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अनुमान प्रमाण
होती है । अतः 'घटवत्' उदाहरण अव्याप्त्यभिधान दोष से युक्त है । अव्याप्त्यभिधान को भासर्वज्ञ शब्ददोष मानते हैं । अन्य आचार्य भी ऐसा मानते हैं, परन्तु कतिपय अन्य आचार्य इसे दोष नहीं मानते, क्योंकि सभी शास्त्रों में' 'घटवत्' इस रूप से दृष्टान्तप्रयोग पाया जाता है । अतः यदि प्रत्यक्षादि प्रमाण से मूर्तत्व व अनित्यत्व की व्याप्ति सिद्ध है, तब तो 'अनित्यः शब्द कार्यत्वात् घटवत' इस अनुमान में कार्यत्व व अनित्यत्व को व्याप्ति की तरह मूर्तत्व तथा अनित्यत्व की व्याप्ति भी वन सकती है । किन्तु प्रत्यक्षादि प्रमाण द्वारा मूर्तत्व तथा अनित्यत्व की व्याप्ति सिद्ध न होने पर केवल ' यद्यन्मूर्त तत्सर्वमनित्यं यथा घटः' यह वचन व्याप्ति का बोधन नहीं करता ।
६. विपरीतव्याप्त्यभिधान :
'यदनित्यं तन्मूर्त दृष्टम् | यह विपरीत व्याप्त्यभिधानरूप शब्ददोष है, क्योंकि 'यत्र यत्र धूमस्तत्र तत्र अग्निः ' इस रूप से साधनानुवादपूर्वक साध्य का विधान व्याप्ति में होता है, जिससे कि साध्यसिद्धि में साधन का सामर्थ्य प्रतिपादित हो सके । 'यो योऽग्निमान् स धूमवान्' इस प्रकार व्याप्ति का विपरीत अभिधान करने पर धूम में अग्नि की व्याप्ति प्रतीत नहीं होती और उसकी प्रतीति न होने पर व्याप्त धूम पर्वत में अग्नि को सिद्ध करने में असमर्थ रहता है । इस प्रकार पूर्वोक्त साध्यविकलादि चार अर्थदोष तथा अञ्याप्त्यभिधान व विपरीतव्याप्त्य भिधान रूप दो शब्ददोष मिलकर ६ साधम्र्योदाहरणाभास हैं ।
वैषम्यदाहरणाभास
६ प्रकार के साधर्म्यादाहरणाभासों की तरह ६ प्रकार के ही साधनाव्यावृत्तादि वैधम्र्योदाहरणाभास हैं । उनका उदाहरण 'अनित्यं मनो मूर्तत्वात्' है ।
१. साधनाव्यावृत्त :
' यत्तु नित्यं तन्मूर्तमपि न भवति, यथा- परमाणु: ।' यहां साधनमूर्तत्व दृष्टान्त परमाणु से व्यावृत्त नहीं है ।
२. साध्याव्यावृत्त :
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यत् नित्यं तत् मूर्तमपि न भवति यथा कर्मेति ।
यहाँ साध्य अनित्यत्व कर्म से व्यावृत्त नहीं है ।
३. उभयाव्यावृत्त :
यन्नित्यं तन्मूर्तमपि न भवति यथा घटः ।
यहाँ साधन और साध्य दोनों हो दृष्टान्त घट से व्यावृत्त नहीं हैं । अर्थात् घट में मूर्तत्वरूप साधन तथा अनित्यत्व रूप साध्य दोनों की सत्ता है ।
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