Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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मयूखः
८२१
मरुत्
मयूखः (पुं०) [मा ऊख मयादेश:] रश्मि, किरण, अंशु। | मरालः (पुं०) [मृ+आलच्] हंस, बालक। (जयो० ४/५९, (वीरो० १२/१९)
जयो० २/९) दीप्ति, प्रभा, प्रकाश, आभा।
जलचर पक्षी। सौंदर्य।
०अश्व। ज्वाला।
मेघ, बादल। मयूरः (पुं०) कलापी (जयोवृ०५/५५) शिखण्डी। (जयो० ०अनार उद्याना ३/१११) शिखि (सुद० २/४१)
ठग। ०अलकापुरी का राजा। (वीरो० ११/१८)
मरालततिः (स्त्री०) हंस, पंक्ति। (वीरो० २/४०) मयूरः (पुं०) [भी+करन्] मोर।
मरालबालः (पुं०) हंस बालक। (वीरो० २१७) मयूरकः (पुं०) मोर।
मरालशिशु देखो ऊपर। मयूरकेतुः (पुं०) कार्तिकेय।
मरालसंघः (पुं०) हंस समूह। मयूरग्रीवकं (नपुं०) तूतिया।
मरलि (पुं०) अडियल टटू, अड़ियल अश्व। मयूरचटकः (पुं०) गृह कुक्कट।
मराली (स्त्री०) राजहंसी। (जयो०वृ० १/२४) मयूरचूडा (स्त्री०)मयूर शिखा, मोर की कलगी।
मरिचः (पुं०) [म्रियते नश्यति श्लेष्मादिकनेन] काली मिर्च। मयूरतुत्थं (नपुं०) तूतिया।
(सुद० १११) मयूरपत्रिन् (वि०) मोर पंख युक्त।
मरिचं (नपुं०) मिर्च। (जयो०वृ० १२/१३) मयूररथः (पुं०) कार्तिकेय।।
मरिची (स्त्री०) मिर्च। (जयो० २५/२३) मयूरवर्गः (पुं०) शिखिजन। (जयो० ४/६७)
मरीचिः (पुं०) भगवान् ऋषभ का पौत्रा पौत्रोऽहमेतस्य मयूरव्यनकः (नपुं०) चालाक मोर।
तदग्रगामी मरीचिनाम्ना समभूच्च नामी। (वीरो० ११/८) मयूर शिखा (स्त्री०) मोर की कलगी।
प्रथम मनु से उत्पन्न पुत्र। मयूरवत् (वि०) मोर की तरह (सुद० ४/१४)
०प्रकाश कथा, रश्मि किरण। (जयो० १५/४८) मरकः (पुं०) [मृ+वुन्] संक्रामक रोग, पशुओं में होने वाला मरीचिका (स्त्री०) [मरीचि+कन्+टाप्] ०मृगतृष्णा, आशा, रोग।
___०लालसा। (जयो० २६/४३) ०अभिलाषा, ०इच्छा, मरकतं (नपुं०) [मरकं तरत्यनेन] [तृ+ड] पन्ना।
आसक्ति। मरकतमणिः (स्त्री०) पन्ना।
मरीचितोयं (नपुं०) मृगतृष्णा। मरणं (नपुं०) [मृ+भावे ल्युट्] मरना, मृत्यु, मारकेश। मरीचिन् (पुं०) सूर्य। (जयो०वृ० ७/५३)
मरीचिमालिन् (वि०) उज्ज्वल, कान्तिमय। आयु के क्षय से प्राणों का वियोग।
मरीचिमालिन् (पुं०) दिनकर, सूर्य। शरीरप्रच्युत। मरण विक्षेप। (जयो० २/३२)
मरीमृज (वि०) बार बार मलने वाला। प्राणत्याग। (सुद० ११९)
मरीमति (स्त्री०) मरणोन्मुख। (वीरो० ९/३५) जीवन परिसमाप्ति, जीवनोच्छेद।
मरु (स्त्री०) मरुस्थल, रेगिस्तान, (सुद०११८) रेतीली भूमि, आयुष्य समाप्ति।
रेणु। 'मरौ रेणूप्राये प्रदेशे प्रभृतिरुत्पत्तिर्यस्येति' (जयो० मरणभयं (नपुं०) प्राणों के परित्याग का भय-'मरणंभयं १९/१८) प्रतीतम् प्राणपरित्यागभयं मरणभयम्।
निर्जलदेश। (जयो० ११/५९) मरतः (पुं०) [मृ+अतच्] मृत्यु, मरण, विनाश, क्षय।
पर्वत, चट्टान। मरन्दः (पुं०) [मरणं द्यति खण्डयति] फूलों का रस, पुष्पासव। । मरुकः (पुं०) [मरु+कः] मयूर, कलापी, शिखि। मरारः (पुं०) [मरं मरणमलति निवारयति-मट्+अल्+अण] मरुकच्छः (पुं०) मरुस्थल का स्थान। खत्ती, धान्यागार, धान्यभण्डार।
मरुत् (पुं०) हवा, पवन, अनिल। (जयो० २१/१०)
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