Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 442
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मृदुसम्भाषण मृदुसम्भाषणं (नपुं०) मृदुलव्यञ्जन। (जयो० १२ / ११८) मृदुस्मित (वि०) प्रसन्नता युक्त हंसी। (जयो० १७/३२) मृदुहार : (पुं०) सुंदर हार, मनोहर हार । (जयो० ८ / ३० ) मृदुहारमणि: (स्त्री०) उज्ज्वल मणि युक्त हार। (जयो० २२/४२) मृदुहा - रमणी (स्त्री०) सुंदर रमणी । (जयो० २२/४२) मृदूदकः (पुं०) शीतल जल। (जयो० २२/१९) मृदूर: (पुं०) कोमल हृदय । (सम्य० ५० ) मृद्वंशकः (पुं०) शुभलग्न। (जयो० १० / २) मृद्वी / मृद्वीका ( स्त्री० ) [ मृदु + ङीष् ] अंगूर की बेल, अंगूर का www.kobatirth.org गुच्छा। मृध् ( अक० ) गीला होना । मृधं (पुं० ) [ मृध्+क] संग्राम, युद्ध, लड़ाई। मृद्धी (स्त्री०) कोमलाङ्गी । ( सुद० २ / ५) ० मिष्ट (१/१) मृन्मय (वि० ) [ मृद् + मयट् ] मिट्टी का बना हुआ। मृश् ( सक०) स्पर्श करना, मलना, मर्दन करना । मृष्ट्वा (जयो० ६ / ६१ ) ० गुदगुदाना । ० सोचना, विचार विमर्श करना । ० झपटा मारना, आक्रमण करना। ० दूषित करना, भ्रष्ट करना, बलात्कार करना । ० ज्ञात करना। ० चिन्तन करना, सोचना, विचार करना । ० पर्यवेक्षण करना, परीक्षा लेना । मृष् (सक०) छिड़कना, सहन करना, झेलना, भोगना, साथ रहना । मृषा (स्त्री० ) [ मृषृ + का] ०मिथ्या (जयो० ६ / ३७ ) ० अनृत। दुग्धीकृतेऽस्य मुग्धे यशसा निखिले जले मृषास्ति सता । ० व्यर्थ, निष्प्रयोजन, निरर्थक । ० अलीक, असत्य । (जयो० २ / १४४ ) ० झूठ- पाप का भेद-अव्रत | मृषात्व (वि०) मिथ्यापना, असत्यपना । मृषानन्द (वि०) अनृतानन्द | मृषानन्दः (पुं०) अनृतानन्द, रौद्रध्यान की प्रवृत्ति । मृषानन्दी (वि०) अनृतानन्दी, रौद्र रूप प्रवृत्ति। (मुनि० २२) मृषानुबन्धिन् (वि०) दूसरे के ठगने का विचार करने वाला । मृषापथः (पुं०) असत्यमार्ग । मृषाभाषा ( स्त्री० ) सत्य विराधक वचन, असत्यभाषा, मिथ्याभाषा । मृषामनयोगः (पुं०) असत्यमनोयोग, सत्य विरोधक मनोयोग । ८५७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृषारौद्रध्यानं (नपुं०) कल्पित युक्तियों का ध्यान, मिथ्याध्यान। मृषावचनं (नपुं०) अलीकवचन। मृषावादः (पुं०) असत्य कथन, अप्रशस्तवचन, मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और प्रमाद युक्त व्यवहार । मृषासाहसः (पुं०) दुस्साहस । (जयो० २ / १४४) मृषोक्ति (स्त्री०) मिथ्योक्ति, अलीककथन। (समु० ३/२९) मृषोक्तिकृति (स्त्री०) असत्य वचनावली । (मुनि० २१ ) मृषोद्यमं (नपुं०) मिथ्या, झूठ, अलीक । मृष्ट (भू०क० कृ० ) [ मृश्+क्त] स्वच्छ स्पष्ट, सुंदर । ● किया हुआ, निर्मल किया हुआ । ० प्रसाधित, प्रमार्जित । ० मनोऽभिलषित। (जयो० २७/४३) मृष्टगन्धः (पुं०) रोचक गन्ध । सृष्टिः (स्त्री० ) [ मृश्+ क्तिन्] स्वच्छ करना, साफ करना, निर्मल करना । ०पकाना, प्रसाधन करना। ० स्पर्श, संपर्क । मे ( अक० ) विनिमय करना, अदला-बदली। मेकः (पुं०) [मे+कै+क] बकरा । मेकलः (पुं०) बकरा । मेक-कन्यका (स्त्री०) नर्मदा नदी । मेकलकन्यकाभाला (पुं०) यमराज (जयो० ११ / ७० ) (दयो० ९० ) मेखला ( स्त्री०) करधनी, कमरबन्द, कटिबन्ध, काञ्ची । (जयो० २४ / ३५) मेघं ० कूल्हा, उत्तुंग नितम्ब (जयो० २४ / ३५) काञ्च्यां शैलनितम्बे च खङ्गबन्धे च मेखला, इति विश्वलोचना (जयो०वृ० २४ / ३५) मेखलापदम् (स्त्री०) कूल्हा | मेखलाबन्धः (पुं०) कटिसूत्र धारण करना। मेखलिन् (पुं०) शिव । ० ब्रह्मचारी | मेघः (पुं० ) [ मेहति वर्षति जलम्, मिह्+घञ्] ०बादल । ० मुदिर। (जयो०वृ० ३ / ९२) (जयो० १२/४९) ०कंद। (जयो०वृ० ३/८७), वारिद। (जयो०वृ० ३ / ५ ) ० बलहिक । (जयो० ३ / ११ ) • अम्बुमुच । (समु० २/१२) मेघं (नपुं०) सेलखड़ी। For Private and Personal Use Only

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