Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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भोगकर
७९८
भोगोपभोगपरिमाणं
अभीष्ट विषयजनित सुख।
भोगसामग्री (स्त्री०) उपभोग सम्बंधी वस्तुएं। (जयो०वृ० ०एक बार वस्तु का उपयोग होना।
१/२२, १/६६) भोगकर (वि०) उपयोग करने वाला।
भोगाधिपतिः (पुं०) भोग सम्पत्ति युक्त। भोगकृत (वि०) भोग प्राप्त होना।
गरुड। (जयो०वृ० १/४४) भोगकृतनिदानं (नपुं०) भोग योग्य वस्तुओं की प्राप्ति का भोगाधिभुव (वि०) भोगाधिकारी। (जयो० ६/१०)
भाव। ईश्वरत्व, चक्रवर्तित्व आदि की इच्छा करना। भोगाधीनता (वि०) भोग सामग्री के आश्रित होने वाला। भोगगृहं (नपुं०) शयन कक्ष, अन्त:पुर, नारी निकेतन,
(सुद० १०९) स्त्री-आवास स्थान। (जयो०वृ० १/१)
भोगानन्तरं (नपुं०) इन्द्रिय योग के मध्य, नाभि के मध्य भोगजनुष् (पुं०) विद्याधर जन्म। (जयो० २३/७९)
(जयो० ४/६) भोगतृष्णा (स्त्री०) सांसारिक वस्तुओं के उपयोग की इच्छा, | भोगान्तरायं (नपुं०) भोग के विषय में अंतराय/विघ्न। 'यत्प्रभावतो विषयगत वासना की इच्छा। कामेच्छा।
भोगान् न प्राप्नोति तद्भोगान्तरायम्। (जैन०ल० ८७) भोगदेहः (पुं०) भोग शरीर, सुख-दुःख को भोगने वाला
'भोगविग्घयरं भोगंतराइयं' (धव० १५/१४) शरीर। शरीर संबंधी भोग।
भोगिकः (पुं०) अश्व पालक। भोगधरः (पुं०) सर्प, सांप।
भोगिन् (वि०) [भोग+इनि] उपभोक्ता, विलासी, कामी। भोगपतिः (पुं०) परिणीता स्त्री, विवाहिता नारी।
०भोग करने वाला। भोगपदं (नपुं०) अपकर्ष, संतोष, वृथातर्ष। (सम्य० ९९/६४)
०अनुभव करने वाला, उपयोग में आसक्त। भोगपरिमाणक (वि०) भोग योग्य वस्तुओं का प्रमाण करने
भोगिन् (पुं०) सर्प, अहि, नाग। (सुद०३/२८) (समु० ४/११) वाला। भोग-प्रमाण वाला, ०भोग परिमाण वाला।
भोगिनामाधिनायकः (पुं०) फणधारी सर्प, सर्पाणामधिनायकः। भोग पुरुषः (पुं०) भोग प्रधान पुरुष, समस्त वस्तुओं में
(जयो०वृ०२८/६) उपयोग की प्रधानता वाला पुरुष।
सुखसम्पत्तिशाली व्यक्ति। 'भोगिनां सुखोसम्पत्तिशालिनाम्' भोगभुज् (पुं०) सर्प। (जयो० ११/११, वीरो० २१/५) भोगभूमिज (वि०) मंद कषाय से युक्त भोग भूमि में रहने
(जयो०वृ० २९/६)
भोगिनी (स्त्री०) नागकन्या। (दयो० १०९) वाला मनुष्य एवं तिर्यञ्च। भोगभूमिः (जयो०वृ० १/८५)
भोगिनीया (स्त्री०) नागकन्या। भोगभू (जयो० ९/८५) भोगभूरिता (वि०) भोग की अधिकता।
भोगिपदयोगिन् (वि०) भोगियों के पद के योग वाला वैभवशाली। भोगभागः (पुं०) उपयोग का हिस्सा। (समु० ५/४)
(जयो० ५/१६) (पुं०) नागकुमार। (जयो०७० ५/१६) भोगभव्यः (पुं०) सज्जन मनुष्य। (जयो० २२/१)
भोगीन्द्रः (पुं०) शेषनाग, वासुकि। (वीरो० २/२४) भोगगुपरि (वि०) भोग भोगने के ऊपर। (सुद० १०५)
भोगीन्द्रनिवासः (पुं०) सुखी जनों का आवास। नाग आवास। भोगयोग्य (वि०) उपभोग योग्य। (जयो० १७/८४)
'सुखिनां यद्वा नागानां निवासः' (वीरो० २/२४) भोगवती (स्त्री०) भोगवती नाम स्त्री। (सुद०८०)
भोगीशः (पुं०) भोगीन्द्र, शेषनाग। भोगवती (वि०) उपभोग करने वाली। ०कामनारता।
भोगेच्छावती (वि०) भोगों की इच्छा करने वाली। (जयो०७० भोगवस्तु (नपुं०) उपभोग योग्य वस्तु।
६/१०) भोगविनियोगः (पुं०) भोगासक्त। (जयो० २/७५)
भोगोपभोगः (पुं०) भोग और उपभोग। (सुद० १२६) भोगविरक्त (वि.) विषयगत भोगों से रहित। (दयो० ११९) यः सकृत्सेव्यते भावः स भोगो भोजनादिकः। भोगविलासः (पुं०) विषय वासना, इन्द्रिय जन्य आसक्ति। भूषादिः परिभोगः स्यात् पौनः पुन्येन सेवनात्।। (समु०४/२१)
(जैन०ल०८७१) भोगसद्मन् (नपुं०) भोगावास, रनवास, अन्तःपुर, शयनागार। भोगोपभोगपरिमाणं (नपुं०) भोग और उपभोग की वस्तुओं ०रतिकक्ष, काम निकुञ्ज।
का प्रमाण/सीमा निर्धारण। विषय-वासना युक्त स्थान।
द्वितीय गुणव्रत का लक्षण, श्रावक-प्रयोजन की सिद्धि
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