Book Title: Bhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Ganeshilal Suthar
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 258
________________ परवती' ग्रन्थकारों... २४३ परवर्ती दर्शनवाङ्मय पर भासर्वज्ञ के प्रभाव के परिज्ञानार्थ ये उद्धरण प्रबल प्रमाण हैं । तर्कभाषाप्रकाशिकाकार चिन्नंभट्ट आदि ग्रन्थकारों ने कतिपय विषयों के प्रतिपादन के पश्चात् भासर्वज्ञमत को प्रमाणत्वेन उपन्यस्त किया है। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि वे ग्रन्थकार भासर्वज्ञमत से प्रभावित हैं, उसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं। जिन ग्रन्थकारों ने भासर्वज्ञमतों को केवल उद्धृत किया है, उससे भी यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि भासर्वज्ञाचार्य एक प्रौढ़ दार्शनिक के रूप में उन्हें मान्य थे । इसीलिये भासर्वज्ञमत पर उन्होंने गम्भीरतापूर्वक विचार किया और अपने मतवादों की सुरक्षार्थ नये तर्को की उद्भावना की। भासर्वज्ञकृत आलोचना से उन्हें अपने पूर्वपरीक्षित सिद्धान्तों पर पुनः अन्वीक्षण करने के लिये बाध्य होना पड़ा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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