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नामस्थापना
५४३
नारी
नामस्थापना (स्त्री०) जिस नाम का स्थान हो।
उत्पन्न होना। नरकेषु भवं नारकमायुः (स०सि० ८/१०) नामस्पर्शः (पुं०) आठ स्पर्श में से किसी एक स्पर्श।
'नरकेषु तीव्र-शीतोष्णवेदनेषु यन्निमित्तं दीर्घजीवनं नामांक (वि.) नाम युक्त, नाम चिह्नित।
तन्नारकायुः' (त०वा० ८/१०) नामानन्तः (पुं०) कारण की अपेक्षा बिना अनन्त नाम। नारकिक (वि०) [नरक+ठक्+इनि] नरक में रहने वाला। नामानुयोगः (पुं०) जो अनुयोग हो उसका नाम। चरित्र से नारंगः (पुं०) [नृ+अगच्] १. संतरे का वृक्ष। (सुद० ७२) चरणानुयोग, वस्तु विवेचन से द्रव्यानुयोग।
आनं नारंगं पनसं वा-२. लम्पट, लालची। नामान्तरं (नपुं०) अपने आप में प्रवृत्त योग।
नारदः (पुं०) [नरस्य धर्मो नारं, तत् ददाति, दा+क] एक नामाभिधानं (नपुं०) नाम विशेष।
विद्वान् नारद और पर्वत नामक विज्ञ बीसवें तीर्थंकर में हुए नामावश्यकः (पुं०) आवश्यक नाम होना।
० नारद मुनि। (जयो०१० २४/१०) नामासंख्यातः (पुं०) असंख्यात संख्या का नाम।
०विरञ्चिपुत्र/श्रीकृष्ण वाभ्यां सहितस्य विरञ्चिपत्रस्य त्वादरस्य नामास्रवः (पुं०) आस्रव नाम होना।
सच्छविं विभर्ति। (जयोवृ० २४/१०) नामोत्तरं (नपुं०) उत्तर नाम युक्त।
० संक्लेश-नारदपर्वतवद्यत् कृतम् भवति तद् द्यूत। (जयो० नामोपक्रमः (पुं०) निकटवर्ती काल का उपक्रम।
२/१२७) नायः (पुं०) [नी+घञ्] नायक, नेता, अभिनेता, मार्गदर्शक ० सन्त, वीणाधारी सन्त। (जयो० १४/१) निर्देशका
नारद-परिव्राजकोपनिषदः (पुं०) नारद की कथावस्तु को ० नीति, उपाय।
प्रस्तुत करने वाला उपनिषद्। (दयो० २४) नायकः (पुं०) [नी+ण्वुल्] मार्गदर्शक, अग्रणी, नेता, अभिनेता। नारसिंह (वि०) [नरसिंह+अण्] नरसिंह से सम्बन्ध रखने वाला। (जयो० ३/९५)
नाराचः (पुं०) [नरान् आचमति नारं आचामति] लोह का बाण। ० गणमान्य, प्रधान, मुखिया। मानवानामग्रणी नायका ० नाराचसंहनन, वज्राकार बन्धन और वलयबन्धन से रहित, (जयो०वृ० ३/९५)
मर्करबन्ध। ० पूज्य व्यक्ति, प्रतिष्ठित व्यक्ति।
नाराचिका (स्त्री०) [नाराच++टाप्] सुनार की तुला, स्वर्णकार ० धीरोदात्त व्यक्ति।
की तराजू। ० निदर्शन की प्रधानता युक्त।
नारायणः (पुं०) त्रिषष्ठि शलाका पुरुषों में प्रसिद्ध नारायण नायिका (स्त्री०) [नायक+टाप्] स्वामिनी, अभिनेत, पुरुष, मुरारि। (जयो०वृ० १४/६६)
०प्रमुखा, (जयो०वृ० ३/११३) विशिष्ट स्त्री, नेतृत्वकर्ती ० श्री कृष्ण नारायण। (मुनि० २४) यो नारायणतां जगाम गणसंघिनी, संचालिका, निर्देशिका।
च हरिः । नारः (पुं०) [न+अण्] जल
नारायणता (वि०) परमात्मपना, परमात्मदशा। नरस्य नारं (नपुं०) नरसमूह, नर-समुदाय।
नारायणताऽऽप्तिहेतोर्जुनर्व्यतीतं भवसिन्धुसेतो। (वीरो० नारजीवनं (नपुं०) सोना।
१४/३२) नारक (वि०) नरकों में रत। नरकों में उत्पन्न।
नारिकरः (पुं०) नारियल, श्रीफल। (जयो० २४/८०) ० जो मनुष्यों को क्लेश पहुंचाते हैं। 'नरान् कायन्तीति । नारी (स्त्री०) [स्त्री जातिः न विद्यते अरिर्यस्या] (जयो० नरकास्तेषु भवा नारकाः' (जैन० ल०६००)
१५/३८) स्त्री, नारी, नर को जन्म देने वाली। (सुद० ० नरकगति में होना 'नरान् प्राणिनः कायति घातयति ११५) जिसके समान नर का दूसरा अरि न हो-तारिसओ कदर्थयति खलीकरोति बाधत इति नरकं कर्म, तस्यापत्यानि णत्थि अरी णरस्स अण्णेत्ति उच्चदे णारी। (भ०आ० नारकाः। (गो०जी०क०टी० १४७)
९७८) नारकगतिः (स्त्री०) नरकों में जाने की गति।
'अन्तर्विषमया नार्यो बहिरेव मनोहराः। नारकानुपूर्वी (स्त्री०) नरकगति के प्रायोग्य का अनुपूर्वी।
परं गुञ्जा इवाभान्ति तुलाकोटिप्रयोजना:।। (जयो० २/१४६) नारकायु (स्त्री०) नरक में दीर्घ समय तक रहना, नरक में या नाम नारीति विभर्ति मे साऽरिभावमायात्यधुना विशेषात्।
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