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दृष्टकष्ट
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दृष्टिविषः
वाला।
० निर्धारित, निर्णीत, निश्चित, नियत किया गया। 'दृष्टः (जयो० २५/४३, २४/८६, ३/६४, २७/७३, २७/३६, सुहानोकहको विशाल' (सुद० २/१५)
दृष्टान्तोऽलंकारः (जयो० २७/६, वीरो० १/८) जयो० दृष्टकष्ट (वि०) देखे गए कष्ट अनुभूत दु:ख।
३/३७, ३/४३, ७/४९, ७/३६) दृष्टकूट (नपुं०) गूढ प्रश्न, रहस्यमय प्रश्न।
दृष्टान्त-निदर्शनं (नपुं०) साध्य-साधन का निर्दशन उदाहरण दृष्टदोषः (पुं०) आलोचन दोष, जो दोष दूसरे के द्वारा देखा का निरूपण। (जयो० ७/७९) नीतिमीतिमनयो नयन्नयं
गया, उसकी आलोचना गुरुके समीप करना। 'यद् दृष्टं दुर्मतिः समुपकर्षति स्वयम्' उल्मुकं शिशुवदात्म्नोऽशुभं
दूषणस्यान्य दृष्टस्यैव प्रथा गुरुः' (अनगार धर्मा० ७/४१) योऽह्नि वाञ्छति हि वस्तुतस्तु भम्। (जयो० ७/७९) दृष्टप्रत्यय (वि०) विश्वास रखने वाला, विश्वस्त।
दृष्टान्ताभासः (पुं०) साध्य से रहित दृष्टान्त। तदाभासाः दृष्टमात्रं (नपुं०) दर्शनमात्र। 'यो दृष्टमात्रेण हरज्जनीनाम्' साध्यादिविकलादयः (न्याय वि० २/२११) (वीरो० १३/१८)
दृष्टिः (स्त्री०) [दृश्+क्तिन्] १. नेत्र, नयन, अक्षिा (जयो० दृष्टरजस् (स्त्री०) रजस्वला वाली कन्या।
११/४) २. देखना, अवलोकन, निरीक्षण, समीक्षण। ३. दृष्टवंत (वि०) देखा गया। (सुद० १/५)
जानना, समझना, ज्ञान करना, मानना। पर्याय एवास्य बभूव दृष्टव्यतिकर (वि०) अनिष्ट को समझने वाला, कष्ट को दृष्टिः (सम्य० ५३), ४. विचार, आदर, सम्मान। (सम्य०पृ० भांपने वाला।
५४) श्रद्धावान (सम्य १२२) दर्शन (सम्य० १२१) दृष्टादृष्टं (नपुं०) किसी के देखा जाने पर दृष्ट होना। दृष्टिक (वि०) दार्शनिक, दर्शनशास्त्र का ज्ञाता, जानने वाला। दृष्टादृष्टवन्दनक (वि०) किसी के देखे जाने पर वन्दना करने कर्म यत्सतुषमेति सृष्टिकः शोधयन्ननुकरोति दृष्टिकः।
(जयो० २/१३) दृष्टान्त (पुं०) उदाहरण, निर्देशन, किसी का अर्थ स्पष्ट हो, दृष्टकृतं (नपुं०) स्थलपा। व्यावहारिक।
दृष्टिक्षेपः (पुं०) दृष्टि डालना, अवलोकन करना। ० साध्य और साधन धर्मों का सम्बन्ध जानना।
दृष्टिगुणः (पुं०) तीर चलाना, निशाना साधना। 'सम्बन्धो यत्र निर्जातः साध्यसाधनधर्मयो स दृष्टान्तः (न्याय दृष्टिगोचर (वि०) दृश्य, दिखाई देने वाला, अवलोकन करने विनश्चय २/११) दृष्टमर्थमन्तं नयतीति दृष्टान्तः
योग्य। 'अतीन्द्रियप्रमाणदृष्टं संवेदन-निष्ठां नयतीत्यर्थः।
दृष्टिदानं (नपुं०) प्रसाद। (जयो०वृ० १०/११६) कृपा दृष्टि। ० व्याप्ति-सम्प्रतिपत्तिप्रदेशो दृष्टान्तः' (न्यायदीपिका १०४) दृष्टिपथः (पुं०) दृष्टि मार्ग, अवलोकन का कार्य। (जयो० ० दृष्टान्त अलंकार विशेष, जिसमें कोई उचित उदाहरण १/७९, दयो०१७) देकर समझाया जाए।
दृष्टिपथगत (वि०) गृहीत, संगृहीत, अवलोकनीय। (जयोवृ० अन्वयख्यापनं यत्र क्रियया स्वत दर्शयोः।
१/३३) दृष्टान्तं तमिति प्राहुरलङ्कारं मनीषिणः। (वाग्भट्टालंकार | दृष्टिपातः (पुं०) १. अक्षि विक्षेप, कटाक्ष करना। २. दयाभाव। ४/८१) जहां प्रस्तुत और अप्रस्तुत का क्रियागुण-चेष्टादि । दृष्टिपूत (वि०) दृष्टि मात्र से पवित्र किया, देखने में निर्दोष। सम्बन्ध से यथातथ्य वर्णन किया जाता है, वहां दृष्टान्त दृष्टिबन्धुः (स्त्री०) जुगनु, खद्योत। अलङ्कार होता है।
दृष्टिमोहः (पुं०) दर्शन मोह। (सम्य० १२१) वात्ययाऽत्ययिनि तूलकलापे तादृशी स्मरशरार्पित शापे। दृष्टिरागः (पुं०) दर्शन विषयक राग, विचार, श्रद्धा। वेगिता तु समभूत् कृतचारे सा भुवामधिभुवां परिवारे।। दृष्टिवादः (पुं०) अंग आगम का बारह अंग। (जयो० ५/३)
जिस श्रुत में भावों की प्रधानता हो। दिट्ठीओ वददीति दृष्टान्तलङ्कारः (पुं०) अलंकार विशेष जिसमें उचित उदाहरण दिढ़िवाद।
को स्थान देकर समझाया जाता है। (जयो० ३/६४) दृष्टिविक्षेपः (स्त्री०) नेत्र विज्ञान। एतादृशी समिच्छन्तु सर्वेऽपि रमणीमणिम्।
दृष्टिविभ्रमः (पुं०) अनुराग युक्त दृष्टि, हाव-भाव जन्य दृष्टि। स्पृहयति न कं चन्द्रकलाप्यविकलाशया।। (वीरो०५/४१) | दृष्टिविषः (पुं०) सर्प, सांप।
पिया
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