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नामकरणं
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नामस्तवं
नामकरणं (नपुं०) नाम रखना। नामकरणं करणमिति नामैव,
नाम्नो वा करणं नामकरणम् नामतः करणं नामकरणं (जैन० लं० ५९४)
• नामकरण संस्कार। नामकर्मन् (नपुं०) नामकर्म, जिस कर्म के उदय से शरीर,
संस्थान, संगठन वर्ण, गन्ध आदि की प्राप्ति होती है। • चित्रकार की तरह विविध प्रदेश की प्रवृत्ति। यन्नमयति किलात्मानं नाना नरकादि। पर्यायैः शब्द यति तन्नामकर्म गति वगैरह बियालीस नामकर्म की प्रकृतियों का उदय जो होता है, वह उस उस तरह की साधन सामग्री के साथ इस आत्मा का समागम करा देता
है। (तत्त्वार्थसूत्र पृ० १२७) नामकायोत्सर्गः (पुं०) दोषों के शोधनार्थ कायोत्सर्ग। नामकृतिः (स्त्री०) नाम देना। एक जीव, एक अजीव, बहुत
जीव बहुत अजीव। नामक्षेत्रं (नपुं०) अपने आप में प्रवृत्त होना, जीव-अजीव या
उभय कारणों से निरपेक्ष अपने आप में प्रवृत्त होना। नामग्रहः (पुं०) नामोल्लेख करना, नामोच्चारण, नाम स्मरण
करना।
नामचतुर्विंशति (स्त्री०) नाम से या अक्षरों की पंक्ति से
चतुर्विंशति नाम रखना। नामच्छेदना (स्त्री०) दूसरे से अलग करना, सचित्त-अचित्त
द्रव्यों को दूसरे से अलग करना। नामजातिः (स्त्री०) यथार्थ जाति। (सम्य० १३२) नामजिनः (पुं०) जिन ऐसा शब्द कहना, 'जिणसद्दो णामजिणो
(धव० ९/६) नामजीवः (पुं०) 'जीव' नाम रखना, किसी भी जीवन गुण की
अपेक्षा न करके जीव नाम रखना। नामदिक् (स्त्री०) नाम से दिशा। नामदव्यं (नपुं०) 'द्रव्य' ऐसा नाम रखना। नामधर्मः (पुं०) धर्म संज्ञा देना, धर्म के गुण से रहित का भी
धर्म नाम रखना। नामधारक (वि०) नामधारी, नाममात्र का। नामधारिन् (वि०) नामधारी। नामधेय (वि०) नाम वाला। (जयो०७० ३/६९) स्फुरायमाणं
तिलकोपमेयं किलार्य खण्डोत्तमनामधेयम्। (सुद० १/१४) नामनमस्कारः (पुं०) नाम रूप में नमस्कार। नामनिक्षेपः (पुं०) अतद् गुण वस्तु में न्यास।
० अर्थ के विपरीत संज्ञाकर्म।
० पुरुष के द्वारा किया जाने वाला नामकरण।
० विवक्षित अर्थ से निरपेक्ष नाम। नामनिर्देशः (पुं०) नाम से संकेत। यस्य निर्देश इति नाम
क्रियते, नाम्नो व निर्देशो यथा अयं जिनभद्र इत्याद्यभिधान
विशेषभणनम्। नामपदं (नपुं०) नाम आश्रित पद। नामपदं नाम गौडोऽन्ध्रो
द्रमिल इति। नामपिण्डं (नपुं०) विवक्षा विना नाम। नामपुरुषः (पुं०) पुरुष नाम युक्त। नामपूजा (स्त्री०) अरहंत, सिद्धादि का नामोच्चारण करना। नामप्रतिक्रमणं (नपुं०) आयोग्य नामों के उच्चारण का परिहरण।
अयोग्यनाम्नामुच्चारणं नाम प्रति प्रतिक्रमणम्' (भ०आ०टी०वृ० २७५) नामप्रतिक्रमणं पापहेतुनामातिचारान्निवर्तनं प्रतिक्रमणं-दण्डक- गतशब्दोच्चारणं वा।
(मूला०वृ० १/११५) नामप्रत्याख्यानं (नपुं०) अयोग्य नाम का उच्चारण नहीं
करूंगा, ऐसा विचार। नामप्रमाणं (नपुं०) प्रमाण का नामकरण। नामबन्धः (पुं०) बन्ध नाम विशेष। नामबन्धक (वि०) नाम बन्ध वाला। नामभावः (पुं०) अपने आप में प्रवृत्त भाव। नाममंगलं (नपुं०) अरहंतादि का नाम। 'तत्थ णामंगलं णाम
णिमित्तंतर-णिरवेक्खा मंगलसण्णा' (धव० १/१७) 'तत्र
मङ्गलमिति नामैव नाममङ्गलम्' नामलक्षणं (नपुं०) वस्तु का लक्षित होना। नामलोकः (पुं०) लोक के शुभ-अशुभ का जानना। नामवर्गणा (स्त्री०) 'वर्गणा' शब्द व्यवहार। नामवेदना (स्त्री०) अष्टविध बाह्य अर्थ का आलम्बन न
करना। नामव्रतं (नपुं०) व्रत संज्ञा होना। नामश्रुतं (नपुं०) श्रुत/शास्त्र नाम रखना। नामसत्यं (नपुं०) जो अर्थ सत्य हो, फिर भी नाम रखना। नामसमः (पुं०) नाना रूप से जानना। नामसंक्रमः (पुं०) 'संक्रम' शब्द व्यवहार। नामसंख्या (स्त्री०) जिसकी कोई संख्या हो, एक जीव, दो भाव। नामसामायिकः (पुं०) गुण आदि की अपेक्षा न करके सामायिक
करना। उच्चारण में गुण को महत्त्व देना। नामस्तवं (नपुं०) चौबीस तीर्थंकरों का नाम रूप में स्मरण।
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