Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 360
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भयानक: ७७५ भरतेशतुक् भयानकः (पुं०) व्याघ्र। भयान्वित (वि०) भयाक्रान्त, भय युक्त। (जयो०वृ० ६/५) भयभीत हुआ 'भया शोभया भयेन चान्विता' (जयो०७० ५/१००) भयापहारिणि (वि०) भयनाशक। (जयो० २३/२) भयालुता (वि०) भय को दूर करना। (जयो०वृ० १/२९) भयुत (वि०) नक्षत सहित। भैर्नक्षत्रैर्युतस्य (जयो० ४/५९) भर (वि०) धारण करने वाला, देने वाला, भरण पोषण करने वाला। भरः (पुं०) भार, बोझ, वजन। (जयो० २/१३८) भरक (वि०) भार स्थान। (जयो० २५/८७) भरटः (पुं०) [भृ+अटन्] ०कुम्हार। ०कुम्भकार। सेवक। भरण (वि०) परिपूरण, पूर्ति (जयो० ५/८२) निर्वाह करने वाला, आश्रय देने वाला, सहारा देने वाला, पालन-पोषण करने वाला। भरणं (नपुं०) [भृ+ल्युट्] पालन पोषण, निर्वाह करना, आश्रय देना। ०लाना, प्राप्त करना। भारवहन, मजदूरी, भाड़ा। भरणः (पुं०) भरणी नक्षत्र। भरणी (पुं०) भरणी नक्षत्र। भरण्डः (पुं०) [भृ+कण्डन्] ०प्रभु, स्वामी, नाथा राजा, नृप, अधिपति। ०शासका बैल, सांड। भरण्य (वि०) [भरण+यत्] पालन-पोषण करने वाला, आश्रय देने वाला। मजदूरी, भाड़ा। भरण्यभुज् (पुं०) सेवक, भृत्य, वृत्तियुक्त सेवक। भरण्या (स्त्री०) भाड़ा, मजदूरी। भरण्युः (पुं०) नाथ, स्वामी, प्रभु। चन्द्र, सूर्य, अग्नि। मित्र, प्ररक्षक। भरतः (पुं०) [भरं तनोति तन्-ड] ऋषभदेव का ज्येष्ठ पुत्र भरत। (जयो०वृ० १/६६) मरुदेवी रानी का पुत्र। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के सौ पुत्रों में प्रथम पुत्र भरत है, जो षट्खण्डाधिपति चक्रवर्ती हुए। (जयो० ३/८८) भारतवर्ष का इन्हीं से पड़ा। शकुन्तला और दुष्यन्त पुत्र भरत। ०भरतमुनि, नाट्यशास्त्र के प्रणेता। ० नक्षत्र। ०अग्नि। ०चमत्कार युक्त रत्न। (जयो०वृ० १।८८) भरतखण्डं (नपुं०) भारतवर्ष। भरतज्ञ (वि०) नाट्यशास्त्रज्ञ। भरतचक्रवर्तिन् (पुं०) भरत चक्रवर्ती ऋषभपुत्र भरत, जिन्होंने षट्खण्ड विजय के उपरांत चक्ररत्न को प्राप्त किया किया था। भरतनन्दनः (पुं०) भरतपुत्र, अर्ककीर्ति। (जयो० ७/१७) (जयो० ३/५२) भरतपुत्रः देखो ऊपर। भरतभूपतुज (पुं०) भरत राजा का पुत्र अर्कीति। (जयो० ४/१७) भरतभूपस्य तुजं पुत्रमर्ककीर्तिम्' (जयो०४/१७) भरतवन्दनश्चक्रबन्धः (पुं०) एक छन्द भक्तानामनुकूल साधनकर वीक्ष्यार्हतां संस्तवं रङ्गत्तुङ्ग-तरङ्ग- भृदघनवने पोतोयमं प्रीतिदम्। तस्मिंस्तिग्मकरोदये च न इहास्त्वन्तस्तमोनाशनं नरिम्भकसारमद्भुतगुणं वन्दे सदङ्ग पुनः।। (जयो० २०/८९) इसका विशेष अध्ययन-डॉ. किरण टण्डन के द्वारा प्रतिपादित शोध ग्रंथ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य एक अध्ययन पृ० ३५० देखा जा सकता है। भरतवर्षः (पुं०) भारतवर्ष। भरत-सम्राडात्मजत्व (वि०) भरत सम्राट्र के पुत्रत्व को प्राप्त हुआ। (जयो०१० ७/८) भरताङ्गभू (पुं०) ०अर्ककीर्ति भरत के अंग से उत्पन्न। ०भरतात्मज अर्ककीर्ति। (जयो०वृ० ७/१२) भरतात्मजः (पुं०) अर्ककीर्ति। (जयो० ९/२१२) भरतानीकः (पुं०) भरत की सेना, सम्राट्र चक्रवर्ती भरत का सैन्यदल। (जयो० १३/५३) भरतान्वयचन्दः (पुं०) कुलेन्दु, भरत पुत्र अर्ककीर्ति। (जयो०३० ७/१३) भरताधिपः (पुं०) भारतदेश का चक्रवर्ती ऋषभपुत्र भरत। __'भरतमात्रस्य अधिपतेर्नेता इयानेव' (जयो०वृ० ६/११५) भरताभिधानं (नपुं०) भरत नाम। (सुद० १/१३) भरतेशः (पुं०) भरत चक्रवर्ती, भारत का अधिपति। भरतेशतुक् (पुं०) अर्ककीर्ति। भरतेशस्य तुक्-कुमारः (जयो० ६/१४) (जयो० ४/५०) For Private and Personal Use Only

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