Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 13
________________ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन वर्गों में विभाजित कर सकते हैं- नियुक्तियाँ, भाष्य, चूर्णियां, संस्कृत वृत्तियां और लोकभाषा में रचित व्याख्यायें। नियुक्तियाँ और भाष्य जैनागमों की पद्यबद्ध प्राकृत टीकाएँ हैं जबकि चूर्णियां प्राकृत-संस्कृत मिश्रित गद्य शैली में लिखी गयी हैं। नियुक्तियाँ आचार्य भद्रबाहु द्वितीय की रचनाएँ हैं जो कि प्रसिद्ध ज्योर्तिविद् वराहमिहिर के सहोदर भाई थे।६ चूर्णियां और संस्कृत आदि वृत्तियां भाष्य के बाद की रचनाएँ हैं और इनकी रचना कई आचार्यों ने अलग-अलग समय में की है। चूर्णिकारों में जिनदासगणि महत्तर (सातवीं सदी ई. का उत्तरार्ध) और संस्कृत टीकाकारों में हरिभद्र (आठवीं सदी ई. का पूर्वार्द्ध) विशेष महत्त्व के हैं। नियुक्तियों का मुख्य प्रयोजन आगमों के पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करना है जबकि भाष्यों का प्रतिपाद्य विषय उन शब्दों में छिपे हुए गूढ अर्थ को अभिव्यक्त करना है। अब तक केवल दो ही भाष्यकारों के नाम ज्ञात हुए हैंजिनभद्रगणि और संघदासगणि। विशेषावश्यकभाष्य और जीतकल्पभाष्य जिनभद्रगणि की रचनाएँ हैं जबकि बृहत्कल्पभाष्य एवं पंचकल्पभाष्य संघदासगणि की कृतियाँ हैं। संघदासगणिकृत दो भाष्यों में केवल बृहत्कल्पभाष्य ही प्रकाशित है। संघदासगणि के माता-पिता, जन्म-स्थान, शिक्षा-दीक्षा, समय आदि के सम्बन्ध में कोई सूचना नहीं मिलती है लेकिन भौगोलिक साक्ष्य से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रस्तुत भाष्य पश्चिम भारत में लिखा गया और भाष्यकार संघदासगणि इसी क्षेत्र के रहने वाले थे क्योंकि इस भाष्य में इस क्षेत्र के बहुत से देशों एवं नगरों यथा आनन्दपुर, उज्जैनी, द्वारिका, प्रभास, भृगुकच्छ, लाट, सुराष्ट्र, भिल्लमाल, मरु, प्रतिष्ठान आदि का उल्लेख हुआ है। इसके अतिरिक्त मेरू, अष्टापद, हिमवन्त, सम्मेत आदि महत्त्वपूर्ण पर्वतों को छोड़ जिन अन्य पर्वतों का उल्लेख हुआ है उनमें जाने-पहचाने नाम केवल अर्बुद, आबू और उजयन्त (गिरनार, जूनागढ़) के हैं जो इसी क्षेत्र में स्थित हैं। परिस्थितिजन्य साक्ष्य से भी इसी बात का समर्थन होता है। क्योंकि बृहत्कल्पभाष्य में भृगुकच्छ (भड़ौच) के बौद्ध श्रावकों द्वारा जैन साध्वियों के अपहरण का उल्लेख है।" संघदासगणि नाम के दो आचार्य हुए हैं। एक ने बृहत्कल्पभाष्य और दूसरे ने वसुदेवहिण्डी प्रथम खण्ड की रचना की है। भाष्यकार संघदासगणि का विशेषण क्षमाश्रमण है जबकि वहुदेवहिण्डी के रचयिता 'वाचक' शब्द से विभूषित हैं। लेकिन उनके काल के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है। जहाँ तक भाष्यकार

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