Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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मूर्धकर्परी
८५३
मूषा/मूषिका
मूर्धकर्परी देखो ऊपर। मूर्धजः (पुं०) मस्तक, सिर के बाल। (जयो० ५/८५) मूर्धज्योतिस् (नपुं०) मुद्रामार्ग। मूर्धनिघूर्णा (वि०) सिर को घूर्णित करने वाली। मूर्धन्य (वि०) [मूर्ध्नि भव-यत्] मुख्य, प्रमुख, श्रेष्ठ।
मूर्धन्यवर्ण -ऋ, ट्, ढ, ड्, ण, र, और ए' मूर्धभू (स्त्री०) मस्तकस्थली। (जयो० २२/२२) मूर्धरसः (पुं०) मांड। मूर्धान्दुकं (नपुं०) शिरालंकरण, शिरोभूषण, सिर का
बोर। (जयो० १६/१०) मूल् (अक०) स्थिर होना, विद्यमान होना। मूल (सक०) उगाना, पालना।
विनष्ट करना, नाश करना। मूलं (नपुं०) जड़, किनारा।
मूलभूत, आधारभूत, (सम्य० ३१) मूलं सुधीन्द्राश्चिदचिद् द्वयन्तु द्वयोरवस्था अपरा श्रयन्तु। (सम्य० ३१)
आधार, नींव, स्रोत। ०आरम्भ, शुरु। किसी वस्तु का तल। ०पाठ, संदर्भ सामीप्य। मूलधन, वर्गमूल।
मुद्गर। (जयो० ८/१५) मूलकर्मन् (नपुं०) मूलगुण का पालक ऋषि/मुनि। मूलकर्मन् (नपुं०) जादू। मूलकरणं (नपुं०) औदारिक शरीर की स्थिति। मूलकारणं (नपुं०) प्रमुख कारण। मूलकारिका (स्त्री०) मूलसूत्र। मूलगुणः (पुं०) साधक के गुण, साधु के गुण, अट्ठाईस
मूलगुण। मूलजः (पुं०) जड़ से उत्पन्न होने वाला पौधा। मूल (नपुं०) अदरक। मूलद्रव्यं (नपुं०) आधार भूतधन, वाणिज्यवस्तु, पूंजी। मूलधनं (नपुं०) मूल पूंजी। ०लागत धन। मूलधातुः (स्त्री०) लसीका। मूलपुरुषः (पुं०) वंशप्रवर्तक। मूलप्रकृतिः (स्त्री०) ०समस्त भेदों को संग्रह करने वाली
प्रकृति। सांख्य का प्रधान या प्रकृति तत्त्व।
मूलफलदः (पुं०) कटहल का पेड़। मूलभद्रः (पुं०) कंश। मूलभूतशब्द (पुं०) प्रधान शब्द, प्रमुख शब्द। (जयो०१० १/३१) मूलभेदः (पुं०) प्रमुख भेद। मूलवचनं (नपुं०) मूलपाठ। ०सूत्र वचन, ०श्रुतसार,
आगमवचन, आप्तवाणी। मूलवित्तं (नपुं०) पूंजी, वाणिज्य, वस्तु। मूलशाकटः (पुं०) मूली आदि बोना। मूलस्थानं (नपुं०) प्रमुख स्थल। आधारभूत भाग। मूलसूत्रं (नपुं०) मूल उद्देश्य (जयो० २/२९) मूलहर (वि०) मूलधन को नष्ट करने वाला। मूलहरणं (नपुं०) सर्वस्वविनाशन, मूल को भी नाश करना।
(जयो० २/११०) मूला (स्त्री०) [मूल्+अच्+टाप्] ०सतावर, एक पौधे का नाम।
__०मूल नक्षत्र। मूलान्तरित (वि०) मूल के मध्य। (जयो० १५/४५) मूलिक (वि०) भौतिक, मूलभूत। मूलिकः (पुं०) भक्त, संन्यासी। मूलिन् (पुं०) [मूल इनि] वृक्ष। मूली (स्त्री०) एक छोटी छिपकली। मूलेरः (पुं०) [मूल्+एरक्] राजा, नृप।
०बालछड़। मूलोच्छेदः (पुं०) मूल का विनाश। मूलोच्छदं विना वृक्षः
पुनर्भवितुमर्हति। (वीरो० १३/३७) मूलोच्छेदकर (वि०) मूल का घातक। (दयो० ९९) मूल्य (वि०) [मूल+यत्] मोल लेने योग्य।
__०उखाड़ देने योग्य। मूल्यं (नपुं०) कीमत, मोल, लागत, मूलधन, लाभ, पूंजी।
(सम्य० ७७)
मजदूरी, कीमत, किराया। मूल्यशालिनी (स्त्री०) तुलनीय। (जयो० १२/२२) मूष् (सक०) चुराना, लूटना, अपहरण करना। मूषः (पुं०) [मूष्+क] चूहा।
०गोल खिड़की, रोशनदान। मूषकः (पुं०) [मूष्+कन्] चूहा, आखु। (वीरो० १/१९)
०चोर। मूषणं (नपुं०) [मूष्+ल्युट्] चुराना। लेना, छीनना। मूषा/मूषिका (स्त्री०) चूहा। कुणली।
०चोर। शिरीष तरु।
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