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अनुमान प्रमाण
यहां जीवित शरीर के निरात्मक होने पर अप्राणादिमत्व की प्रसक्ति द्वारा प्रसंगविपर्ययरूप प्राणादिमत्व हेतु अभिप्रेत है । अतः प्रसंग (तक) को द्वार बनाना निरर्थक है। जैसे-यदि जीवित शरीर निरात्मक हो, तब अप्राणादिमत्त्व की प्रसक्ति हो जायेगी। इसके विपरीत जीवित शरीर का प्राणादिमत्त्व अनुभूतिसिद्ध है। अतः जीवित शरीर निरात्मक नहीं, अपितु सात्मक ही है-इस प्रकार प्रसंगवाक्य के अर्थ का उसके विपर्यय में पर्यवसान का निश्चय किया जाता है । निष्कर्ष यह है कि समस्त प्रसंग प्रसंगविपर्यय में पर्यवसित होकर प्रमिति में उपादेय होते हैं। प्रसंग. विपर्यय का अनुमान प्रयोग इस प्रकार होगा-जीवित शरीर सात्मक हैं, प्राणादिमान् होने के कारण । जो सात्मक नहीं होता, वह प्राणादिमान नहीं होता । जैसेलोष्टादि । यह अप्राणादिमान् नहीं है, अतः सात्मक है ।।
हेत्वाभासनिरूपण न्यायशास्त्राभिमत षोडश पदार्थो में हेत्वाभासों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यद्यपि हेत्वाभास निग्रहस्थान नामक पदार्थ में अन्तर्भूत हैं, तथापि प्रयोजनवश उनका पृथक् निदेश किया गया है। न्यायभाष्कारने निग्रहस्थानों से हेत्वाभासों के पृथक् कथन का प्रयोजन वादकथा में उनकी स्वीकृति बताया है। भासर्वज्ञ ने विशेष लक्षण निरूपण द्वारा हेत्वाभास के भेदप्रपंच का परिज्ञान प्रयोजन बतलाया है, हेत्वाभासों के भेदप्रपंच का ज्ञान अनुमाता में नैपुण्य का जनक है।
गंगेशोपाध्याय ने हेस्वाभाससामान्य का निर्वचन करते हुए हेत्वाभास शब्द की दो प्रकार से व्युत्पत्ति की है- हेतोराभासः' तथा 'हेतुवद् आभासते इति हेत्वाभासः', जैसाकि तार्किकशिरोमणि गदाधर भट्टाचार्य ने गादाधरी में कहा है-'ननु हेतुवदा. भासन्ते इति व्युत्पत्त्या हेस्वाभासपदस्य दुष्ट हेतुपरत्वाद्,.. अन्यविधव्युत्पत्त्या हेत्वा. भासपदस्य हेतुदोषपरत्वम् ...। प्रथम व्युत्पत्ति से हेत्वाभास हेतु दोष का तथा द्वितीय व्युत्पत्ति से दुष्ट हेतु का बोधक है । धर्मकीति आदि बौद्धों के अनुसार हेत्वाभास का सामान्य लक्षण 'असाधनांगवचनत्वम्' हे अथात् जो साध्यसाधन के उपयोगी न हो, ऐसे हेतु का कथन हेत्वाभास है।
न्यायभाष्यकार के अनुसार भासर्वज्ञ ने हेत्वाभाससामान्य को असद्धेतुपरक मानकर 'हेतुलक्षणरहिताः हेतुवदाभासमानाः हेत्वाभासाः'' यह लक्षण किया है। हेत्वाभाससामान्य का यह लक्षण प्राचीन तथा मध्यकालिक न्यायशास्त्रीय अन्य ग्रन्थों में भी प्रायः इसी रूप में मिलता है।
1. निग्रहस्थानेभ्यः पृथगुपदिष्टा हेत्वाभासा: वादे चोदनीया भविष्यन्तीति ।-न्यायभाष्य, १1१1१. 2. विशेषलक्षणप्रपंचद्वारेण हेत्वाभासानां भेदप्रपंचप्रतिपत्त्यर्ष निग्रहस्थानेभ्यः पृथगुपदेश इति मतं मे।
-न्यायभूषण, पृ. ७१ 3. गादाधरी, द्वितीय भाग, पृ. १५००-१५८१
4. न्यायसार, पृ.७.
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