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भावमय
७८४
भाषा
भावमय (वि०) भाव सहित। (सम्य० १४०) भावमोक्षः (पुं०) समस्त कर्मों का क्षय होना। भावमोहः (पुं०) मोह कर्म का उदय होना। भावयुति (स्त्री०) क्रोधादि का योग होना। भावयोगः (पुं०) कर्म-नोकर्म रूप परिणमन। भावलिङ्गं (नपुं०) ज्ञान, दर्शन और चारित्र धर्म के पालक
मुनिजना भावलिङ्गी (वि०) आत्म स्वरूप में स्थित रहने वाला। भावलेश्या (स्त्री०) कषायानुरंजित योग। भावलोकः (पुं०) तीव्र राग-द्वेषादि की उत्पत्ति स्वरूप स्थान। भाववधः (पुं०) जीव की शंका से अजीव का घात। भाववर्तनं (नपुं०) गुणतन्तुओं का प्रवर्तन। (जयो० ४/२४) भाववाक् (नपुं०) जीव द्वारा गृहीत शब्द परिणाम। भावविशुद्धिः (स्त्री०) निष्कल्मषता, अन्त:करण की निर्मलता,
आत्मविशुद्धि, स्वभाव को पवित्रता। भाववेदः (पुं०) मोहनीय कर्म रूप परिणाम वाला वेद। भावशस्त्रं (नपुं०) असंयम रूप शस्त्र, दूषित प्रवृत्ति, दुष्प्रणिधान। भावशुद्धि (स्त्री०) भावों की शुद्धता, ०आत्मगत निर्मल
परिणाम। भावश्रमणः (पुं०) चारित्र धारक महाव्रती साधु। भावश्रुतं (नपुं०) क्षयोपशमलब्धि शुद्ध आत्मानुभव रूप श्रुत।
(सम्य० १३१) भावसत्यं (नपुं०) आत्मगत सत्य, परमार्थ सत्य। भावसमाधिः (स्त्री०) ज्ञानादि रूप समाधि। भावसमाहिता (वि०) भाव मनस्क। भावसर्गः (पुं०) मानसिक वृत्तियों का प्रभाव। भावसाधु (पुं०) संयत साधु। 'भावे विचार्यमाणे साधु संयतः। भावसामायिकः (पुं०) आत्म प्रवेशक समभाव। भावसेवा (स्त्री०) दर्पादि से युक्त सेवा। भावस्तवं (वि.) आत्मस्थ भाव वाला। भावस्नानं (नपुं०) ध्यान रूप स्नान। भावागमः (पुं०) यथार्थ बोध कारक आगम। भावाग्निः (स्त्री०) भाव को दग्ध करने वाली अग्नि। भावानुयोगः (पुं०) औदयिक आदि भावों का कथन/व्याख्यान। भावाभिग्रहः (पुं०) भाव युक्त अभिग्रह/नियम। भावासवः (पुं०) मित्थात्वादि कर्म रूप पुद्गलों का आना। भाविक (वि.) प्राकृतिक, वास्तविक, स्वाभाविक, अन्तर्जात। भावित (भू०क०कृ०) [भू+णिच्+क्त] ०उत्पादित, प्रदर्शित,
निदर्शिता
चिन्तित, मथित। मनन किया गया, चिन्तन किया गया।
०स्थापित, सिद्ध, भरा हुआ, व्याप्त। भावित्रं (नपुं०) तीन लोक। भाविन् (वि०) [भू+अनि+णिच्] घटित होने वाला, आगामी
काल सम्बंधी, अनागत। (सम्य०८)
उत्कृष्ट, भव्य, उचित। भाविनि (वि०) भविष्य में होने वाली। (सुद० ४/१६) भाविवस्तु (नपुं०) भविष्यत् काल का दर्शन, ०अनागत वस्तु। भाविशोभावनं (नपुं०) भविष्यच्छी परिरक्षण। (जयो० ३/७१) भाविसिद्ध (वि०) भविष्य में सिद्ध होने वाला। भावीष्ट (वि०) अनागत इष्ट। (मुनि० २१) भावैकनाथः (पुं०) लोकत्रयनाथ। भावानां प्राणिनां विभूतीनां
वा, एकोऽद्वितीयश्चासौ नाथः (जयो०वृ० १/३७) भावैकान्तः (पुं०) विवक्षित वस्तु 'सत्' ही है, ऐसा कथन।
केवल सत्ता को ही स्वीकार करता। भावोज्झित (वि०) भाव से त्याग करने वाला। भावोत्थ (वि०) भाव से उत्पन्न। (सम्य० ९४) भावोद्योतः (पुं०) लोक-अलोक को प्रकाशित करने वाला
ज्ञान। भावोपक्रमः (पुं०) दूसरे के हृदयगत अभिप्राय का यथार्थ ज्ञान। भाव्य (वि०) [भू+उकञ्] ०घटित होने वाला, होने वाला। ०समृद्ध, प्रसन्न।
शुभ, मंगलप्रद। भाव्यं (नपुं०) प्रारब्ध, अवश्यंभावी। भाष् (अक०) कहना, बोलना, (भाण) (सुद० ११०) पुकारना,
उच्चारण करना। (सुद० ८४)
घोषणा करना, उद्बोधन देना। ०भाषण देना, उपदेश देना।
०समाचार देना, संदेश पहुंचाना। भाषक (वि०) भाषालब्धि से युक्त। 'भाषालब्धिसम्पन्नाः
भाषकाः' (जै०ल०८६१) भाषणं (नपुं०) [भाष्+ल्युट्] ०बोलना, कहना, समझाना।
कथन, प्रवचन, निरूपण। भाषणपटुता (वि०) वाग्मित, वचन की चतुराई। (जयो०
३/२९) भाषा (स्त्री०) [भाष्+अ+टाप्] ०बोली, वाक्वचन, वाणी,
भारती।
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