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नासापरिस्रावः
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निःश्रयणी
नासापरिस्रावः (पुं०) नाक का बहना, सर्दी लगना।
० स्थायित्व। नासापुट (नपुं०) नथुआ, नथुना, नाक के विवर, नाक छिद्र। ० कुशलतानिपुण। नासारन्ध्र (नपुं०) नथुआ, नथुना।
० नियन्त्रण, निग्रह, निरोध। नासावंशः (पुं०) नाक की हड्डी।
० आश्रय, शरण। नासासंस्कारः (पुं०) नाक का मैल निकालना, नाक साफ | नि:कांक्षितः (पुं०) देशकांक्षा और सर्वकांक्षा रहित सम्यग्दृष्टि। करना।
कांक्षा न होना (सम्य० ९१) 'कांक्षानिरासो वा नि:कांक्षता' नासाम्रावः (पुं०) नाक बहना।
जो ण करेदि दुक्खं कम्मफले तह य सव्वधम्मेसु। सो नासिका (वि०) [नास्+ण्वुल्+टाप्] नाक, घ्राण।
णिक्कंखो चेदा सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो।। (समयसार २४८) नासिक्य (वि०) [नासिका+ण्यच्] अनुनासिक, नाक में होने | निःश्रयणी (स्त्री०) नसैनी, सीढ़ी, जीना, पदपंक्ति, सोपानवाला।
'निश्चिता श्रेणिः सोपानपंक्तिः।' नासिक्यः (पुं०) नाक, घ्राण।
नि:श्रेणिः (स्त्री०) खजूरवृक्षा निःश्रोणिरधिरोहिण्यां खजूरी नासीरं (नपुं०) [नासाय-इते-ईर+क] सेना का अग्रभाग, पादपे स्त्रियाम् इति वि (जयो० २४/५) आगे बहना।
निःश्रेणी (स्त्री०) नसैनी, सीढी, सोपान। (जयो० ११/५, नास्ति (अव्य०) [न+अस्ति] यह नहीं है, असद्भाव, एक ___मुनि० ११)
अंश का अभाव। नहीं है। (सुद० ९४) परकीय द्रव्य, निःशेषीकरणं (नपुं०) समस्त, पूर्ण। (जयो० २/११०) क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा नास्ति रूप। ० स्याद्वाद निःश्रेयसः (पुं०) मोक्ष, मुक्ति, रत्नत्रय, अपवर्ग। (जयो० सिद्धान्त की एक पद्धति, जिसमें वस्तु का सर्वथा निषेध | १२/२८) समस्त कर्मों की अभाव रूप अवस्था। या अभाव नहीं किया जाता, अपितु कोई भी वस्तु से | निःशङ्कः (पुं०) भय रहित, दृढ़ श्रद्धशील, देशशंका और विरुद्ध धर्म के बिना पूर्णता को प्राप्त नहीं होती है।
सर्वशंका रहित। निर्गतो निः शंकस्तस्य भावो निःशंकता नास्ति-अवक्तव्यं (नपुं०) स्याद्वाद सिद्धान्त का छटा भंग, (मूला०वृ० ५/४)
वस्तु के सद्भाव और असद्भाव में युगपत विवक्षित होना। ० संदेहाभाव। (सम्य० ९०) नास्तिकः (पुं०) नास्तिक पुरुष, धर्म, देश और गुरु से रहित ० शंकानिरास। (दयो० ९९) पुरुष नास्तिक है। (वीरो०वृ० १/३४)
० सन्मार्गे अंसशया। ० अनीश्वरवादी, विश्वास नहीं रखने वाला, आगम | निःशङ्कितः (पुं०) संदेहाभाव, सगुण। (भक्ति०७) 'निर्गतं वि प्रामाणिकता को नहीं मानने वाला।
शंकितं यस्मादसौ निःशङ्कितम्। नास्तिकत्व (वि०) नास्तिक वादपना। (जयो०५/४४) निःशेष (वि०) १. पूर्ण सुखाना (जयो० १/२६) २. अखिल नास्तिक्यं (नपुं०) [नास्तिक+ष्यञ्] नास्तिकता।
(दयो० १/५६) ३. कुछ भी नहीं। (सुद० ३५) नास्तिता (वि०) नास्तिकपना। (वीरो० १९/१३)
निःशर्वरीत्व (वि०) रात्रि का अभाव। नास्तिद्रव्यं (नपुं०) अर्थान्तर रूप द्रव्य, 'घट से भिन्न पर ___० स्त्री का अभाव। (जयो० १८४४३) द्रव्या '
० ब्रह्मचारित्व। नाहः (पुं०) [नह+घञ्] ० बन्धन, निग्रह, ० फंदा, जाल, ० निःशाणं (नपुं०) ध्वजदण्ड। (जयो० १९/६०) मलाविरोध।
निःशेषता (वि०) सम्पूर्णता (दयो० १६) सदाचर। नाहुषः (पुं०) एक नृपति का विशेषण।
निःशेषवाचनाविनयः (पुं०) विवक्षित आगम की वाचना में नि (अव्य०) संज्ञा के पूर्व लगने वाला उपसर्ग-० नीचे की | विनय सूत्र, अर्थ, हित और नि:शेष में विनय। ओर, निम्नता निषद।
निःश्वसंतः (पुं०) श्वासोच्छवास युक्त। (जयो०८/८४) ० समूह, संग्रह, निकर, निकाय।
निःशत्रः (वि०) शत्रुशून्य, शूरवीर। (जयो० ६/१०९) ० तीव्रता, निगृहीत।
निःक्षेपः (पुं०) [निर्+क्षिप्+घञ्] फेंकना, भेजना, व्यय ० निदेश, आदेश।
करना।
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