Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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८०२
मघवः
मः (पुं०) पवर्ग का अन्तिम वर्ग, इसका उच्चारण स्थान
नासिका है। मः (पुं०) [मा+क] ०काल, समय।
विषय। ०चन्द्र।
ब्रह्मा, विष्णु। व्यमा
माला। (जयो० १९/३७) ०अपराधी। (जयो०) मं (नपुं०) जल, प्रसन्नता, कल्याण। मकरः (पुं०) [मं+विषं किरति कृ+अच्] घड़ियाल, मगर,
समुद्र जन्तु, ग्राह। (जयो० २/७०) जल चर जीव। (दयो० १९)
मकरराशि। मकरतः (मकरः) देखो ऊपर। मकरतः (पुं०) नक्रादवरत, मकर। (जयो० ९/६१) मकरकेतनः (पुं०) कामदेव, मदन। मकरध्वजः (पुं०) कामदेव। मकरकेतुः (पुं०) मदन, कामदेव। मकरन्दः (पुं०) शहद, मधु। ०चमेली, * कोयल, ०भ्रमर।
__०केशर। (जयो० १४/६१) मकरंदरजं (नपुं०) पुष्पराग। (जयो० १३४/६२)
एक भस्म। (जयो० ५/६०) मकरमुखं (नपुं०) एक आसन, योगासान, मकर के मुख के
समान दोनों पादों को स्थित करना। मकरराशिः (स्त्री०) मकरराशि। मकरसंक्रमणं (नपुं०) सूर्य का मकरराशि में प्रवेश। मकराकारः (पुं०) मकर व्यूह। (जयो० ७/८३) एक यौगिक
क्रिया में स्थित होना। मकरानुकारी (वि०) वक्रसदृश। (जयो० २१/८) मकरिन् (पुं०) [मकर+इनि] समुद्र। मकरी (स्त्री०) [मकर+ङीप्] मादा घड़ियाल। मकुटं (नपुं०) मुकुट, सिरमोर। मकुतिः (स्त्री०) शूद्र शासन। मकुरः (पुं०) [मक्+उरच्] शीशा, दर्पण।
०बकुल तरु।
काली, कुम्हारदंड। मकुलः (पुं०) बकुल तरु।
मकुष्ठः (पुं०) मोठ। मकूलकः (पुं०) कली, दंतीतरु। मक्क् (सक०) जाना, पहुंचना। मक्कुलः (पुं०) [मक्क+उलक्] ०धूप, गुग्गुल, गेरु। मक्कोलः (पुं०) [मक्क+ओलच्] खड़िया मिट्ठी। मक्ष (अक०) इकट्ठा होना, ढेर लगना, सञ्चय करना।
क्रोधित होना। मक्षः (पुं०) [मश्+घञ्] क्रोध। मक्षिका (स्त्री०) [मश्+ण्वुल+टाप्] मक्खी, मधुमक्खी,
शहदमक्खी । (जयो० १५/५५) मक्षिकामलं (नपुं०) मोम। मक्षिकावातः (पुं०) शहद की मक्खियों का समूह। मक्षिकाणां
संरघाणां वातस्य समूहस्य (जयो०वृ० २/१३०) ०सरपा
समूह। मख् (सक०) जाना, चलना, सरकना। मखः (पुं०) यज्ञ। मखक्रिया (स्त्री०) यज्ञ कार्य। मखद्विष् (पुं०) पिशाच, राक्षस। सखद्वेषिन् (पुं०) पिशाच, राक्षस। मखमलं (नपुं०) मुलायम वस्त्र। (वीरो०८/५३) मखह्न (पुं०) इन्द्र। मखबह्निः (स्त्री०) यज्ञाग्नि। (जयो० १२/७०) मखमार्गः (पुं०) यज्ञकार्य। (जयो० १२/८७) मखाद्विः (स्त्री०) यज्ञाग्नि। मखानलः (पुं०) यज्ञ वह्नि। यज्ञ की दीप्ति। मगधः (पुं०) [मगध्+अच्-मगं दोषं दधाति वा-मग+धा+क]
एक देश, विहार का दक्षिण भाग। ०भाट, बन्दी, चारण। मग्न (भू०क०कृ०) [मस्ज्+क्त] ०डूबा हुआ, निमग्न, तल्लीन।
चिन्मात्र में विश्रान्ति। आत्म स्वरूप में तल्लीनता।
लिप्त, गोता लगाता हुआ। मग्नमनस् (नपुं०) तल्लीनमन। (जयो० ६/६२) मघः (पुं०) औषधि।
वह (पु.
) यज्ञ
(जयो
सुख।
०मघा नक्षत्र। मघवः (पुं०) इन्द्र। यथाऽऽषाढं सभासाद्य मघवा वारि वर्षति।
(वीरो० १३/३३)
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