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प्रायणं
७४०
प्रारम्भः
०अधिकांशता, बहुलता, अधिकता, प्रमुखता। (सुद० ४/१६) ०प्रचुरता, समृद्ध, भरा हुआ। प्रायः शब्दः प्रचारार्थक
प्रायशः सहते य स' (जयो० २७/१३) प्रायणं (नपुं०) [प्र+अय् ल्युट्] प्रवेश, प्रारंभ, शुरू। जीवनपथ।
०ऐच्छिक मरण।
०आश्रय लेना, आलम्बन करना। प्रायणीय (वि०) [प्र+अय्+अनीयर] ०परिचयात्मक, आरंभिक,
दीक्षात्मक। प्रायणीयं (नपुं०) आरंभिक दिवस। प्रायशस् (अव्य०) [प्राय+शस्] ०बहुधा, अधिकतर, अधिकांश।
०बाहुत्य, विशेष रूप से। देवपूजनमनर्थसूदनं, प्रायशो मुखमिवाप्यते दिनम्। (जयो० २/२३) प्रायशो
बाहुल्येन (जयो०७० २/२३) प्रायश्चित्तं (नपुं०) [प्रायस्य पापस्य चित्तं विशोधनं यस्मात्]
प्रायः प्रचुरभावेन चित्तं स्वाध्यायसहित। (जयो०१० २८/९) ०पाप नाश, दोष विमुक्ति।
स्वाध्याय का एक भेद। (जयो० २८/४२) ०प्रयत्ननाश। ०मन से रहित। (जयो०१० २८/४२) प्रमाद दोष परिहार-प्रमाद दोष परिहारः प्रायश्चित्तम्। परिशोध प्रवृत्ति। ०कृतापराध का शमन।
परिशोध, संतोष, सुधार। प्रायश्चित्तप्रद (वि०) प्रायश्चित्त के देने वाले। प्रायश्चित्तानुलोम्यं (नपुं०) लघु, लघुपद अपराधों की
आलोचना। प्रायश्चित्तिः (स्त्री०) आलोचना, सुधार, परिशोधन।
०पापनिवृत्ति।
०कृतापराधविशुद्धि। प्रायस् (अव्य०) [प्र+अय्+असुन्] ०अधिकतर, बहुधा,
साधारणतः। अधिकांशतः।
प्रायात्रिक (वि.) [प्रयाण+ठक्] यात्रा के लिए उपयुक्त होने
वाला। प्रायेण (अव्य०) अधिकतर, बाहुल्यता, साधारणत:/अधिकांशतः। प्रायोग (वि०) [प्रयोग-व्यञ्] प्रयोग संबंधी। प्रायोगगमनमरणं (नपुं०) ०पादोपगमन मरण। स्व और पर
की सेवा से रहित मरण करना। प्रायोगिक (वि०) [प्रयोग+ठक्] प्रयोग से सम्बंध रखने
वाला। (सम्य० ४६)
प्रयुक्त, प्रयुज्यमान। प्रायोगिकबन्धः (पुं०) प्रयोग/योग की विशेषता से होने
वाला बन्ध। प्रायोगिक-भाषात्मकशब्द (नपुं०) पुरुष प्रयुक्त
अक्षरात्मरात्मक और अनक्षरात्मक शब्द। प्रायोगिकलब्धिः (स्त्री०) कर्मों की स्थिति की परिस्थिति।
हीनोऽनुभागोऽपि भवेत्तदेति प्रायोगिकालब्धि। (सम्य० ४६) प्रायोग्य-गमनमरणं (नपुं०) पादोपगमनमरण। प्रायोग्यलब्धिः (स्त्री०) कर्मों की स्थिति को स्थापित करना।
सब कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति को घातकर अन्तः कोडाकोडी प्रमाण में स्थिति में तथा अनुभाग को घातकर द्विस्थान अनुभाग में पापरूप घातियां कर्मों के लता और वृक्ष रूप में अनुभाग में तथा अघातियां कर्मों के नीम और कांजीर
रूप अनुभाग में स्थापित करने का नाम। प्रायोपगमनं (नपुं०) आत्मोपकार का निरपेक्ष भाव। आत्मोपकार निरपेक्ष प्रायोपगमनम्। (ध० २३)
स्व और पर की सेवा-सुश्रूसा से रहित मरण। सपरोवयारहीणं मरणं पाओपगमनमिति। (गो०क० ६१) 'स्व परोपकाररहितं तन्मरणं प्रायोपगमनमिति' (गो०कन्टी०
६१) प्रारब्ध (भूक०कृ०) [प्र+आ+रभ्+ क्त] ०आरंभ किया हुआ,
शुरुआती। प्रारब्धं (नपुं०) व्यवसाय, भाग्य, नियति। प्रारब्धिः (स्त्री०) [प्र+आ+र+क्तिन्] नियति, भाग्य,
व्यवसाय।
आरंभिक क्रिया। ०हस्तिबंधन का खूटा या रस्सी। प्रारम्भः (पुं०) [प्र+आ+र+घञ्] ०आरंभ, शुरु ०मुख।
(जयो०१० २/२३) ०व्यवसाय, व्यापार, कार्य।
सर्वथा।
प्रायाणिक (वि०) [प्रयाण+ठक्] यात्रा के लिए प्रस्थान
करने वाला।
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