिद्ध नहीं बीमारी बनी रहती है। सर्वत्र भाग्य ही प्रबल होता है / भाग्य अनुकूल हो, तो उल्टा द सीधा पडता है, लेकिन भाग्य प्रतिकूल हो, तो सीधा दाँव भी उल्टा पड़ता है। शास्त्रकरों ने भी है - कर्मणां गति विचित्रा अर्थात्, कर्म की गति बड़ी विचित्र होती है। रत्नों की खान में जैसे निरंतर रत्न बढ़ते जाते हैं, वैसे ही एक गुप्त भूमिग राजकुमार का बडी सावधानी से लालन-पालन किया जा रहा था / कुमार के पास जा अनुमति सिर्फ कपिला नाम की उपमाता (दाई) को थी / राजा ने ही कपिला को कुमा देखमाल का काम सौंपा था और कपिला यह काम बडे प्रेम से करती थी। ... नगरजनों ने राजकुमार को उसके जन्मसमय से कभी देखा नहीं था। इसलिए नग के मन में राजकुमार को देखने की बडी प्रबल इच्छा होती थी। इसलिए कई बार नग राजकुमार के लिए उत्तम वस्त्र और अलंकार लेकर राजसभा में आते थे। और राज राजकुमार के दर्शन कराने के लिए प्रार्थना करते थे। लेकिन राजकुमार की कोढ की बीमा पोल खुल जाने के भय से राजा सभी नगरजनों को निराश कर लौटा देता था। 'राजह P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust