Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 405
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्दाग्निरोगः मयुः मन्दाग्निरोगः (पुं०) ०अपचन रोग, ०पचाने की शक्ति में क्षीण व्यक्ति। ०पाचाग्नि की कमी, उदराग्नि की कमी। (जयोवृ० १८/१८) मन्दादिक (वि०) शनिप्रभृति। (जयो०८/७८) मन्दात्मन् (वि०) मन्द बुद्धि वाला, काषायिक प्रवृत्ति युक्त आत्मा वाला। मन्दानिलः (पुं०) मन्द मन्द पवन, हवा की धीमी गति। (जयो० १३/११३) मन्दारः (पुं०) [मन्द्+आरक्] आकड़ा, आक का पौधा मदारवृक्ष, धतूरे का पौधा। (वीरो० १९/११) मन्दारं (नपुं०) मूंगे का वृक्षा मन्दारमाला (स्त्री०) मन्दार पुष्प माला, आक के पुष्पों की माला। मन्दिमन् (वि०) धीमायन। मन्द-मन्द मुदित। सुस्ती। ०आलस्य युक्त। जड़ता, मूर्खता। मन्दिरं (नपुं०) [मन्द्यतेऽत्र मन्द्+किरच्] ०देवालय, देवस्थान, देवगृह। पवित्र आराधन ग्रह। स्थान, आवास, स्थल। शिविर, पड़ाव। मन्दिरगत (वि०) देव स्थान को प्राप्त हुआ। मन्दिरद्वारः (पुं०) देवस्थान भाग। (दयो०८४) मन्दिरध्वजः (पुं०) देवस्थान की ध्वजा। (जयो० २१/६३) मन्दिरमाला (स्त्री०) देवालय समूह। मन्दिरस्थानं (नपुं०) देवालय का स्थल। मन्दिरा (स्त्री०) [मन्द्+उरच्+टाप्] अश्वशाला, अस्तबल, घुड़शाल। मन्द्र (वि०) [मन्द्र क्नीचा, गहरा, गंभीर। मन्द्रः (पुं०) मन्दध्वनि, ढोल विशेष। मन्मथः (पुं०) कामदेव। प्रेम, प्रीति, प्रणय परिणति। कपित्थ, कथा, कबीट। 'मन्मथः कामचिंतायां कामदेव कपित्थयो' इति विश्वलोचलनः (जयो०७० २१/२७) मन्मथकर (वि०) प्रेम की भावना युक्त, प्रीतियुक्त। मन्मथभावः (वि०) काम भाव। मन्मथमतिः (स्त्री०) प्रेम युक्त बुद्धि। मन्मथलेखिः (पुं०) प्रेमपत्र। मन्मथशाला (स्त्री०) कामशाला, कामक्रीड़ा स्थल। मन्मथालयः (पुं०) स्त्री मोह, कामक्रीड़, स्थल। आम्रतरु। मन्मनः (पुं०) कामदेव। ०रतिपति। मन्मनःस्था (स्त्री०) जीवन सहचरी। (सुद० ११३) मन्युः (नपुं०) [मन्+युच्] कोप, क्रोध, गुस्सा, नाराजगी। व्यथा, शोक, व्याकुलता। ०दयनीय स्थिति, विकट स्थिति। दुःख, कष्ट, पीड़ा, आताप। मभ्र (अक०) जाना, पहुंचना। मम [अस्मद् सर्वनाम-उत्तम पुरुष-एकवचन] मेरा-न तुङ् ममायं कुविधामनुष्यादेकेति। (सम्य०६८) ममकारः (पुं०) मेरापन, ममता, स्वार्थ। (जयो० २६/४७) ममता (स्त्री०) [मम्+तल्+टाप्] ममत्व, अपने पन की भावना, मूर्छा आसक्ति, स्वहित। ममताविहीन (वि०) ममत्वरहित। (वीरो० १२/५२) ममत्व (वि०) मेरापन, ममता। अहन्तवमेतस्य ममत्वमेतत्मिथ्यात्व नामानुधत्तथे। (सम्य० २७) स्नेह, आदर, अनुराग। ०अहंकार, अहं। (जयो० २९/५२) ममत्वभावः (पुं०) ममताभाव। (सम्य० ४१) ०घमण्ड, अभिमान, अहंकार। स्वार्थ भाव। ममात्मन् (वि०) मेरी आत्मा। (सुद० ९४) ममामुक (वि०) मुझ जैसा। (सुद० २/१३) मम्मटः (पुं०) काव्य प्रकाश के प्रणेता। मय् (सक०) जाना, पहुंचना। मय (वि०) युक्त, परिपूर्ण, सहित। (सुद० २/२) मयः (पुं०) अश्व, खच्चर, घोड़ा उष्ट्र। (जयो० १३/३९) मयटः (पुं०) [मय्+अटन्] पर्णशाला, घासफूस की झोपड़ी। मयवर्गः (पुं०) उष्ट्रसमूह। मयानामुष्ट्राणां वर्गः समूहो। (जयो० १०/५६) मया (सर्व०) मेरे द्वारा, मुझसे। (सम्य० ४३) ममीहित (स्त्री०) मतानुकूल। (जयो० ९/६०) मयुः (पुं०) [मय्+कु] किन्नर, संगीतज्ञ। मयवा मृगा यस्मिन् तस्मिन् बने कानने। हिरण। बारहसिंहा, मृग। मयुमृगे किन्नर स्यात् इति वि (जयो० २५/८१) For Private and Personal Use Only

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