Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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मरुत्करः
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मरुत्करः (पुं०) सेम ।
मरुत्कर्मन् (पुं०) अफारा, बदहज़मी, अपचन, उदर वायुवेग । मरुत्कोण: (पुं०) पश्चिमोत्तर दिशा ।
मरुदगण: (पुं०) देव समूह, वायु समूह। (जयो० ९ / २९ )
मरुत्तनयः (पुं०) पवनपुत्र हनुमान।
मरुतभङ्गः (नपुं०) वायु भूकम्पन। (जयो० २४ / १११ ) मरुदन्तकीयः (पुं०) मलयानिल। (वीरो० ६ / २२) मरुदावेल्लित (वि०) हवा से आन्दोलित | (जयो० ३/७४) मरुदेवी (स्त्री०) नाभिराय नामक अन्तिम कुलकर/ मनु की प्रिया । ० ऋषभदेव की माता प्रथम तीर्थंकर ऋषभ की मातुश्री । (दयो० ३१)
मरुदेश: (पुं०) मरुस्थल |
मरुपगत (वि०) मरुदेश को प्राप्त । मरुदेशेन उपगतां प्राप्ताम् । (जयो० २८/५३)
मरुपथ: (पुं०) रेतीला मार्ग, मरुस्थल भूमि ।
मरुप्रभृतिः (स्त्री०) मरुदेवी से उत्पन्न। मरोरिति मरुदेव्या, प्रभृतिरुत्पत्तिर्यस्य (जयो०वृ० १९ / १८ )
मरुप्रियः (पुं०) उष्ट्र, ऊंट
मरुभूः (स्त्री०) मरुभूमि, मारवाड़ देश ।
मरुवर्मन् (पुं०) पल्लवदेश का राजा। (वीरो० १५ / ३५ ) पल्लवाधिपतेः पुत्री कदाञ्छी मरुवर्मणः
मरुस्थलं (नपुं०) मरुभूमि ।
मरुव: (पुं० ) [ मरु+वा+क] मरुआ, नामक पादप । मरुवकः (पुं० ) ०व्याघ्र, ०मरुआ पौधा ।
० चूना, ०राहु ।
मर्कटः (पुं० ) [ मर्क + अटन् ] ०बंदर, लंगूर । (जयो० २ / १३) ० मकड़ी, ०सारस विशेष ।
०रतिबन्ध क्रिया, संभोगावस्था ।
मर्कतिंदुकः (पुं०) एक प्रकार का आबनूस ।
मर्कटपोतः (पुं०) बंदर का बच्चा ।
मर्कटवासः (पुं०) मकड़ी का जाला ।
मर्कटिकार्थः (पुं०) लूताकृत, मकड़ी द्वारा बनाया गया। (जयो०वृ० २०/५० )
मर्करा ( स्त्री० ) [ मर्क् + अट्+टाप्] ०पात्र, बर्तन |
० सुरंग, छिद्र, विवर, खोह, गुफा ० बांझ स्त्री ।
मर्च् (सक०) लेना, ग्रहण करना ।
० स्वच्छ करना।
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मर्ज: (पुं०) [मृज्+उ] धोबी । ०धोना, साफ करना । मर्तः (मृ+तन्) मानव, मनुज, मर्त्य।
भूलोक ० मर्त्यलोक |
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मर्त्य ( वि० ) [ मर्त् + यत् ] मरणशील ।
मर्त्यः (पुं०) मानव, मनुज, मनुष्य । (दयो० १/२३) जिजीविषुरतो मर्त्यः परानपि न भारयेत् । (दयो १/२३ ) ० भूलोक, मर्त्यलोक।
मर्त्यं (नपुं०) शरीर, देह, मिट्टी। (सुद० १०२) मर्त्यगत ( वि०) मरण को प्राप्त हुआ।
मर्त्यजन्मन् (नपुं०) मनुष्य जन्म, मनुज उत्पत्ति । मर्त्यजाति: (स्त्री०) मनुष्य जाति ।
मर्द
मर्त्यधर्मन् (वि०) मरणशील ।
मर्त्यनाथः (पुं०) मानवपति, नृप। (जयो० १३/११५) मर्त्यनाश (वि०) मृत्युंजयी । मर्त्यनिवासिन् (पुं०) मनुष्य ।
मर्त्यपति: (पुं०) मनुष्य शिरोमणि, नृप, राजा। (जयो० ५ / ३१) मर्त्यभवः (पुं०) मनुष्य जन्म। (सुद० ५/३) मर्त्यभावः (पुं०) मनुष्यता, मनुजपना । अनेकजन्मबहुतमर्त्यभावोऽति-दुर्लभः। खदिरादिसमाकीर्णे चन्दनद्रुमवद्वने । (सुद० १२८)
मर्त्यभोगिनी (वि०) मनुष्योचित गुणों को भोगने वाली । (जयो० २/११७)
मर्त्यरत्नः (पुं०) श्रेष्ठमनुष्य, सज्जन व्यक्ति । (वीरो० २२ / ८ ) प्रथम शिरोमणि सुदर्शन ।
मर्त्यराट् (पुं०) मनुजराज, नृप, अधिपति। (वीरो० ६ / २) 'पत्नी प्रयत्नीपितमर्त्यराट्' (वीरो० ६ / २) मर्त्यलोकः (पुं०) भूलोक, पृथिवीलोक । मर्त्यशिरोमणि (पुं०) मानव रत्न। (जयो० ९/८३) सुमुख ! मर्त्य शिरोमणिनाऽधुना सुगुण वंशवयोगुरुणाऽमुना । बहुकृतं प्रकृतं गुणराशिना पुरुनिभेन धरातलवासिराम् ॥ (जयो० ९/८३)
मर्त्य सहितः (पुं०) देवता ।
मर्त्यसार्थकः (वि०) मनुष्य की सार्थकता । 'मर्त्यानां मानवानां सार्थकः' (जयो०वृ० १३ / १६ )
मर्द (वि० ) [ मृद्+घञ् ] मर्दन करने वाला, मसलने वाला,
कुचलने वाला।
० नष्ट करने वाला, नाश करने वाला।
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