________________ - श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र - - दिल टस से मस नहीं हुए, राजा और मंत्री अपनी ही बात पर डठे रहे। उन्होंने पहले =:: प्रार्थना का स्वर बनाए रखा। - आखिर चंद्र राजा हिंसक मंत्री को एकांत में ले गया और उसने मंत्री से पूछा, “मंत्री सचमुच बात क्या है यह मुझे बिना कुछ छिपाए आदि से अंत तक बता दीजिए / यदि अ * सच्चे अंत: करण से सबकुछ सच-सच बता दिया, तो शायद अब भी आप का काम बन सब - बताओ, ऐसा अनुचित विचार तुमने क्यों किया ? मुझसे कुछ भी मत छिपाओ।" - चंद्र राजा की बात सुन कर हिंसक मंत्री ने कहा, "हे राजन्, सिंघ नाम के देश में अत्यंत रमणीय सिंहलपुरी है। यहाँ जन्म लेनेवाले लोग भाग्यवान् समझे जाते है / इस न के राजा सिंहल हैं। इस राजा की रानी का नाम कनकवती है / मैं सिंहल राजा का अत विश्वत सेवक हिंसक नाम का महामंत्री हूँ। राज्य संचालन का लगभग सारा काम मेरे अ है। मेरी आज्ञा के बिना सिंहलनगरी में पत्ता भी नहीं हिल सकता है। हमारे महाराज के प विशाल मात्रा में चतुरंग सेना और सभी प्रकार का वैभव है। प्रजा धनधान्य की दृष्टि मे बिल सुखी है। इस सिंहलनगरी में गरीबी का नामोनिशान नहीं है। इस नगरी में अनेक विद्वान पनि रहते हैं। यहाँ बसनेवाली स्त्रीयाँ देवांमनाओं के समान सुंदर अत्यंत सुशील पतिभक्तिपरान और शांत प्रकृति की हैं। एक बार हमारी महारानी कनकवतीजी अपने महल की अटारी में बैठी हुई पुत्र के दि चिंता करने लगी। राजारानी को अन्य सभी प्रकार का सुख था, लेकिन संतान की कमी रानी संतान के अभाव में अत्यंत शोकमग्न होकर पानी से बाहर निकाली गई मछली की त तिलमिला रही थी। उसकी आँखों में से आँसुओं की झड़ी-सी लग गई थी। आँशुओं के ब रहने से रानी के शरीर पर के वस्त्र भी तरबतर हो गए। __. अचानक अपनी स्वामिनी की ऐसी अवस्था देख कर उसके साथ जो दासी थी, वह ब. घबरा गई। उसने दौड़ते हुए जाकर राजा को रानी की अवस्था का समाचार सुनाया। र समाचार मिलते ही रानी के पास चला आया। उसने रानी कनकवती को समझाते हुए कहा, चंद्रमुखी, तुम आज इतनी शोकातुर क्यों बन गई हो ? क्या किसी ने तुम्हारी आज्ञा का उल्लं किया है ? यदि ऐसा हुआ हो, तो मुझे उसका नाम बता दो, मैं अपराधी को कड़ी-से-कड़ी दूंगा।" - P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust