Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 408
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मर्दः ८२३ मलमल्लकः मर्दः (पुं०) पीसना, कुचलना। ०दबाना, नष्ट करना। प्रबल, प्रहार। मर्दन (वि०) कुचलने वाला, नाश करने वाला। मर्दनं (नपुं०) कुचलना, नाश करना। ०पीसना, रगड़ना, मालिश करना। __०पीड़ा देना, कष्ट देना, सताना। मर्दल (पुं०) [मर्द+ला+क] एक ढोल विशेष। मर्दित (वि०) मर्दन किया गया, मसला गया। (जयो० १२/११६) मर्ब (सक०) जाना, पहुंचना। मर्मन् (नपुं०) [मृ+मनिम्] अन्तस्तल, सन्धिस्थाना रहस्य भेद, गूढार्थ। अकीकृते धर्मिणी भातु धर्मः सूर्ये प्रकाशः स्फुरतीति मर्मः। (सम्य० ७२) फल, परिणाम, भेद। संचेत्यते यावदसंज्ञिकर्मफलं शरीरीपरि भिन्नमर्म। (सभ्य० ४१) स्वस्योपयोगपरतोद्धणाय मर्म। मर्मनिकर्मन (वि०) मर्मभेदी कार्य। (वीरो० २२/२७) मर्मणि विषमस्थाने निकर्मणन उत्कृन्तनस्य। मर्मगत (वि०) रहस्य युक्त। मर्मघातिन् (वि०) अंतस्तल को घातने वाला। मर्मघ्न (वि०) पीड़ा जनक। मर्मज्ञ (वि०) अंतर्दृष्टि रखने वाला, मर्म जानने वाला। मर्मच्छेदकरी (वि०) मर्म को प्रकट करने वाला। (जयो० १७/३३) मर्मचरं (नपुं०) हृदय। मर्मच्छिद (वि०) मर्म घातक , हृदय घातक। (मुनि०८) मर्मभेदः (पुं०) मर्मस्थान का भेदना। मर्मभेदिन् (पुं०) बाण, तीर। दृढ़ (जयो०७० ८/२६) मर्मस्पर्शिन् (वि०) हृदय को छू जाने वाला। मर्मर (वि०) पत्तों का खड़खड़ाहट। मर्मदी (स्त्री०) हल्दी। मर्या (स्त्री०) [मृ-यत्+टाप्] सीमा, हद। मर्यादा (स्त्री०) [मर्यायां सीमायां दीयतेमर्या+दा+अ+टाप्] ०सीमा, हद, परिधि। उद्देश्य, मंजिल। ०अन्त, अवसर, अंतिम। ०तट, किनारा। निश्चित प्रथा। ०व्यवस्थित विधि। नैतिक विधि, शिष्टाचार। मर्यादाक्रान्त (वि०) मर्यादातीत, मर्यादा रहित। (जयो०वृ० २०/७२) मर्यादागिरि (पुं०) सीमांत पर्वत। मर्यादापुरुषोत्तमः (पुं०) मर्यादा का पालन करने वाला श्रेष्ठ पुरुष राम। (दयो०८) मर्शनं (नपुं०) [मृश्+घञ्] परामर्श, मंत्रणा, विचारना, प्रच्छना। मिटाना, मल देना। ०सलाह देना। उपदेश देना। मर्ष (वि०) शालीनता, सहिष्णुता, धैर्य। मर्षित (भू०क०कृ०) क्षमा किया गया। मषिन् (वि०) [मृष्+णिनि] धैर्यशील, सहनशील। मल् (सक०) थामना, अधिकार में रखना। मलः (पुं०) [मृज्यते शोध्यते-मृज्+कल्] कठिनीभूतं रजो मतोऽभिधीयते। कालिमा, कालिख। मैल, गंदगी, मलिनता। अपवित्रता, अशुद्ध, किट्टिम। (जयो० २।८१) ०धूल, रजकण। ०पाप, अशुभकर्म। 'नि:शेषतो मते नष्टे नैमल्यमधिगच्छति (सुद० १३५) नैतिक दोष। ०पुरीष, विष्ठा। (जयो०वृ० १९/९) गोबर। मलकर्मन् (नपुं०) पापमय कर्म, घृणित कर्म। मलगत (वि०) दोषगत, अशुद्धता युक्त। मलन (वि०) परिमार्जक, शोधक। मलचं (नपुं०) पीप, मवाद। मलजात (वि०) धूलधूसरिता मलदूषित (वि०) मल से अपवित्र, मैला, गंदा। मलद्रवः (पुं०) रेचन, अतिसार। मलपरीसहः (पुं०) परीषह का एक भेद। मलधावनं (नपुं०) मल प्रक्षालन। (सुद०७०) मलपृष्ठं (नपुं०) आवरण पृष्ठ पुस्तक का ऊपरी भाग। मलभुज् (पुं०) कौवा, काक। मलमल्लकः (पुं०) ०कौपीन, लंगोट। For Private and Personal Use Only

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