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देवश्रुत
४९१
देव्या
देवश्रुत (नपुं०) दिव्य श्रुत, उत्तम शास्त्र।
१. तेषामाधेर्दायकत्वान्निषेधकत्वादित्येकः प्रकारः। आप देवश्रुतः (पुं०) नारद।
कुबुदेवताओं को आधि-मानसिक व्याधि देने वाले हैं, देवसभा (स्त्री०) सुधर्मा सभा।
'पुंस्याधिर्मानसीव्याथा' इत्यमरः (जयो०वृ० २४/९) देवसदृश (वि०) देवों के समान।
२. अक्षाणामिन्द्रियाणां देवशब्द-वाच्यानां येऽर्था विषयास्तेभ्यो देवसमूहः (पुं०) देव व्यूह, देववृंद। (जयो०वृ० ५/१९) भूतस्य संजातस्याधेश्चिकित्सकत्वादिति द्वितीयः प्रकारः। देवसात् (अव्य०) देवों की प्रकृति के समान।
आप इन्द्रिय वाचक देवों के विषयों से प्राणिमात्र के देवसेना (स्त्री०) १. इन्द्र की इन्द्राणी, २. एक राज कुमारी। चिकित्सक हैं अर्थात् इन्द्रिय विषयों को प्राणियों को देवसेव्य (वि०) शुद्ध सेवन करने योग। 'देवैऋषिभिः सेव्यं सुरक्षित करते हैं। 'देवो राज्ञि मेघे देवं स्यादिन्द्रिये मतम्'
ग्रहणयोग्यं तदनवशेषमन्नम् आहरतु' (जयोवृ० २/१०८) इति विश्वलोचन (जयो०७० २४/८९) देवस्थानं (नपुं०) १. धर्मशाला। (दयो० ४२) २. देवालय, ३. इन्द्रादिभिर्देवैश्च त्वं स्तुत्य इत्यतो देवानामधिदेव इति--आप मन्दिर, मूर्तिस्थान, देव की प्रतिमा का स्थल।
इन्द्रादि देवों द्वारा स्तुत्य हैं उन सबसे श्रेष्ठ होने के कारण देवांघ्रिसेवा (स्त्री०) देवों की चरण सेवा। 'तव देवांघ्रिसेवां देवाधिदेव हैं।
सदा यामि त्विति कर्त्तव्यता भव्यताकामी' (सुद० ७३) देवाधिदेवत्व (वि०) परम देवता पना से युक्त। देवांशः (पुं०) १. देवस्थान। 'उपपुरे पुरसमीपभागे दीव्ये देवाधिपः (पुं०) इन्द्र।
मनोहरे वस्तुनि स्थाने तेनैव देवेन देवांशे स्फुरद्। (जयो०वृ० देवान्नं (नपुं०) उत्तम आहार, शुद्ध भोजन, सात्विक, भोजन। ३/७१) २. देव का एक अवतार।
विधिवत् बनाया गया भोजन। देवाङ्गना (स्त्री०) अप्सरा, देव की प्रिया।
देवाभीष्ट (वि०) देवताओं का प्रिय। देवागमः (पुं०) १. देवों का आगमन, २. द्वादशाङ्गाभिधान देवरः (पुं०) पति का भाई।
(जयो० २२/८४) ३. देवागम नामक स्तोत्र, जो आचार्य देवारण्यं (नपुं०) इन्द्र उद्यान। समन्तभद्र द्वारा रचा गया है। इसका अपर नाम आप्तमीमांसा देवार्चनं (नपुं०) देवपूजा। ‘देवानां पूजनं देवपूजनम्' भी है। (जयो० २२।८४, वीरो० ४/३९, २/५) 'किञ्च इष्टदेवार्चनमस्तु' (जयो०१० २/२३) शान्तिवर्मा नाम समन्तभद्र आचार्यस्तस्य भावस्तया।' देवायु (पुं०) देव में उत्पत्ति, देव की आयु। (सम्य० १२०) (जयो०वृ० ३/६३) देव देवागमनाम स्तोत्र (जयो०वृ० देवावसयः (पुं०) देवालय, देवस्थान, पवित्रस्थले। ३/७७) ४. देवस्थिति।
देवावर्णवादः (पुं०) देवों के दोषों का कथन। देवागमसम्भूत (वि०) देवों के आगमन से बनी हुई, देव ने देविक (वि०) दिव्य, देवगुणों से युक्त। देव से प्राप्त।
आकर बनायी, देव सम्पादित। 'मण्डपशाला देवस्यागमेन देविका (स्त्री०) रानी। (वीरो० १५/४६) सम्भूता सुरसम्पादिता।' (जयो०७० ३/७७)
देविकाधिकारिणी (स्त्री०) अधिकारिणी (जयो० २३/२९) देवागम-स्तोत्रः (पुं०) आचार्य समन्तभद्र प्रणीत स्तोत्र। देवी (स्त्री०) [दिव्+अच् डीप] देवी, अधिष्ठात्री देवी। १.
'देवागमनामस्तोत्रस्योपरि कृता, अकलङ्क नामकस्याचार्यस्य रानी (सुद० ८५, जयो० १/१) २. प्रशंसनीय, दिव्य। पूर्विकापि विद्यानन्द स्वामिना व्यावर्णितास्ति' (जयो०वृ० (सुद० १/४६)
देवीय (वि०) देवी संबंधी। (सुद० ४/३८) देवागारः (पुं०) देवालय।
देवोत्तरदेशः (पुं०) देवकुरु और उत्तरकुरु नामक देश। (जयो० देवाचल: (पुं०) मेरुगिरि। (जयो०वृ० २४/४)
२४/७) देवातिदेवः (पुं०) इन्द्र।
देवेज् (वि०) देवताओं की पूजा। देवाधिदेवः (पुं०) सर्वदर्शी, सर्वज्ञ। ०देवों के देव। देवेज्यः (पुं०) वृहस्पति।
0 सबसे श्रेष्ठ। ०त्वां मनुजा महापुरुषा देवाधिदेवमिति | देवेन्द्रः (पुं०) देवताओं का राजा, इन्द्र। (दयो० २८) मनन्ति/स्तुवन्ति तदधुना त्रिधा त्रिप्रकारं ये वास्तवेन देवा न | देवेशः (पुं०) देवों की स्वामी, इन्द्र। भवन्ति किन्तु संसारिणः स्वार्थवशेन यान् देवा इति कथयन्ति। देव्या (पुं०) देवता। (जयो० ५/४७)
३/७७)
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