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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूषा ७९५ भृतिका भूषा (स्त्री०) [भूष+क+टाप्] सजाना, शृंगार करना। आभूषण, आभरण, अलंकरण। ०शोभा, सुन्दरता। आभा, कान्ति, दीप्ति। वेशभूषा-परिधान। भूषालम्बित् (वि०) सर्वांग सुंदर परिवेश से युक्त। भूषा तयालम्बिता (जयो० २२/५) 'अम्बरमणिमयभूषे ताभ्यामालम्बितालङ्कृता (जयो० २२/५) भूषित (भू०क०कृ०) [भूष्+क्त] विभूषित, सजाया हुआ। अलंकृत किया गया। भूषिताङ्गिन् (वि०) अलंकृत शरीर वाली। तावत्तु सत्तमविभूषण भूषिताङ्गी। साऽऽलीकुलेन कलिता महती नताङ्गी। (वीरो० ४/२९) भूष्णु (वि०) [भू+ष्णु] होने वाला, बनने वाला। भूस्थानं (नपुं०) भू भाग, भूतल, धरातल। (जयो०वृ० ३/६९) भू (सक०) भरना, पूर्ण करना। (सुद० १/३०) ०रखना, संधारण करना। (सुद० २/४८) फैलाना, विस्तृत करना। (जयो० १/३०) पहनना, धारण करना। बभार वीरश्चतुराननत्वं। (वीरो० १२/४३) ० भोगता, सहन करना। तन्नेत्रयुगं बभार। (वीरो० ६/४) समर्पण करना, प्रदान करना। भृ (अक०) व्याप्त होना, पूर्ण होना। भृकुंश (वि०) स्त्री वेषधारण करने वाला नट। भृकुटिः (स्त्री०) [भ्रवः कुटि] भौंह। भृग (अव्य०) अनुकरणात्मक शब्द। भृगुः (पुं०) [भ्रस्+कु] एक ऋषि। 'भुगुसंहिता नामक ग्रंथ। । (जयो० ६/६३) भृगुजः (पुं०) शुक्र। भृगुतनयः (पुं०) शुक्र, भृगु का पुत्र। भृगुशार्दूणः (पुं०) श्रेष्ठ, परशुराम। भगृसंहिता (स्त्री०) एक ग्रंथ विशेष। भृङ्गः (पुं०) [भृ+गन्] ०भ्रमर, भौंरा। (जयो० २७) मधुप (जयो० १८४८) भृङ्गः पुष्पत्वपे खिङ्गे तथा धूम्याट पक्षिणी इति वि (जयो० १५/८) खिङ्गोविट इत्यर्थः। कामुक, लम्पट, व्यभिचारी। भृङ्गजं (नपुं०) ०अगर, ०अभ्रक। एक सुगन्धित लकड़ी। भृङ्गजा (स्त्री०) भांग का पौधा। भङपर्णिका (स्त्री०) छोटी एला। छोटी इलायची। भृङ्गय (अक०) भ्रमर होना, लम्पट होना। (सुद० २/१३) भृङ्गायतेभृङ्गाराज (पुं०) भंवरा, एक बड़ी मक्खी, एक पादप। भृङ्गार (पुं०) मंगल प्रतीक। (जयो० २६/५३) मकरङ्क, झारी। (जयो० १२/५३) ०कलश, घट, पात्र। (जयो० १२/१२१) जलपात्र, करक। (जयो० १६/१३) स्वर्ण कलशा भृङ्गारकः (पुं०) कलश, घट। झारी। भृङ्गारधृत (वि.) भृङ्गार को उठाने वाले, कलश उठाने वाले। 'कलद्वयी भृङ्गारस्य धृतेर्मिषेण' (जयो० १२/१२१) भृङ्गिन् (पुं०) [भृङ्ग इनि] वट वृक्षा भृङ्गी (स्त्री०) [भृङ्ग+इनि+ङीप्] भ्रमरी। (जयो० ११४८) भृङ्गोरुगीतिः (स्त्री०) भ्रमर गुञ्जार, भौरों का गुनगुनाना। (वीरो० ६/२२) भृच्छाय (वि०) सुखकारी छाया। (सुद० ८२) भृच्छिद (वि०) शृंग युक्त, मस्तक युक्त। (जयो० २४/४८) भृज् (सक०) भूनना, तलना। भृटिका (स्त्री०) घुघची का पौधा। भृत (भू०क०कृ०) [भृ+क्त] ०धारण किया हुआ। ग्रहण किया हुआ। ०पोषण किया गया, पाला गया। ०अधिकृत, सहित, सुसज्जित। ०भरा हुआ (सुद० १/३०) परिपूर्ण। 'भ्रियते पोष्यते स्मेति भृतः। भृतक (वि०) [भृतं भरणं वेतनमुपजीवति कन्] वैतनिक, वेतन पर रखा हुआ। भतकः (०) सेवक, अनुचर, नौकर। भूतको वृत्तिकिंकरः भृतकत्व (वि०) अनुचर स्वभाव वाला। (जयो० ९/५) भृतिः (स्त्री०) [भृ+क्तिन्] धारण करना। ०संभालना, सहारा देना। संचालन, संधारण, संरक्षण। मार्ग दर्शन, निर्देशन। आहार। मजदूरी। सेवाश्रम। भृतिका (स्त्री०) जीविकार्जन। (जयो० २७/२९) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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