Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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प्रसेदिका
७२९
प्रस्थानकालोचित
प्रसेदिका (स्त्री०) वाटिका, छोटा उद्यान।
०आमुख, प्रस्तावना, भूमिका। प्रसेनजितः (पुं०) महावीर शासन काल में दीक्षा को प्राप्त उल्लेख, संकेत, संदर्भ। (जयोवृ० १/६९)
होने वाला राजा प्रसेनजित, जिसकी रानी मल्लिकादेवी थी ०अवसर, समय, ऋतु। प्रसेनिकाकुशलः (पुं०) अनुरंजित करने वाली विद्या।
विषय, शीर्षक। १. अंगुष्ठप्रसेनिका, २. अक्षर प्रसेनिका, ३. प्रदीपप्रसेनिका, ४. | प्रस्तावना (स्त्री०) [प्र+स्तुणिच्यु च्-टाप्] भूमिका, प्रारंभिनी,
शशिप्रसेनिका, ५. सूर्यप्रसेनिका और ६. स्वप्नप्रसेनिका ये आमुख। प्रारम्भिकी, प्राक्कथन। समस्त विद्याएं हैं।
०प्रशंसा, सराहना। प्रसेवः (पुं०) [प्र+सिव्+घञ् प्रसेव+किन्+घञ्] थैला, बोरा, परिचय, सूत्रधार। बोरी, गहरा पात्र।
प्रस्तावित (वि०) [प्रस्तु+णिच्+क्त] ०प्रारंभिक, उल्लिखित, प्रसेवकः (पुं०) बोरा, थैला।
संकेतत। प्रस्कन्दनं (नपुं०) [प्रस्किन्द्+ल्युट्] ०छलांग लगाना, कूद प्रारंभ किया हुआ, शुरू किया हुआ। जाना, उछलना।
इंगित। विरेचन, जुलाब, अतिसार।
प्रस्तिरः (पुं०) पर्णशय्या, पुष्पशय्या। प्रस्कन्न (भू०क०कृ०) [प्रस्किन्द्+क्त] ०पतित, गिरा हुआ। | प्रस्तीतः (पुं०) [प्र+स्त्यै+क्त] कोलाहल करने वाला, ०छलांग लगया गया।
शब्दायमान। ०पार किया गया।
प्रस्तुत (भू०क०कृ०) [प्रस्तु+क्त] फैलती हुई, व्यापक होने प्रस्कन्नः (पुं०) जातिवहिस्कृत।
वाली। 'समन्तादाप्तशाखाय प्रस्तुताऽस्मै सदा स्फीतिः।। ०पापी, दुष्ट।
(सुद० ८२) प्रस्कुन्दः (पुं०) [प्रगतः कुन्दं चक्रम्] गोलाकार वेदी।
घटित, उपागत, प्राप्त। (जयो०वृ० १/३) प्रस्खलनं (नपुं०) [प्र+स्खल+ल्युट्] लड़खड़ाना, डगमगाना, निष्पन्न, कृत, कार्यान्वित। गिर जाना, पतन।
विचाराधीन, विचारणीय। प्रस्तरः (पुं०) [प्र+स्तृ+अच्] पर्णशय्या।
आरंभ की गई। पुष्पशय्या, पर्यंक, खटिया।
प्रस्तुतं (नपुं०) उपस्थित विषय, विचारणीय विषय। समतल शिखर।
प्रस्थः (पुं०) एक प्रमाण विशेष। ०प्रस्तर, चट्टान, पत्थर, पाषाण। (जयो० २/१२)
साढ़े बारह पलों का एक प्रस्था ०मूल्यवान्, रत्न प्रस्तर।
चार कुद्रव प्रमाण माप। प्रस्तरणं (नपुं०) [प्र+स्तृ+ल्युट्] ०पर्यंक, खटिया, पलंग।
समतल भूमि-इन्द्रप्रस्था शय्या, विस्तरण, बिछौना।
प्रस्थ (वि०) [प्र+स्था क] जाने वाला, दर्शन करने वाला, प्रस्तरोच्चयः (पुं०) पाषाण समूह। (जयो० ४/३८)
पालन करने वाला। प्रस्तारः (पुं०) [प्र+स्तृ+घञ्] पुष्पशय्या, पर्णशय्या।
यात्रा पर जाने वाला, फैलाने वाला। पलंग, खाट, खटिया।
दृढ़, स्थिर। फैलाना, विस्तृत करना।
प्रस्थम्पच (वि०) [प्रस्थ+पच्+अच्] प्रस्थमात्र, पकाने वाला। आच्छादित करना।
प्रस्थानं (नपुं०) [प्र+स्था ल्युट] प्रयाण, गमन। ० चपटी सतह, समतल स्थान।
(जयो० ३/१०६) वनस्थली, अरण्य, जंगल।
कूच करना, विहरण। (जयो० ३/३४) एक छन्द विशेष।
०मरण, मृत्य, विनाश। प्रस्तावः (पुं०) [प्रस्तु+घञ्] ०आरंभ, शुरु।
प्रस्थानकालोचित (वि०) उचित काल में प्रयाण। (जयो०वृ० रचना, कृति। (जयो०वृ० १/६२) (जयो० १/२)
१२/३६)
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