Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 400
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मनः कुटीर: ०चित (जयो० ३/१) ०हृदय (जयो० १/२१) ० प्रज्ञा- ' मण्डितं तेः किमस्तु नः मनः' (जयो० २८ / १०७) ० समझा, ज्ञान। मनुते (जयो०वृ० १/७३) ० सोच, विचार । मननं मन्यते वाऽनेनेति मनः । * कल्पना, योजना, प्रयोजन, अभिप्राय ० संकल्प, कामना, इच्छा रुचि ० सवार्थग्रहणं मनः । ? ० स्वभाव, प्रकृति । ० मान सरोवर । www.kobatirth.org हृदयगत मनसा मन्यमानानां वचसोच्चरतामिदम् (हित०२) मनःकुटीर : (पुं०) आत्म गेह । (जयो०वृ० १ / १०४) मनःकृ ( नपुं०) मन को स्थिर करना, विचारों को निर्दिष्ट करना । मनः बन्धः (पुं०) मन लगाना । मनःप्रणयनं (नपुं०) मन से होने वाला ज्ञान। (जयो० २३ / ८४ ) 'मनसः प्रणयनं प्रापणमेय महत्त्वं भवेत्' (जयो०वृ० २३/८४) मनः प्रबन्धः (पुं० ) ०चित्त का स्थिरिकरण । समाधि | समाधानि मनः प्रबन्धः । (वीरो० ११ / १६ ) मन:पर्ययः (पुं०) मन से चिन्तन करना। ● मनोगत भाव को जानना। ● मनद्रव्य से प्रकाशित अर्थ परिः सर्वतो भावे, अवनं अवः, अवनं गमनं वेदनमिति पर्याया । ८१५ ० परिस्फुटमयपरिच्छेदन | ० मन की पर्याय का ज्ञान । ०पर के मनोगत अर्थ का होना मन है, मन की पर्याय विशेष का ज्ञान। ०चित्तभ्रमण । (जयो०वृ० २८/६२) मन:पर्ययं मनसो विभ्रमणमाप्तवान्' (जयो०वृ० २८/६२) ० मनः पर्ययज्ञान विशेष ज्ञान के पांच भेदों में मनः पर्यय चतुर्थ ज्ञान है। (समु० ४ / १८ ) मन:पर्ययज्ञानं (नपुं०) ज्ञान के पांच भेदों के चतुर्थ ज्ञान, दूसरे के मन में होने वाली बात का नाम मन है और उसको सिर्फ आत्मा से जान लेना मन:पर्यय ज्ञान है। (स०सू०म०५०१७) मनः पर्यवः (पुं०) मनोगत भाव को जानना, मनः पर्यव ज्ञान । मन: पर्याप्तिः (स्त्री०) मन के आलम्बन रूप शक्ति । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ० मनन शक्ति | मनो वर्गणा से उत्पन्न शक्ति । मनः पर्यायः (पुं०) मन की पर्याय का बोध, मनः पर्यायज्ञान मनः प्रणिधानं (नपुं०) मन की प्रवृत्ति। मनः प्रवृत्तिः (स्त्री०) मन की क्रिया । (सुद० १३० ) मनःस्थलं (नपुं०) चित्तक्षेत्र (जयो० ३/९३) मनसिक (नपुं०) सोचना, ध्यान करना । ० संकल्प करना, निर्धारण करना। मनसिज् (पुं०) कामदेव । (दयो० ६७) मनस्कारः (वि०) मनःप्रिय, मन के योग्य। मनस्कम: (पुं०) चित्ताभोग (जयो० ३ / १०६) ० पूर्ण चेतना । मनीषित मनस्क्षेपः (पुं०) मानसिक अव्यवस्था । मनस्त (अव्य०) [मनस्तस्] मन से, हृदय से (वीरो० ११/२) मनस्विन् (वि०) [मनस् विनि] प्रज्ञावन्त भिज्ञा, पूज्य ०दृढात्मन् । एकाकी सिंहवद्वीरो व्यचरत्स भुवस्तले। मनस्वी मनसि स्वीये न सहायमपेक्षते (वीरो० १० / ३७ ) मनस्विना ( स्त्री० ) विवेकिना। (जयो० १३ / ६३ ) मनस्विनी (स्त्री०) विचारशीला स्त्री दृढ़ प्रतिज्ञनारी उदारमना स्त्री । मनाक (अव्य० ) [मन्+आक] जरा सा थोड़ा सा किञ्चिदपि। (जयो० २३/३२) (सुद० ७६) ० जातुचिदपि (जयो० ४/२५ ) ०स्वल्पार्थ (जयो० ३/३४) 'मनाङ् न चित्तेऽस्यपुनर्विकारः ' (सुद० ९९ ) ०शनैः शनैः, विलम्ब से । मनाका (स्त्री० ) [ मन्+आक्+टाप्] हथिनी । मनाग्विलम्बनं (नपुं०) कुछ बिलम्ब, कुछ देरी । (जयो०१३/६) मनिन् (वि०) [मन+क्त] ज्ञात, प्रत्यक्षज्ञान, समझा हुआ। मनीकं (नपुं०) [मन्+कीकन्] सुर्मा, अंजन। मनीषा ( स्त्री०) प्रज्ञा, बुद्धि, मति, धी। (जयो०वृ० ४ / ११ ) (जयो० ५/२३) ० चाह, इच्छा, धारणा (जयो० ६ / ३१ ) ० शोध, समझ, विचार । (दयो० ४३ ) For Private and Personal Use Only मनीषिका (स्त्री० ) [ मनीषा+कन्+टाप्] ० प्रज्ञा, बुद्धि, समझ मनीषित (वि० ) [ मनीषा इतच् ] ०अभिलषित, वाञ्छित । ०प्यारा, अभीष्ट इष्ट, प्रिय ० कामना, इच्छा, चाह ।

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