Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 401
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मनीषिन् मनीषिन् (वि०) बुद्धिमंत । (दयो० ८/८०) ० विश्रवर। (जयो० ३ / ९८ ) ० बुद्धिमान्, विद्वान्, विद्ववर । मनीषिन् (पुं०) पंडित, विचारक व्यक्ति । मनुः (पुं० ) [ मन्+उन] मनु नामक पौराणिक पुरुष । ०कुलप्रवर्तक। (जयो० १२ / ८४ ) www.kobatirth.org ० महापुरुष | ० कुलकर। (जयो०वृ० १२/९, वीरो० १८/११) ० चौदह कुलकरों में अंतिम कुलकर नाभिराय को मनु कहा जाता है। क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम कुल परम्परा के लिए श्रेयस्कर एवं जीवन जीने की पद्धति का कथन किया था। ८१६ ०प्रतिश्रुति, सन्मति, क्षेमंकर, क्षेमंधर, सीमंकर, विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वी, अभिचन्द्र, चन्द्राभ, मरुदेव, प्रसेनजित् और नाभिराय ये चौदह कुलकर हैं। जिन्हें मनु कहा गया। विस्तार के लिए तिलोय पं० ४/४२८) से ५१० तक) ० महापुरुष | मनुज: (पुं०) मनुष्य, मानव, मनु। (सुद० ९१) (दयो० १२) (जयो० २/१५५) ● मनुष्य जाति, नरवर्ग। (जयो० ३/३११) सुमना मनुजो यस्या महिला सारसालया । (जयो० ३/३०) मानुषीसु मैथुनसेवकाः मनुजा नाम । ( धव० १३/३९ ) मनुजपति: (पुं०) नृप, राजा । मनुजराजन् (पुं०) अधिपति, लोकपति, नृपति । मनुजलोक (पुं०) मनुष्य लोक । मनुजाति (स्त्री०) मनुष्य पर्याय । मनूनां कुलप्रवर्तकाणां जातौ समन्वये । (जयो० १२ / ८४ ) मनुजाधिप: (पुं०) राजा, नृप । मनुष्यः (पुं० ) [ मनोरपत्यं यक् सुक् च] मनुज, मानव मनु-' क्षौद्रं किलाक्षुद्रमना मनुष्यः किमु सञ्चरेत्' (सुद० १३० ) ०नर, मर्त्य । पशुष्विव मनुष्येषु, निद्राभी रतिजग्धयः । तेभ्यस्तेषु विशेषश्चेद्विवेकः केवलं किल। (हित० ११ ) मनुष्य क्षेत्रं (नपुं०) मनुष्य लोक । (भक्ति० ३५ ) मनुष्यगति: (स्त्री०) मनुजगति, मानव पर्याय। जो कर्म मनुष्य को सब अवस्थाओं की उत्पत्ति का कारण है। 'मनसा निपुणाः, मनसा उत्कटा इति वा मनुष्याः, गतिः मनुष्यगति:' ( धव० १/ २०२, २०३ ) तेषां Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनोप्रणीतः मनुष्यजातिः (स्त्री०) मनुजता की प्राप्ति, मनुज जन्म । मनोगुप्तिः (स्त्री०) मन को वश में करना, मनोगत राग को हटानामनसो गुप्ति मनोगुप्तिः । मनुष्यता (वि०) मानवीयता । ( सुद० १३४) मनुष्यदेवः (पुं०) नृप, राजा । मनुष्यधर्म: (पुं०) मानव कर्त्तव्य । मनुष्यधाम: (पुं०) मनुष्य क्षेत्र । मनुष्यमात्रं (नपुं०) नरमात्र । (वीरो० १६ / २० ) मनुष्यलोकः (पुं०) मनुष्य क्षेत्र । (भक्ति० ३५ ) मनुष्ययोनिः (पुं०) मनुज जाति की उत्पत्ति । मनोनिग्रह्यकर (वि०) संवशिन्, वश में किया गया। (जयो०वृ० २५ / २७) मन की शक्ति, आकृष्ट । मनोज: (पुं०) मन का ओज, मन की शक्ति। (जयो०वृ० १६ / ३९ ) ०कामदेव । मनोजन्मनिदेशः (पुं०) पाणिग्रहण संस्कार, कामदेव का निर्देश । (जयो० १ / ६४ ) मनोजन्मन् (वि०) मनोजात। मन से उत्पन्न हुआ। मनोजन्मन् (पुं०) कामदेव, मनोजराज। (जयो० १६ / ३९ ) मनोजिघ्र (वि०) मन से सूंघने वाला । मनोजित् (वि०) मन को जीतने वाला । मनोजित् (पुं०) कामदेव । (वीरो० ११ / ३०) मनोज्ञ (वि०) सुहावना, प्रिय। मनसा ज्ञायन्ते अनुकूलतया । * सुंदर, मृदु । (जयो० १२ / ३३) ० अभिरूप, लोक सम्मत । मनोज्ञधारणा ( स्त्री०) मृदु विचार। ०सुन्दर विचार | मनोज्ञदानं (नपुं०) उचित दान पात्रोचित दान । मनोज्ञजन्मन् (नपुं०) उत्तमजन्म । मनोज्ञराशि: (स्त्री०) सुंदर समूह । मनोज्ञ वाक् (नपुं०) मृदु गिरा। (जयो० १२ / ३३) मनोज्ञा ( स्त्री०) मैनशिल, एक मादक पदार्थ । मनोतापः (पुं०) मन का संताप । मनोदण्डः (पुं०) मन निग्रह | मनोदत्त (वि०) दत्तचित्त, एकाग्र । मनोदाहः (पुं०) मानसिक क्लेश । मनोदुःखं (नपुं०) मानसिक दुःख । मनोपूत (वि०) मन की पवित्रता । मनोपहा (वि०) मन का उपहार । (जयो० १२ / १११ ) मनोप्रणीतः (वि०) सुखद, रुचिकर । For Private and Personal Use Only

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