Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 374
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भुक्तं ७८९ भुजभू 'रज्ज-महव्वयादिपरिपालणं भुत्ती णाम, तं भुत्त। | भुजः (पुं०) [भुज+क] भुजा, बाहु। (जयो० १/५२) सौंदर्यसिन्धोः (धव० १३/३५०) कमलैककन्दोपमो भुजोऽसौ विशदाननेन्दो। (जयो० ११/४४) भुक्तं (नपुं०) उपभोग करना। (सुद० ४/३४) ०हस्ति सुंड। भुक्तगेहं (नपुं०) भोगने योग्य गृह। ०झुकाव, वक्र, मोड़। भुक्तभोग (वि०) उपभोक्ता, आनन्द उठाया हुआ। भुजगः (पुं०) [भुज्+भक्षणे क, भुजः कुटिलीभवन् सन् भुक्तिः (स्त्री०) [भुज+क्तिन्] भोजन, आहार। गच्छति+गम+ड] सांप, सर्प, अहि, विषधर। (जयो०७१/६०) (समु० ९/९) (सुद० १३२) भुजगदारणः (पुं०) गरुड़, मोर, मयूर। ०सांसारिक सुख। (जयो० २६/१००) भुजगभुक्त (वि०) सर्पदंश। (जयो० २५/६७) ०संतृप्ति-भुक्ति सम्बंधि तृप्ति। (जयो० २६/३५) भुजगभोजिन् (पुं०) मयूर, गरुड़ पक्षी। उपभोग करना। (दयो० ९८) भुजगीचरा (स्त्री०) सर्पिणी। (जयो० २०/६८) भुक्तिकालः (पुं०) भोजनकाल, भोजन का समय। (जयो० भुजङ्गः (पुं०) [भुजं कुटिलं गच्छतीति भुजङ्ग] (वीरो० ३/१०) २/१२६) [भुजः-सन् गच्छति-गम्+खच्] ०सर्प, सांप, नाग। (जयो० भुक्तिपात्रं (नपुं०) थाली, भोजन करने का पात्र। (सुद० ८/५५) ०अहि। ४/३१) शाकटं चोत्तरीयं च वस्त्रयुग्ममुवाह सा। कमण्डलुं पति, प्रेमी। भुक्तिपात्रमित्येतद्वितीयं पुनः।। (सुद० ४/३१) लौंडा। भुक्तिभाजनं (नपुं०) थोड़ा स्थान। (जयो० २/२१) ०खङ्ग, तलवार। (वीरो० ३/५०) भुक्ति-मुक्तिः (स्त्री०) सांसारिक और पारमार्थिक सुख। भुजङ्गकन्या (स्त्री०) नागिनी कन्या, सर्पकन्या। 'भुक्तिश्च मुक्तिश्च भुक्मुिक्ती त्रिवर्गापवर्गसमपदे द्वे अपि भुजङ्गर्भ (नपुं०) अश्लेषा नक्षत्र। देव्यौ' (जयो०वृ० २६/१००) भुजङ्गभुक् (पुं०) गरुड़, मयूर, केकी। (जयो० १३/८६) भुक्तिरोधः (पुं०) भोजन, पान रोकना। भुजङ्गभुज् देखो ऊपर। ०अहिंसाणुव्रत का अतिचार। भुजङ्गमः (पुं०) [भुज+गम्+खच्]०सर्प, सांप। राहु। अष्ट भुक्तिवर्जित (वि०) उपभोग से रहित। संख्या विशेष। भुक्तोज्झितः (पुं०) झूठा, जूठन, भोग कर डालना। (सुद० भुजङ्गलता (स्त्री०) पान लता, ताम्बूली। ८९, वीरो० ११/३१) भुजङ्गह्न (पुं०) मयूर, केकी। भुक्त्यन्तर (वि०) भोजन के पश्चात् (सुद० १२०) गरुड़। भुग्न (भू०क०कृ०) [भुज्+क्त] विनत, प्रवण, झुका हुआ। भुजज्या (स्त्री०) आधार की लम्बी रेखा। टेड़ा, वक्र। भुजदण्डः (पुं०) बाहुदण्ड, हस्तभाग। (जयो० ६/११३) बाहुवंश भुज् (सक०) झुकाना, मोड़ना, टेड़ा करना। (जयो० १७/६३) निगलना, गले उतारना। भुजदलः (पुं०) हस्त, हाथ, बाहुदण्ड। उपभोग करना, प्रयोग करना। (बुभोज (जयोवृ० १/२१) भुजपाशः (पुं०) बाहु पाश, भुजा की एक पकड़ जिससे गर्दन ०भोग करना, भोगना। (भुनक्ति जयो० २/१५२) को दबोचा जाता है। ०सहना, अनुभव करना। भुजबलंः (नपुं०) भुजसामर्थ्य, भुजशक्ति। खिलाना, भोजन करना। भुजबली (पुं०) भुजबली नामक योद्धा। जिनका अर्ककीर्ति ०शासन करना, सुरक्षा करना। राजा के साथ युद्ध हुआ। (जयो० ८/७५) भुजेन बली ०झेलना, सहन करना। भुजबली-बाहुमूलबलेन युक्तः। (जयो०वृ०८/७५) भुज् (वि०) भोगने वाला, खाने वाला। भुजभू (पुं०) क्षत्रिय-'भुजाभ्यां स्वबाहुभ्यामेव भवति स्वास्तित्वं राज्य करने वाला, शासन करने वाला। रक्षतीति भुजभूस्तस्य क्षत्रियस्य असिधारणं य जीविकाऽस्ति। उपभोग, लाभ। (जयो०वृ०२/११२) सारना For Private and Personal Use Only

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