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प्रत्यनीकः
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प्रत्यर्थिन्
प्रत्यनीकः (पुं०) प्रत्यनीक दोष, आहार-नीहार आदि के विश्वास, श्रद्धा-प्रत्ययो न पुनः कार्यः कुलीनानामपि
समय गुरुजनों की वन्दना करना। कृतिकर्म के दोषों में स्त्रियाम्। प्रत्ययो विश्वासो न कार्यः (जयो० २/१५१) सत्तरवां दोष। आहारस्स उकाले नीहारस्सावि होइ पडिणीयं' ०संबोध, विचार, भाव, सम्मति। (जैन०ल० ७५२)
जानकारी, अनुभव, संज्ञान। प्रत्यभिज्ञा (स्त्री०) [प्रति+अभि+ज्ञा+अङ्+टाप्] जानना, ०कारण, आधार, निमित्त, साधन। पहचानना।
०प्रसिद्धि, यश, कीर्ति, ख्याति। यह वही है, इस प्रकार का ज्ञान।
पदार्थ प्रतीति, आभास प्रतीयतेऽनेनार्थ इति प्रत्ययः'प्रत्यभिज्ञा स एवायमिति ज्ञानम्' प्रत्यभिज्ञा। तदेवेदं तत्सदृशं ज्ञानकारणं घटादि (जैन०ल० ७५३) इति वा। (जैन०ल० ७५२)
विरुद्धगमक-प्रत्ययो विरुद्धगमनम्। (जयो० १/३१) प्रत्यभिज्ञात (भू०क०कृ०) पहचाना हुआ।
०व्याकरण प्रसिद्ध। प्रत्यभिज्ञानं (नपुं०) [प्रति+अभि+ज्ञा+ल्युट्] ०दर्शन और तिङत प्रत्यय सुप् आदि प्रत्यय, क्रियात्मक तिप, तस्
स्मरण के निमित्त से होने वाला संकल्पनात्मक ज्ञान। आदि प्रत्यय, संज्ञात्मक सुप् और जसादि प्रत्यय (जयो०७० २६/८९) 'दर्शन-स्मरण-कारणकं सङ्कलनं (जयो० २/५२) प्रत्यभिज्ञानं तदेवेदं तत्सदृशं तद्विलक्षणं तत्प्रतियोगीत्यादि। प्रचलन, अभ्यास। (परीक्षामुख ३/५)
शपथ, सौगन्ध उठाना। साक्षी लेना। अनुभवस्मृतिहेतुकं सङ्कलनात्मकं ज्ञानं प्रत्यभिज्ञानम्।' प्रत्यय-कषायः (पुं०) कर्म रूप बन्ध का कारण, कषाय का (न्यायदीपिका ५६)
आधार, कषाय का आश्रया क्रोध वेदनीय कर्म के उदय वस्तु का पूर्वापर काल की व्याप्ति का ज्ञान।
से जीव क्रोध रूप परिणत होता है। जानना, पहचानना।
'पच्चय-कसाओ णाम कोहवेयणीयस्स कम्मस्स उदएण प्रत्यभिज्ञानाभासः (पुं०) सदृश वस्तु में 'वह यही है' इस जीवो कोहो होदि, तम्हा तं पच्चयकसाएण कोहो'
प्रकार के ज्ञान को तथा उसी पदार्थ में यह उसके सदृश (कसाय पा०पृ० २१) है' इस प्रकार के ज्ञान को प्रत्यभिज्ञानाभास कहते हैं। प्रत्ययकारक (वि०) विश्वास पैदा करने वाला। 'सदृशे तदेवेदं तस्मिन्नेव तेन सदृशं, यमलकवदित्यादि प्रत्यय-कारिन् (वि०) विश्वास उत्पन्न करने वाला, श्रद्धाशील, प्रत्यभिज्ञानाभासः'1 (परीक्षा ६/९)
विचारवान्। प्रत्यभिभूत (भू०क०कृ०) [प्रति+अभि+भू+क्त] पराजित, | प्रत्ययक्रिया (स्त्री०) अपूर्व अधिकरण की कल्पना, पापासव जीता हुआ।
रूप क्रिया। प्रत्यभियुक्त (भू०क०कृ०) [प्रति+अभि+युज्+क्त] अभियोग प्रत्ययवत् (वि०) प्रत्ययों की तरह। ०धारणा/विचार के समान। लगाया हुआ।
___०अनुभव युक्त। ०साधन संपन्नता युक्त। प्रत्यभियोगः (पुं०) [प्रति+अभि+युज्+घञ्] अभियोक्ता के प्रत्ययवती (वि०) प्रत्ययों वाली 'ति' आदि प्रत्यय वाली। प्रति दोषारोपण करना, दोष लगाना।
(जयो०वृ० १/३१) श्रद्धेय, विश्वासी। प्रत्यभिवादः (पुं०) [प्रति+अभि+वद् णिच्+घञ्] आपस में प्रत्ययिन् (वि०) [प्रत्यय इनि] विश्वास करने वाला, श्रद्धा नमन करना, परस्पर में अभिवादन।
करने वाला। प्रत्यभिवादनं (नपुं०) परस्पर नमन, नमन करने वाले के प्रति प्रत्यर्थ (वि०) [प्रति+अर्थ+ अच्] उपयोगी, युक्तिसंगत। प्रणम्यभाव।
प्रत्यर्थक (वि०) [प्रति+अर्थ+ण्वुल] विरोधी, प्रतिपक्षी। प्रत्यभिस्कंदनं (नपुं०) [प्रति+भि+स्कन्द्+ ल्युट्] प्रत्यारोप, प्रत्यर्थिन् (वि०) [प्रति+अर्थ+णिनि] प्रतिपथी, विरोधी, शत्रुतापूर्ण। दोषारोपण।
प्रत्यर्थिन् (पुं०) शत्रु, विरोधी, विपक्षी। प्रत्ययः (पुं०) [प्रति इ. अच्] प्रतिनिवृत्तो भवति (वीरो० २/३४) प्रतिद्वन्द्वी, सम, समानता युक्त, जोड़ी का। ०धारणा, निश्चित विश्वास।
प्रतिवादी।
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