Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 447
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोदनोदयः ८६२ मौकलिः मोदनोदयः (०) हर्षोदय। मोदनस्योदनिधिः (जयो० ५/५६) मोदपथः (पुं०) प्रसन्नता का मार्ग, हर्प मार्ग। (जयो० ६/११) मोदभावः (पुं०) हर्षभाव। प्रियपथ, ०इष्ट स्थान। प्रसन्नता युक्त परिणाम। मोदमंदिर (नपुं०) शर्म निवासस्थान। (जयो० २२/३९) मोदमह (वि०) प्रमोदमय। (सुद० २/३६) प्रमोदजन्य। (सुद० २/४१) मोदमेदुर (वि०) पुलकित। (जयो० २४/२२) मोदयन्ती (वर्तकृ०) हर्ष करने वाली। (वीरो० २१/२) मोदसिन्धु (पुं०) आनन्द रूपी समुद्र। (जयो० ५/३४) मोहः (पुं०) [मुह+घञ्] मूर्छा, आसक्ति। (सुद० ४/२) मोहकर्म। बपुष्यहंकार उदेति मोह, माहात्मयतोऽतोऽरिसुहत्तयोहः (समु० ८२११) मूर्च्छित होना, चेतनाशून्य, अचेत अवस्था। ०व्यामोह, घबराहट, आकुलता। उद्विग्नता, अव्यवस्था। ममेदं भाव, अहंकार भाव। मोहः पदार्थेष्यथावबोधः' मुह्यतेऽनेनेति मोहः। ०अज्ञानलक्षणो मोहः। ०सत्-असत् को विकल करने वाला गुण। •हित-अहित का विकल भाव। मोहकर/मोहमी (वि०) मोह को उत्पन्न करने वाला। (समु० ६/१३) बुद्धिभंशकारिणी। (जयो० १८/१२) मोहकर्मन् (नपुं०) मूर्छा कर्म। (सम्य० ५९) उपशम, क्षय, क्षमोक्षम। मोहकी (वि०) मो कारी-सुमनोहारा। (जयो०७० ६/४९) मोहकारी (वि०) अहंकार उत्पन्न करने वाला। मोहखण्डः (नपुं०) मोह भाग। ०मूर्छा स्थान। मोहगत (वि०) मूर्छा को प्राप्त हुआ, अचेत हुआ। मोहक्षति (स्त्री०) मोहशाप, मोहहानि, मोह का अभाव। (वीरो० ५/२८) मोहजन्मन् (वि०) उद्विग्नता को जन्म देने वाला। मोहतमस् (नपुं०) मोहरूपी अहंकार। (सुद० ११०) मोहतिमिरं (नपुं०) मोह रूपी अहंकार। (सुद० ४/१३) मोहदात (वि०) मूर्छा उत्पन्न करने वाला। मोहदोषः (पुं०) मादकता का दोष। मोहधामः (पुं०) मूर्छास्थान। मोहनं (नपुं०) [ मुह्+णिच्+ल्युट्]०विमोह, मूर्छा, आसक्ति। जड़ता, मूर्खता, त्रस्त करना। आकर्षक, रुचिकर। मोहनः (पुं०) मोहन, कृष्ण का नाम। मोहन (वि०) व्याकुल करने वाला, मच्छित करने वाला। ___ * वशीकरण। (जयो० २/६०) मोहनकः (पुं०) [मोहन्+कै+क] चैत्र का महिना। मोहनाश (वि०) मोह कर्म का नाश। (सम्य० १३५) दर्शनमोह का नाश। अज्ञाननाशं प्रवदन्ति सन्तो दृङ्मोहनाशक्षण एव जन्तोः । (सम्य० १३५) मोहनिगडः (पुं०) मोह शृंखला। (जयो० २/१५७) दृढ़बंधन, प्रबल व्यामोह। मोहनीय (वि०) मूढ़ता को ले जाने वाला कर्म। जो प्राणियों को मोहित करता है। जिससे कृत्य-अकृत्य भूल जाता। 'मोहयतीति मोहनीयं मिथ्यात्वादिरूपत्वात्' (जैन०ल. ९३९) मुह्यत इति मोहनीयम्। मोहपथः (पुं०) मूपिथ। ०मोहस्थान। मोहबन्धः (पुं०) अज्ञानता रूप बन्धन। मोहभागता (वि०) मोहका अंशपना। (सुद० १०१) मोहमल्लः (पुं०) मोह रूपी योद्धा। अहो जिनोऽप्यं जितवान् मतल्लं केनाप्यजेयं भुवि मोहमल्लम्। (वीरो० १२/४५) मोहमाया (स्त्री०) मूर्छा जाल। (वीरो० १९/२७) मोहमहातम (नपुं०) मोह रूपी सघन अंधकार। (मुनि० १) मोहशापः (पुं०) मोहक्षति। (वीरो० ५/२८) मोहसंविप्लवः (पुं०) मोह उपद्रव। (सम्य० १११) मोहहानिः (स्त्री०) मोहक्षति, मोहविनाश। (वीरो० ५/२८) मोहाच्छन्न (वि०) मूढ, अज्ञानी। (जयो०वृ० २८/६०) मोहान्धकार (वि०) मोहरूपी अंधकार। मोहान्धमयी (वि०) अज्ञानान्धकार रूप। (जयो० १९/१४) मोहित (भूक०कृ०) मुग्ध, आकुलित, मूञ्छित। (सुद० ४/१०) मोहिनी (स्त्री०) मनोहारिणी स्त्री। (सुद० ११२) मोहिनी (वि०) मोह सम्बन्धिनी माया। महतीयं मोहिनी जनतायां भो! माया। (जयो० २३/६५) मौकलिः (पुं०) काक, कौवा। For Private and Personal Use Only

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