Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 399
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मध्यगत ८१४ मनस मध्यगत (वि०) उदरस्थित। (जयो० १७/६९) मध्यकालः (पुं०) दोपहर का समय। मध्यक्रिया (स्त्री०) दोपहर की क्रिया। मध्यकर्णः (पुं०) अर्धव्यास। मध्यगत (वि०) केंद्रीय, मध्यवर्ती। (वीरो० २/१) मध्यगत (वि०) उदरस्थित। मध्यगत (पुं०) अवधिज्ञान। मध्यगहणं (नपुं०) आम्र तरु। मध्यग्रहणं (नपुं०) मध्य का ग्रहण। मध्यदिनं (नपुं०) दोपहर। मध्यदीपकं (नपुं०) दीपक अलंकार की एक भेद। आले में स्थित दीपक। मध्यदेशः (पुं०) उदर, कटिभाग, उदराधो भाग। (जयो०३/४७) ०मध्यवर्ती स्थान, मध्यभाग। (जयो० ११/९५) मध्यदेहः (पुं०) कमर, उदर भाग। मध्यपदं (नपुं०) मध्यवर्ती पद। मध्यपातः (पुं०) सहधर्मचारिता। ०समागम। मध्यभागः (पुं०) कटिदेश, कमर भाग। (जयो० १२/२५) मध्यभावः (पुं०) बीच की स्थिति। मध्यम (वि०) [मध्ये भव:-मध्य+म] •बीच में स्थित, केंद्रीय। ०मध्यवर्ती। ०तटस्थ। मध्यमः (पुं०) संगीत का स्वर, पंचम स्वर। (जयो० ११/४७) मध्ययवः (पुं०) एक तौल विशेष, सरसों के छह दानों बराबर एक तौल। मध्यम-आत्मन् (पुं०) प्रमत्तविरत आत्मा। मध्यम-उपवासः (पुं०) एकाशन पूर्वक मात्र पानी का ग्रहण, समस्त आहार के परित्याग के साथ पानी का एकाशनपूर्वक ग्रहण। मध्यमपदं (नपुं०) संख्यात्मक पद। मध्यमपात्रं (नपुं०) संयतासंयत पात्र, शील और व्रतों की भावना रहित सम्यग्दृष्टि मध्यमपात्र है। मध्यमबुद्धिः (स्त्री०) मध्यम आचार परक बुद्धि। मध्यमलोकः (पुं०) मृदंगाकार लोक, मध्यलोक। (जयो०वृ० १/७९) मेरु पर्वत के प्रमाण है अर्थात् वह मेरु पर्वत की ऊंचाई के बराबर गोल आकार में स्वयं भूरमण समुद्र पर्यन्त अवस्थिता है। मध्यमवृत्ति (स्त्री०) संयत स्वभाव। (जयो० ) मध्यमसंग्रहः (पुं०) गुप्तप्रेम। मध्यमिका (स्त्री०) [मध्यम+टाप्] वयस्क कन्या, यौवना। मध्यरेखा (स्त्री०) केंद्रीय रेखा। मध्यरात्रिः (स्त्री०) आधी रात। मध्यलोकः (पुं०) मृदंगाकार लोक, लोक मध्य में झालर के समान आकर वाला है। मध्यवयस् (पुं०) प्रौढावस्था। मध्यवृत्तिधारक (वि०) मध्यम आजीविका को धारण करने वाला श्रावक। (जयो०वृ० १/११३) मध्यस्थ (वि०) समभाव में स्थित रहने वाला, राग द्वेष से रहित, तटस्था (सुद० १११) राग-द्वेषयोरन्तरालं मध्यम्, तत्र स्थितो मध्यस्थ। मध्यस्थवृत्ति (स्त्री०) तटस्थव्यवहार। (वीरो० ६/७) समभाव की दृष्टि। मध्याह्न (पुं०) दोपहर का समय। मध्याह्नकालः (पुं०) दोपहर। मध्याह्नसमयः (पुं०) दोपहर। (जयो० १९/७२) द्विप्रहर (जयो०१० १३/६८) मध्वः (पुं०) वेदांत सूत्र के भाष्यकर्ता मध्वाचार्य। मध्वकः (पुं०) [मधु+अक्+अच्] भ्रमर, भौंरा। मध्वानवः (पुं०) मधुरता का प्राप्त होना, मधुरता निकलता, एक ऋद्धि, जिस ऋद्धि से आहार रसमयता को प्राप्त हो जाते हैं। मध्वास्रवी (स्त्री०) एक ऋद्धि विशेष, जिससे पाणिपुर में स्थित आहार शीघ्र मधुरता को प्राप्त हो जाते हैं। मन् (अक०) सोचना, विचारना। कल्पना करना, विश्वास करना। चिन्तन करना, मनन करना। मन् (सक०) मानना, देखना, समझना। (मनुते० जयो०५/२०) ०सोचना, विश्वास करना, कल्पना करना। (सुद० ३/३८) चिंतन करना, विचारना। मानना, समझना, सोचना। विचार विमर्श करना, परीक्षण करना। अन्वेषण करना, खोजना। मननं (नपुं०) [मन् ल्युट्] सोचना, विचार विमर्श करना। चिंतन, संज्ञान, अवधारणा। मनस् (नपुं०) [मन्यतेऽनेन मन् करणे असुन्] ०अनिन्द्रिय। For Private and Personal Use Only

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