Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 342
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बहल: ०प्रचुर अत्यधिक बहुत भारी, तीव्रतर । ० महान् बड़ा। ० सघन, दृढ़, प्रबल, तीव्र । ० कठोर, शक्तिशाली। } www.kobatirth.org बहल (पुं०) ईख, गन्ना । बहला ( स्त्री०) बड़ी इलायची। यहि (वि०) बाहर (जयो० २ / ३५) बहिर (नपुं०) बाह्य शरीर । बहिरङ्गच्छेदः (पुं०) बाह्य अंग का छेद, दूसरे के प्राणों का विघात - परप्राण व्यपरोपो बहिरङ्गच्छेदः (प्रव०टी० ३/१७) बहिरङ्गणं (नपुं०) अरण्य, जंगल (दयो० १४ ) बहिरङ्गधर्मध्यानं (नपुं०) अनुकूल उत्तम आचरण । बहिरात्मान् (पुं०) बहिरात्मा वह आत्मा जो कि सिद्धि पाना तो दूर अपितु उसे याद तक नहीं करता, बल्कि उसके विरुद्ध रास्ते पर है (हि०सं० ३) (समु० ८ / २१) 'देहं वदेत्स्वं वहिरात्मनामा' (सुद० १३३) ० विभाव परणति को आत्मरूप मानना । ० जिसकी बुद्धि बाह्य शरीर पर केन्द्रित होती है। ‘बहिरात्माऽऽत्वविभ्रान्तिः शरीरे मुग्धचेतसः' (जैन०ल० ८०९) , बहिस् (अव्य० ) [ वह इसुन्] में से बाहर की ओर से, बहिर्गत से । बहिर्गत (वि०) बाहर की ओर गई हुई। (दयो० २६ ) बहिद्वारं (नपुं०) बाह्य द्वल (दयो० ७) बहिर्गतवस्तु (नपुं०) बाह्य क्षेत्र में गई हुई वस्तु । (समु० ७ / ९ ) बहिगंम (वि०) बाहर की ओर जाना। बहिर्धर (वि०) बाहर के क्षेत्र में धारण करने वाला। बहिर्देश (वि०) बाहरी स्थान। बहिर्भवत्व (वि०) बाह्य भाव को उत्पन्न होने वाला। (जयो० १/२४) ७५७ बहिर्मल (वि०) बाह्य मल । बहिर्योग (पुं०) बाहरी क्रिया के योग वाला। बहिर्व्याप्तिः (स्त्री०) साध्य-साधन के अविनाभाव का दर्शन । बहि: पुद्गलक्षेप (पुं०) मर्यादित सीमा से बाहर कंकरादि का फेंकना। बहिः शम्बुका (स्त्री०) गोचर भूमि । वहिश्चित (पुं०) बाह्यचित्त (मुनि० २३ ) बहिष्कार : (पुं०) अलग करना, निकालना। (वीरो० ११ / ३८) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुज्ञानं बहिष्कृ (पुं०) निकालना, बाहर करना। (वीरो० २/१८) अपि कुर्याद् बहिष्कारं मत्सरादेरिहात्मनः (वीरो० ११ / ३८) बहिष्कृत देखो ऊपर। बहिस्थितः (स्त्री०) बाह्यक्षेत्र में स्थित (वीरो० २/११) बाहिर अवस्थित । शिखावलीढाभ्रतयाऽप्यटूटा वहि: स्थिता नूतमधान्यकूटा। (वीरो० २ / ११) बहु (वि०) ०अधिक, प्रचुर अत्यधिक । ० प्रबल, व्यापक (सुद० १/५, सुद० ११३) ० अनेक, असंख्य, अनल्प (जयो० १८/१७) ० समृद्ध, भरा हुआ, परिपूर्ण । बृहद् विशाल। ० अनुपम, अतिशय (जयो०वृ० ६ / १०९) बहु-शब्द संख्या की प्रचुरता का वाचक है बहुशब्दोहि संख्यावाची वैपुल्यवाची च । (धव० ९ / १४९) बहु अवग्रह: (पुं०) बहुत पदार्थों का एक बार ग्रहण करना। बहुकर (वि०) अधिक क्रियाशीलता । बहुकल्प (वि० ) अनेक प्रकार के कल्पतरु | बहुकल्पपादपः (पुं० ) अनेक प्रकार के कल्पवृक्ष, नानाविध कल्पतरु | बहुकालं (अव्य०) बहुत देर तक बहुत समय तक । बहुकालभाव: (पुं०) अनेक प्रकार के समय से युक्त भाव । बहुकालीन (वि०) पुराना, पुरातन, प्राचीनतम | बहुकूर्च : (पुं०) नारिकेल तरु बहुकृत (वि०) अनेक प्रकार से किया गया। (चीरो० १२/४०) बहुगंधा (स्त्री०) चंपकलता, यूथिका लता । बहुगुणरत्न (स्त्री०) बहुत गुण रूपी रत्न । बहवो ये गुणा एव रत्नानि यस्य तस्माद् राज्ञ एव । बहुगुणान्यनल्परूपाणि रत्नानि मुक्तादीनि यस्मिन् (जयो०वृ० ६/६३) बहुगम्या (वि०) अनेक जनापेक्षित (जयो० ३/६०) अनेक लोगों द्वारा अभिलषणीय । बहुजन्तुक (वि०) बहु जीव वाले, बड़, पीपल, गूलर, अंजीर पिलस्तादि बहुबीजक फल बहुत जीव वाले हैं। (सुद० १२९) बहुजल्प (वि०) मुखरी, वाचाल ०बहुत बोलने वाला। बहुज्ञ (वि०) ०अधिक जानकारी रखने वाला, ०सुविज्ञ, ० विशेषज्ञ, ० ज्ञानी । बहुज्ञानं (वि०) अधिक ज्ञान । For Private and Personal Use Only

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