Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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भूराष्ट्रः
७९४
भूषणानुगत
भूराष्ट्रः (पुं०) पृथिवी समूह। (सुद० १०५) भूराश्रित (वि०) पृथिवी के आश्रित।
भूरा कवि के आधारभूत। (सुद० १०९) भूरि (वि०) [भू+किन्] ०बहुल, अधिक, ज्यादा। (जयो०
५/१०५)
नाना, बहुविधा (जयो० २२/२०) ०प्रचुर, विपुल। ०असंख्य, यथेष्ट, पर्याप्त। बृहद्, बड़ा हुआ। बहुत-दुरङ्गितं भूरि चकार तावन्न तस्य किञ्चिद्विचकार
भावम्। (सुद० १०३) भूरि (पुं०) ब्रह्मा, शिव। भूरि (नपुं०) स्वर्ण, सोना। भूरि (अव्य०) अधिक, बहुत। (सुद० १०३) बारं बार, प्रायः।
(जयो० ४/५६) भूरिगमः (पुं०) गर्दभ, गधा। भूरिगेहं (नपुं०) बड़ा घर। भूरिजनः (पुं०) बहुत से लोग। (वीरो० २२/२४) भूरितेजस् (वि०) अति प्रभावान्। देदीप्यमान। भूरितेजस् (पुं०) अग्नि, आग। भूरिदक्षिण (वि०) उपहार की प्रचुरता। भूरिदरीमय (वि०) नाना गुहात्मक। चयाश्रयो भूरिदरीमयोऽसको
स को पुनः कोऽस्य गिरेऽस्तु यः समः। (जयो० २४/२०) भूरिदानं (नपुं०) प्रशंसात्मक दान, विपुल दान, प्रचुर उपहार,
श्रेष्ठ पुरस्कार।
०धनी व्यक्ति। भूरिधन (वि०) पर्याप्त धन वाला। धनाढ्य, धन सम्पन्न। भूरिधा (अव्य०) नाना प्रकार का। 'भूरिधा कथाधारः' |
(जयो० ६/२४) भूरिधान्य (वि०) विपुलधान्य युक्त, प्रचुरधान्य युक्त।
भूरिधान्यस्य विपुलन्नस्य। (जयो०० ४/५८) भूरिधा
अनेकप्रकारेण अन्येषां हिते वृत्तिमती वा। (जयो० ४/५८) भूरिधामन् (वि०) विपुल प्रभावान्, उत्तम कान्ति युक्त। भूरिप्रयोग (वि०) अधिक उपयोग वाला। भूरिप्रेमन् (पुं०) चकवा पक्षी। भूरिभाग (वि०) वैभव से परिपूर्ण, धनाढ्य। भूरिभू (स्त्री०) नाना प्रकार की पृथ्वी। (जयो० ५/३७) भूरिभूपालवर्गः (पुं०) विपुल नृप समूह, बड़े-बड़े राजा लोग।
(जयो० ७/६)
भूरिमायः (पुं०) गीदड़, लोमड़ी। भूरिरसः (पुं०) इक्षु, ईख, गन्ना। भूरिलाभ (वि०) अधिक लाभ, पर्याप्त लाभ। भूरिविक्रम (वि०) श्रेष्ठ योद्धा, बहादुर सिपाही। भूरिवृष्टिः (स्त्री०) अत्यधिक वर्षा। भूरिशस् (अव्य०) अनल्प। (जयो० ४/५३)
०बहुविध, नाना प्रकार का। (जयो० २/२९) ०प्रायशः। (जयो २/५४) ०अत्यधिक, बहुत (दयो० २५) ०बहुत, प्रचुर, पर्याप्त। (जयो० ७/१२)
मुहुर्मुहु, बार बार (समु० ५/९) भूरुहः (पुं०) तरु, वृक्ष। (जयो० २/९३) ०पादप। भूर्जनः (पुं०) [भू+ऊर्जू+अच्] भोजपत्र तरु। भूर्णिः (स्त्री०) [भृ+नि] भूमि, भू, धरा, धरती। भूर्विभक्तिभृत (वि०) भू शब्द के उच्चार से रहित।
(जयो० २८/५१) भूलोकः (पुं०) पृथिवीमण्डल। (जयो०१० ५/९०) भूवलय (नपुं०) पृथिवी का गोलाकार। (समु० १/२५)
०धरातल, भूतल। (जयो० ८/२९) भूव्यापि (वि०) लोक व्यापि, समस्त देश में व्याप्त होने
वाली। (वीरो० १३/२३) भूशय्या (स्त्री०) भूमिशयन। (मुनि० २०) क्षितिशयन। भूषु (सक०) अलंकृत करना, सजाना, विभूषित करना,शृंगार
करना। (जयोवृ० १४८६) फैलाना, बोरना, बिछाना। 'भूषणैर्भूषयामास
जगदेकविभूषणम्' (वीरो०७/३७) भूषं (नपुं०) आभूषण, आभरण। (जयो० २२/५) भूषणं (नपुं०) [भूष्+ल्युट्] ०आभूषण। (जयो० ५/६१)
भूषणेषु नानामणिनिर्मितेषु कङ्कण केयूर-नूपुरादिषु। (जयो० ५/६१)
अलंकार-अलंकरण। (जयो० )
०श्रृंगार, सजावट। भूषणच्छटा (वि०) अलंकार युक्त। 'भूषणस्य छटामलङ्कार
शोभाम्।' (जयो०वृ० २/२८) भूषणता (वि०) अलंकरणता, शृंगारता।
०अनुरञ्जकता। (जयो० २/५३)
रमणीयता, सौंदर्यता। (समु० ५/३) भूषणानुगत (वि०) अलंकरण को प्राप्त, शोभा के गुणों को
प्राप्त। (जयो० ५/६८)
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