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अनुमान प्रमाण
८५ ____ यदि इन विकल्पों से अतिरिक्ति कोई और विकल्प माना जाता है, तो उनका निर्वचन न हो सकने पर उनका बोध ही नहीं होगा। व्याप्ति के लक्षण में स्वाभाविक पद का प्रयोग करने पर उपर्युक्त रीति से व्याप्ति के लक्षण को अनुपपत्ति होती है, इस बात को आचार्य भासर्वज्ञ ने जान लिया था । अतः उन्होंने व्याप्ति के लक्षण में स्वाभाविक शब्द का प्रयोग न कर स्वभावतः पद का प्रयोग किया, जिससे वह उपर्युक्त विकल्प दोषों से बच सके ।
• अविनाभावनिश्चय की सामग्री साध्यसाधन के अविनाभाव का ज्ञान किससे होता है इस पर विचार करते । भासर्वज्ञ ने कहा है कि केवल अनुमान से अविनाभाव का ज्ञान नहीं हो सकता क्योंकि अविनाभावज्ञापक अनुमान में अविनाभावरूप व्याप्तिज्ञान की आवश्यकता होगी, उनका ज्ञान दूसरे अनुमान रो, दूसरे अनुमान में भी अविनाभावरूप व्याप्ति ज्ञान के लिये तीसरा जनुमान मानना होगा। इस प्रकार अनवस्था दोष होगा।' केरल बोर बोर अनेक स्थानों पर अग्नि के साथ साथ धूमदर्शनरूप भूयोदर्शन प्रत्यक्ष से भी धूप और अग्नि की अविनाभावरूप व्याप्ति का ज्ञान सम्भव नहीं । क्योंकि भूयोदर्शन का अर्थ य दे धूमाग्निविषयय अनेक दर्शन है, तो वे अनेकदर्शन दृष्ट धूमाग्निविषयक हो हैं अथवा अशेष अग्निधूमविषयक ? अशेषविषयक मानने पर देशकलाभेद से घूम व अग्नि व्यक्तियों की अनन्तता के कारण सहस्र कल्पों में भी समस्त धूमाग्निविषयक दर्शन संभव नहीं होगा तथा अशेप धूमाग्नि व्यक्तियों के सम्बन्ध का ग्रहण न होने पर कि पी धूम का अग्नि से विनाभाव भी हो सकता है, इस व्यभिचाराशंका की निवृत्ति नहीं हो सकेगी, क्योंकि प.थिव वस्तु में हज बार लोहच्छेद्यता देखने पर भी कोई पार्थिव वस्तु लोहच्छेद्य नहीं है, इत्याकारक व्यभिचाराशंका की निवृत्ति नहीं होती और उसके अभाव में 'यत्र यत्र पार्थिवं वस्तु तत्र तत्र लोहच्छेद्यत्वम' इत्याकारक व्याप्ति बन सकती। यदि प्रत्येक धूम तथा अग्नि के साहचर्य का दर्शन अग्नि धूमविषयक है, तो एक दर्शन से ही अशेष धूमाग्निविषयक व्याप्तिज्ञान हो जाने से दर्शनों को सार्थकता नहीं रहेगी।'
व्याप्तिग्रहण के विषय में भासर्वज्ञाचार्य का स्वमत अन्य दा निकों के व्याप्तिग्रहण सम्बन्धी मतों का निराकरण करते हुए आचार्य भासर्वज्ञ ने कहा है कि प्रत्यक्ष से व्याप्ति का ग्रहण होता है । 'यत्र धूमस्तत्राग्निः, यत्र अग्न्यभावस्तत्र धूमाभावः, यह अविनाभाव कहलाना है और इस अविनाभाव का ग्रहण अग्निसहित (महानसादि) और अग्निरहित (महानदादि) देशों से सम्बद्ध, विस्फारित चक्षुरिन्द्रिय के द्वारा प्रथम बार ही हो जाता है । 1. न्यायभूषण, पृ. २१६ 2. वही, पृ. २१६-२१७ 3. वही, पृ. २१८
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