Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 391
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मञ्जुवृत्तं मञ्जुवृत्तं (नपुं०) निर्दोष छन्द, मनोहर आचरण । मञ्जुलस्य सुंदरस्य मनोमोहकस्य वृत्तस्याचरणस्य यो विभवः' (जयो०वृ० ३/११) मञ्जूनां निर्दोषाणां वृत्तानां छन्दसां विभवस्य आनन्दस्य अधिकारिणी (जयो०वृ० ३/११) मञ्जुसमीरणं (नपुं०) मन्द मन्द पवन, मनोज्ञ हवा (समु० ६/३३ ) ०लुभावनी / प्रिय / सुखद पवन । मञ्जुस्वरं (नपुं०) सुंदर स्वर । मञ्जूपासकः (पुं०) हर्षयुक्त उपासक । (जयो० १ / ११३ ) मञ्जूषा (स्त्री०) [म+ऊपन्+टाप्] ०करण्डिका, डिब्बी, संदूक ०पेटी आधार पिटारा | ० टोकरी, ० मजीठ | www.kobatirth.org ० पत्थर । मटकी (स्त्री० ) [ मट्+अप्छीष्] ओला, बर्फ पिण्ड मठ् ( अक० ) रसना, बसना, निवास करना । मठ् (सक०) पीसना । ० जाना, पहुंचना । मठ: (पुं०) [मठत्यत्र मठ घनर्थं क] ० शिक्षालय, विद्यामंदिर, ज्ञानकेन्द्र | ० मठ, कुटिया, उपाश्रय, उपासनागृह, आराधना स्थान | ०देवालय, मन्दिर । मटर (वि०) [मन्+अट्ठ अन्तादेशः] मदहोश, नशे में धुत्त । शराबी। मठिका (स्त्री० ) [ मठ+कन्+टाप्] ०कुटी, ०कुटिया, ०घास-फूंस का छोटा घर, कुटीर | ० मठी (स्त्री०) कुटी, कुटिया । मण ( सक०) बजाना, गुनगुनाना । । मणि: (स्त्री० ) [ मण्+इन्ङीप् ] रत्न मोती, आभूषण (जयो०वृ० ३ / ७९) (सुद० ३९) ० मणिबन्ध, कलाई। ०जड़ी। (दयो० ७७) ० जलकलश | मणिकः (पुं०) जलकुम्भ, जलपान, मटकी (जयो० २/११३) कलश। (जयो० ११/३७) मणिकण्ठः (पुं०) नीलकण्ठ पक्षी । मणिकण्ठकः (पुं०) मुर्गा, कुक्कुटा मणिकाननं (नपुं०) ग्रीवा, गर्दन। मणिकार: (पुं०) जौहरी, रत्नपरीक्षा (जयो० ७/८ ) ८०६ मणितारकः (पुं०) सारस पक्षी । मणिदर्पण: (पुं०) रत्नजटित दर्पण | मणिधनु (नपुं०) इन्द्रधनुष । मणिपुर: (पुं०) नाभि । मणिबन्धः (पुं०) कलाई। मणिभू (स्त्री०) रत्नजटित भूमि, मणिमय आंगन । मणिभूमि (स्त्री०) मणियों का क्षेत्र शोभा। मणिभूजांशु (नपुं०) रत्नजटित आभूषण (जयो० १२/१३३) मणिमन्थं (नपुं०) सेंधा नमक । मणिमाला (स्त्री०) रत्नमयी हार। ०कान्ति, आभा, प्रभा लक्ष्मी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ०सजाना, शोभित करना । ०घेरना। ० एक छन्द नाम। मणिमाणिक्कं (नपुं०) मणि एवं मणिक्य (वीरो० १५/४८) मणियष्टिः (स्त्री०) मणिमय लड़ी। मणिरत्नं (नपुं०) आभूषण, रनजडित अलंकार । मणिरागः (पुं०) सिन्दूर ! मणिशिला ( स्त्री०) रत्नमयी शिला, रत्नमयी पाण्डुकशिला । मणिसूत्रं (नपुं०) मोतियों की लड़ी। मणिसोपानं (नपुं०) रत्नजटित सीढ़िया । मणिस्तम्भ: (पुं०) स्फटिक भवन। मणिहर्म्यं (नपुं०) स्फटिक भवन । मणीचकः (पुं०) [मणि+चक्+अच्] राम चिरैया। मणीचकं (नपुं०) चन्द्र कान्तमणि । मणीनिहान्त ( वि०) हीरकाछिन्न। (जयो० २४/३८) मणीवकं (नपुं०) पुष्प । मण्ड् (सक० ) अलंकृत करना । ० विभक्त करना, विभाजित करना । ० बांटना | मण्डकः ०धारण करना, पहनना। मण्डः (पुं० ) [ मण्ड्+अच्] ०माड, मलाई, झाग । For Private and Personal Use Only ०उफान, ०रस, सत् । ० आभूषण, श्रृंगार, ० एरण्डतरु | मण्डकः (पुं० ) [ मण्ड्+कन्] कसार, आटे को सेंककर शक्कर युक्त मीठा कसार । ० फुलका, पतली रोटी।

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