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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भोगकर ७९८ भोगोपभोगपरिमाणं अभीष्ट विषयजनित सुख। भोगसामग्री (स्त्री०) उपभोग सम्बंधी वस्तुएं। (जयो०वृ० ०एक बार वस्तु का उपयोग होना। १/२२, १/६६) भोगकर (वि०) उपयोग करने वाला। भोगाधिपतिः (पुं०) भोग सम्पत्ति युक्त। भोगकृत (वि०) भोग प्राप्त होना। गरुड। (जयो०वृ० १/४४) भोगकृतनिदानं (नपुं०) भोग योग्य वस्तुओं की प्राप्ति का भोगाधिभुव (वि०) भोगाधिकारी। (जयो० ६/१०) भाव। ईश्वरत्व, चक्रवर्तित्व आदि की इच्छा करना। भोगाधीनता (वि०) भोग सामग्री के आश्रित होने वाला। भोगगृहं (नपुं०) शयन कक्ष, अन्त:पुर, नारी निकेतन, (सुद० १०९) स्त्री-आवास स्थान। (जयो०वृ० १/१) भोगानन्तरं (नपुं०) इन्द्रिय योग के मध्य, नाभि के मध्य भोगजनुष् (पुं०) विद्याधर जन्म। (जयो० २३/७९) (जयो० ४/६) भोगतृष्णा (स्त्री०) सांसारिक वस्तुओं के उपयोग की इच्छा, | भोगान्तरायं (नपुं०) भोग के विषय में अंतराय/विघ्न। 'यत्प्रभावतो विषयगत वासना की इच्छा। कामेच्छा। भोगान् न प्राप्नोति तद्भोगान्तरायम्। (जैन०ल० ८७) भोगदेहः (पुं०) भोग शरीर, सुख-दुःख को भोगने वाला 'भोगविग्घयरं भोगंतराइयं' (धव० १५/१४) शरीर। शरीर संबंधी भोग। भोगिकः (पुं०) अश्व पालक। भोगधरः (पुं०) सर्प, सांप। भोगिन् (वि०) [भोग+इनि] उपभोक्ता, विलासी, कामी। भोगपतिः (पुं०) परिणीता स्त्री, विवाहिता नारी। ०भोग करने वाला। भोगपदं (नपुं०) अपकर्ष, संतोष, वृथातर्ष। (सम्य० ९९/६४) ०अनुभव करने वाला, उपयोग में आसक्त। भोगपरिमाणक (वि०) भोग योग्य वस्तुओं का प्रमाण करने भोगिन् (पुं०) सर्प, अहि, नाग। (सुद०३/२८) (समु० ४/११) वाला। भोग-प्रमाण वाला, ०भोग परिमाण वाला। भोगिनामाधिनायकः (पुं०) फणधारी सर्प, सर्पाणामधिनायकः। भोग पुरुषः (पुं०) भोग प्रधान पुरुष, समस्त वस्तुओं में (जयो०वृ०२८/६) उपयोग की प्रधानता वाला पुरुष। सुखसम्पत्तिशाली व्यक्ति। 'भोगिनां सुखोसम्पत्तिशालिनाम्' भोगभुज् (पुं०) सर्प। (जयो० ११/११, वीरो० २१/५) भोगभूमिज (वि०) मंद कषाय से युक्त भोग भूमि में रहने (जयो०वृ० २९/६) भोगिनी (स्त्री०) नागकन्या। (दयो० १०९) वाला मनुष्य एवं तिर्यञ्च। भोगभूमिः (जयो०वृ० १/८५) भोगिनीया (स्त्री०) नागकन्या। भोगभू (जयो० ९/८५) भोगभूरिता (वि०) भोग की अधिकता। भोगिपदयोगिन् (वि०) भोगियों के पद के योग वाला वैभवशाली। भोगभागः (पुं०) उपयोग का हिस्सा। (समु० ५/४) (जयो० ५/१६) (पुं०) नागकुमार। (जयो०७० ५/१६) भोगभव्यः (पुं०) सज्जन मनुष्य। (जयो० २२/१) भोगीन्द्रः (पुं०) शेषनाग, वासुकि। (वीरो० २/२४) भोगगुपरि (वि०) भोग भोगने के ऊपर। (सुद० १०५) भोगीन्द्रनिवासः (पुं०) सुखी जनों का आवास। नाग आवास। भोगयोग्य (वि०) उपभोग योग्य। (जयो० १७/८४) 'सुखिनां यद्वा नागानां निवासः' (वीरो० २/२४) भोगवती (स्त्री०) भोगवती नाम स्त्री। (सुद०८०) भोगीशः (पुं०) भोगीन्द्र, शेषनाग। भोगवती (वि०) उपभोग करने वाली। ०कामनारता। भोगेच्छावती (वि०) भोगों की इच्छा करने वाली। (जयो०७० भोगवस्तु (नपुं०) उपभोग योग्य वस्तु। ६/१०) भोगविनियोगः (पुं०) भोगासक्त। (जयो० २/७५) भोगोपभोगः (पुं०) भोग और उपभोग। (सुद० १२६) भोगविरक्त (वि.) विषयगत भोगों से रहित। (दयो० ११९) यः सकृत्सेव्यते भावः स भोगो भोजनादिकः। भोगविलासः (पुं०) विषय वासना, इन्द्रिय जन्य आसक्ति। भूषादिः परिभोगः स्यात् पौनः पुन्येन सेवनात्।। (समु०४/२१) (जैन०ल०८७१) भोगसद्मन् (नपुं०) भोगावास, रनवास, अन्तःपुर, शयनागार। भोगोपभोगपरिमाणं (नपुं०) भोग और उपभोग की वस्तुओं ०रतिकक्ष, काम निकुञ्ज। का प्रमाण/सीमा निर्धारण। विषय-वासना युक्त स्थान। द्वितीय गुणव्रत का लक्षण, श्रावक-प्रयोजन की सिद्धि For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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