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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूराष्ट्रः ७९४ भूषणानुगत भूराष्ट्रः (पुं०) पृथिवी समूह। (सुद० १०५) भूराश्रित (वि०) पृथिवी के आश्रित। भूरा कवि के आधारभूत। (सुद० १०९) भूरि (वि०) [भू+किन्] ०बहुल, अधिक, ज्यादा। (जयो० ५/१०५) नाना, बहुविधा (जयो० २२/२०) ०प्रचुर, विपुल। ०असंख्य, यथेष्ट, पर्याप्त। बृहद्, बड़ा हुआ। बहुत-दुरङ्गितं भूरि चकार तावन्न तस्य किञ्चिद्विचकार भावम्। (सुद० १०३) भूरि (पुं०) ब्रह्मा, शिव। भूरि (नपुं०) स्वर्ण, सोना। भूरि (अव्य०) अधिक, बहुत। (सुद० १०३) बारं बार, प्रायः। (जयो० ४/५६) भूरिगमः (पुं०) गर्दभ, गधा। भूरिगेहं (नपुं०) बड़ा घर। भूरिजनः (पुं०) बहुत से लोग। (वीरो० २२/२४) भूरितेजस् (वि०) अति प्रभावान्। देदीप्यमान। भूरितेजस् (पुं०) अग्नि, आग। भूरिदक्षिण (वि०) उपहार की प्रचुरता। भूरिदरीमय (वि०) नाना गुहात्मक। चयाश्रयो भूरिदरीमयोऽसको स को पुनः कोऽस्य गिरेऽस्तु यः समः। (जयो० २४/२०) भूरिदानं (नपुं०) प्रशंसात्मक दान, विपुल दान, प्रचुर उपहार, श्रेष्ठ पुरस्कार। ०धनी व्यक्ति। भूरिधन (वि०) पर्याप्त धन वाला। धनाढ्य, धन सम्पन्न। भूरिधा (अव्य०) नाना प्रकार का। 'भूरिधा कथाधारः' | (जयो० ६/२४) भूरिधान्य (वि०) विपुलधान्य युक्त, प्रचुरधान्य युक्त। भूरिधान्यस्य विपुलन्नस्य। (जयो०० ४/५८) भूरिधा अनेकप्रकारेण अन्येषां हिते वृत्तिमती वा। (जयो० ४/५८) भूरिधामन् (वि०) विपुल प्रभावान्, उत्तम कान्ति युक्त। भूरिप्रयोग (वि०) अधिक उपयोग वाला। भूरिप्रेमन् (पुं०) चकवा पक्षी। भूरिभाग (वि०) वैभव से परिपूर्ण, धनाढ्य। भूरिभू (स्त्री०) नाना प्रकार की पृथ्वी। (जयो० ५/३७) भूरिभूपालवर्गः (पुं०) विपुल नृप समूह, बड़े-बड़े राजा लोग। (जयो० ७/६) भूरिमायः (पुं०) गीदड़, लोमड़ी। भूरिरसः (पुं०) इक्षु, ईख, गन्ना। भूरिलाभ (वि०) अधिक लाभ, पर्याप्त लाभ। भूरिविक्रम (वि०) श्रेष्ठ योद्धा, बहादुर सिपाही। भूरिवृष्टिः (स्त्री०) अत्यधिक वर्षा। भूरिशस् (अव्य०) अनल्प। (जयो० ४/५३) ०बहुविध, नाना प्रकार का। (जयो० २/२९) ०प्रायशः। (जयो २/५४) ०अत्यधिक, बहुत (दयो० २५) ०बहुत, प्रचुर, पर्याप्त। (जयो० ७/१२) मुहुर्मुहु, बार बार (समु० ५/९) भूरुहः (पुं०) तरु, वृक्ष। (जयो० २/९३) ०पादप। भूर्जनः (पुं०) [भू+ऊर्जू+अच्] भोजपत्र तरु। भूर्णिः (स्त्री०) [भृ+नि] भूमि, भू, धरा, धरती। भूर्विभक्तिभृत (वि०) भू शब्द के उच्चार से रहित। (जयो० २८/५१) भूलोकः (पुं०) पृथिवीमण्डल। (जयो०१० ५/९०) भूवलय (नपुं०) पृथिवी का गोलाकार। (समु० १/२५) ०धरातल, भूतल। (जयो० ८/२९) भूव्यापि (वि०) लोक व्यापि, समस्त देश में व्याप्त होने वाली। (वीरो० १३/२३) भूशय्या (स्त्री०) भूमिशयन। (मुनि० २०) क्षितिशयन। भूषु (सक०) अलंकृत करना, सजाना, विभूषित करना,शृंगार करना। (जयोवृ० १४८६) फैलाना, बोरना, बिछाना। 'भूषणैर्भूषयामास जगदेकविभूषणम्' (वीरो०७/३७) भूषं (नपुं०) आभूषण, आभरण। (जयो० २२/५) भूषणं (नपुं०) [भूष्+ल्युट्] ०आभूषण। (जयो० ५/६१) भूषणेषु नानामणिनिर्मितेषु कङ्कण केयूर-नूपुरादिषु। (जयो० ५/६१) अलंकार-अलंकरण। (जयो० ) ०श्रृंगार, सजावट। भूषणच्छटा (वि०) अलंकार युक्त। 'भूषणस्य छटामलङ्कार शोभाम्।' (जयो०वृ० २/२८) भूषणता (वि०) अलंकरणता, शृंगारता। ०अनुरञ्जकता। (जयो० २/५३) रमणीयता, सौंदर्यता। (समु० ५/३) भूषणानुगत (वि०) अलंकरण को प्राप्त, शोभा के गुणों को प्राप्त। (जयो० ५/६८) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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