Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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मेहंदी
८६०
मोक्षतरु
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०बकरा।
मूत्र, लघुशंका करना। मेहंदी (स्त्री०) माञ्जिष्ठ, महिलाओं के हस्त-पाद शृंगार का
एक साधन। मेहनं (नपुं०) [मि ल्युट्] मूत्र।
लिंग।
मूत्रोत्सर्ग। __ . मैत्र (वि०) [मित्र+अण] मित्र सम्बंधी।
कृपापूर्ण, सौहार्दपूर्ण, कृपालु। मैत्रः (पुं०) ब्राह्मण।
गुदा। मैत्रकं (नपुं०) [मैत्र+कन्] मित्रता, दोस्ती। मैत्रावरुणः (पुं०) अगस्त्य ऋषि। मैत्रावरुणी (पुं०) बाल्मिकी, अगस्त्य ऋषि। मैत्री (वि०) मित्रता, दोस्ती।
०सौहृद। (जयो० २/२१) ०परस्पर प्रीतिभाव-द्वयोः परस्परं मैत्री मृग-जम्बुकयोरिव (दयो०६२)
सखी। (जयो०१० ३/५१)
०एकता, सहयोग, समवाय। (मुनि० २०) मैत्रीभावः (पुं०) मित्रताभाव। (जयो०वृ०६/७९) मैत्रीभावना (स्त्री०) प्राणीमात्र पद मित्रता का भाव। मैत्रेय (वि०) मित्र से सम्बन्ध रखने वाला। मैत्रेयकः (पुं०) एक जाति विशेष। मैत्रेयिका (स्त्री०) मित्रयुद्ध, मित्रराष्ट्रों में संघर्ष। मैत्रेयोपनिषद् (नपुं०) एक उपनिषद का नाम। (दयो० २५) मैत्र्यं (नपुं०) [मित्र+ष्यञ्] मैत्री, मित्रता। मैथिल् (पुं०) [मिथिलायां भव:-अण] मिथिला का राजा। मैथिली (स्त्री०) सीता। मैथुन (वि०) [मिथुनेन निर्वृत्तम्-अण्] ०युग्मय, जुड़ा हुआ।
विवाहसूत्र में आबद्ध।
सम्भोग से सम्बंध रखने वाला। मैथुनं (नपुं०) रतिक्रीड़ा, संभोग।
राग परिणाम, विषय व्यवहार। (सुद० १३२)
मिलाप, संयोग। मैथुनगत (वि०) रतिक्रीड़ा को प्राप्त हुआ। मैथुनज्वरः (पुं०) संभोग की उत्तेजना। मैथुनधर्मिन् (वि०) सहवासी, संभोगी।
मैथुनप्रसंगः (पुं०) संभोग का कारण। मैथुनम्लानं (नपुं०) मैथुन प्रसंग से शिथिल, संभोग से सुस्त।
(वीरो० २१/१४) मैथुनवैराग्यं (नपुं०) स्त्री खंभोग से विरक्त।
ब्रह्मचर्य। मैथुनसेवनं (नपुं०) काम सेवन, विषय सेवन। (जयो० २/६८) मैथुनिका (स्त्री०) [मैथुन+कन्+टाप्] वैवाहिक गठबन्धन। मैधावकं (नपुं०) प्रज्ञा, ज्ञान। मैनाकः (पुं०) मेना का पुत्र। मैनालः (पुं०) मछुवा, माहीगीर। मैन्दः (पुं०) एक राक्षस। मैरेयः (पुं०) मादय पेय मद्य। (जयो० १६/४८) मैरेयकः (पुं०) मद्य, शराब। मैलिन्दः (पुं०) भ्रमर, भौंरा, मधुमक्खी। मैसूरः (पुं०) मैसूर राज्य। (वीरो० १५/३४) मोकं (नपुं०) चर्म, खाल। मोक्षु (सक०) ०छोड़ना, त्यागना।
मुक्त करना, खोलना, ढीला करना। डालना, फेंकना, उछालना।
छीनना, लेना, ग्रहण करना। मोक्षः (पुं०) [मोक्ष+घञ्] निर्वाण, मुक्ति। (सम्य० ८२)
कृत्स्नकर्मक्षय। परमसुख। ०बन्ध वियोग।
कर्मनिक्षेप कर्म वियोग। जीवकम्माणं वियोगो मोक्खो णाम। (धव० १६/३३८) ० भवान्तर भाव। (जयो० १/९८) ०छूटना, मुक्त होना। मोक्ष नामक पुरुषार्थ। (जयो०वृ० १/३) स्वतंत्र होना।
परममुक्ति, परम पद प्राप्ति। मोक्षगत (वि०) मोक्ष को प्राप्त हुआ। मोक्षगतिः (स्त्री०) मुक्ति, अन्तिम गति।
सिद्धगति। मोक्षगेहं (नपुं०) मुक्तिभवन।
सिद्धस्थान। मोक्षतरु (पुं०) आचरण रूप वृक्ष।
चरित्र पादप।
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