Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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भिदकः
७८७
भिषज्जितं
भंग करना, तोड़ डालना। ०हटाना, दूर करना। विघ्न डालना, रूकावट करना। ०बदलना, परिवर्तन करना। खिलाना, फुलाना, फैलाना। ०खोलना, वियुक्त करना, विभाजित करना।
नष्ट करना (सम्य० ४१) भिदकः (पुं०) असि, तलवार। भिदकं (नपुं०) वज्र, हीर कणी। भिदा (स्त्री०) [भिद्+अ+टाप्] ०तोड़ना, भेदना, फाड़ना।
विदीर्ण करना, फैलाना।
अन्तर, वियोग। ०प्रकार, जाति।
भेदभाव, भिन्नता (जयो० ९/४७) (जयो०८/३) भिदिः (स्त्री०) वज्र, हीरा। भिदुर (वि०) [भिद्+उरच्] तोड़ने वाला, भेदने वाला।
मिला हुआ, संश्लिष्ट। भिद्यः (पुं०) [भिद्+क्यप्] प्रवाह शील नदी। भिडं (नपुं०) [भिद्+टक्] वज्र, हीरा। भिन्दपालः (पुं०) छोटा भाला, गोफिया। भिन्न (भू०क०कृ०) [भिद्+क्त] ०विर्दीर्ण, विदारित।
(जयो०८/३०) विच्छिन्न, पृथक् किया गया। (सुद० १०३) टूटा हुआ, फूटा हुआ, खण्डित हुआ, दरार युक्त हुआ तरड़गत। ०खुला हुआ, फैला हुआ।
अलग, इतर, पृथक्। । विविध रूप वाला, नाना प्रकार का।
विचलित, परिवर्तित। भिन्नः (पुं०) दोष, खोट। भिन्नं (नपुं०) अंश, भाग, हिस्सा।
भिन्न राशि। भिन्नकरटः (पुं०) मदोन्मत्त हाथी। भिन्नकूट (वि०) नेत्रहीन। भिनक्रम (वि०) क्रमहीन, क्रमरहित। भिन्नगति (स्त्री०) पृथक् चाल, इधर-उधर की गति। भिन्नगर्भ (वि०) अव्यवस्थित। भिन्नगुणनं (नपुं०) भिन्न-भिन्न राशियों का गुणा।
भिन्नघनः (पुं०) भिन्न राशि का घात, भिनघनफल। भिन्नदर्शिन् (वि०) अंतर देखने वाला आंशिक। भिन्नदृष्टि (वि०) पृथक्-पृथक् भेद। भिन्न-भिन्न रुचिः (स्त्री०) वितर्क। (जयो० ४/२८) भिन्न-मतानुयामी (स्त्री०) भिन्न मत वाले। (सम्य० ८२) भिन्नमर्मन् (वि०) आहत, घायल। भिन्नमर्याद् (वि०) निरादर युक्त, मर्यादा रहित।
असंयत, अनियंत्रित। भिन्नरूचिः (स्त्री०) अलग रुचि रखने वाला। भिन्नलिङ्गं (नपुं०) वचन असंगति, वचन दोष। भिनरचना (स्त्री०) रचना में लिंग दोष, काव्यगत दोष। भिन्नवर्चस् (वि०) मलोत्सर्ग करने वाला। भिन्नवृत्त (वि.) परित्यक्त, जीवन के प्रति निराशा रखने वाला। भिन्नसंहति (स्त्री०) विघटित। भिन्नस्वर (वि०) बेसुरा, बदली हुई आवाज वाला। भिन्नहृदय (वि०) हृदयाघात युक्त, विदीर्ण हृदय वाला। भिरिटिका (स्त्री०) श्वेतगुंजा, सफेद घुघुची, एक प्रकार का
पौधा। भिल्लः (पुं०) [भिल+लक्] भील, एक आदिवासी जाति।
(वीरो० ११/२१) (सुद० ४/१७) स आह भो भव्य!
पुरूरवाङ्ग। (वीरो० ११/२१) भिल्लतनया (स्त्री०) भील की पुत्री। (जयो० २१/४९) भीलनी
(मुनि० १३) (सुद० ४/२८) भिल्लतम (पुं०) लोध्रवृक्षा। भिल्लनी/भिल्लिनी (स्त्री०) भीलनी, आदिवासी स्त्री। भिल्लभूषणं (नपुं०) धुंघची का पौधा। भिल्लाङ्गज (वि०) भील जाति में उत्पन्न-भिल्लाङ्गजश्चेत
सगभूत्कृतज्ञः गुरोऋणीत्थं विचरेदपिज्ञः। (वीरो० १७/३१) भिल्लोटः (पुं०) [भिल्ल प्रियं उटं पत्रं यस्य] लोध्रवृक्षा भिष (वि०) पीड़ित हुआ। (सुद०७४) भिषग (पुं०) वैद्य-'भिषगायुर्वेद विद्वैधः शस्त्रकर्मविच्चा (जैन०ल०
८/६६) भिषग्वरः (पुं०) श्रेष्ठ वैद्य। (समु० ४/१२) भिषग्वृत्तिः (स्त्री०) हीन आजीविका। भिषज् (पुं०) [बिभेत्यस्मात् रोगः भी+षुक्-हस्वश्च] वैद्य,
चिकित्सक। (दयो० ६४) भिषज्जितं (नपुं०) औषधी, दवा। निदान। भिस्सा (स्त्री०) [भस्+स, टाप्] उबाले गए चावल, भात।
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