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न्यायसार कथन न करना प्रसंगसम है । जैसे-'शब्दः अनित्यः कृतकत्वात् घटवत्' इस शब्दानित्यत्वसाधक अनुमान में दृष्टान्तभूत घट की अनित्यता में किसी दृष्टान्त का न बतलाना प्रसंगसम जाति है। क्योंकि घट की अनित्यता में कारण अर्थात् दृष्टान्त बतलाये बिना घट में ही अनित्यता की सिद्धि नहीं, तब उसके दृष्टान्त से शब्द में अनित्यता कैसे सिद्ध हो सकती है?
प्रतिदृष्टान्त के द्वारा साध्य का प्रतिषेध प्रति दृष्टान्तसम जाति है। जैसे-वादी 'शब्दोऽनित्यः कृतकत्वात् घटवत्' इस अनुमान द्वारा घट दृष्टान्त उपन्यस्त कर कृतकत्व हेतु से शब्द में अनित्यत्व सिद्ध कर रहा है। किन्तु 'शब्दः नित्यः श्रोत्र. ग्राह्यत्वात्' इस अनुमान द्वारा शब्दत्वरूप प्रतिदृष्टान्त पूर्व अनुमान द्वारा साध्य अनित्यत्व का प्रतिषेध करता है। क्योंकि घटादि दृष्टान्त से शब्द अनित्य ही हो और शब्दत्वदृष्टान्त से नित्य नहीं, ऐसा मानने में कोई विशेष कारण नहीं दीखता।
न्यायसार में प्रसंगसम और प्रतिदृष्टान्तसम का निरूपण नहीं किया गया है। इस विषय में स्पष्टीकरण करते हुए भासर्वज्ञ ने न्यायभूषण में कहा है कि प्रसंगसम में साध्यसम से कोई विशेषता नहीं ।' साध्यसम की तरह प्रसंगसम में भी दृष्टान्त घट को साध्य ही मान लिया जाता है। अतः केवल नाम का भेद है । इसी प्रकार प्रतिदृष्टान्तसम साध्यसम व वैधय॑सम से अविशिष्ट है, उनमें नाममात्र का भेद है। क्योंकि साधर्म्यसम व वैधर्म्यसम में भी प्रतिदृष्टान्त के द्वारा साध्य का प्रतिषेध या अभाव बतलाया जाता है तथा जाति के कतिपय भेदों के निरूपण की प्रतिज्ञा की है न कि उसके समस्त भेदों के निरूपण को। अतः इनका निरूपण न करने पर भी किसी प्रकार प्रतिज्ञा की हानि नहीं है।
प्रसंगसम जाति दोष का उद्धार सूत्रकार ने 'प्रदीपोपादानप्रसंगविनिवृत्तिवत्तद्धिनिवृत्तिः' इस सूत्र द्वारा किया है । जिस प्रकार घटादि के प्रकाशन के लिये उपादीयमान प्रदीप के स्वप्रकाश होने से उनके प्रकाशनार्थ अन्य प्रदीप का उपादान अपेक्षित नहीं होता, उसी प्रकार दृष्टान्त में अनित्यत्वादिधर्मसिद्धि के लिये अन्य दृष्टान्त की अपेक्षा नहीं, क्योंकि उसमें अनित्यता को सिद्धि अन्य दृष्टान्त के बिना प्रत्यक्ष प्रमाण से ही सिद्ध है और प्रत्यक्ष में किसी दृष्टान्त की आवश्यक्ता नहीं।
प्रतिष्टान्तसम दोष का उद्धार सूत्रकार ने 'प्रतिदृष्टान्तहेतुत्वे च नाहेतर्दृष्टान्तः'। इस सूत्र के द्वारा किया है । अर्थात् प्रतिवादी ने वादी के अनुमान में प्रतिदृष्टान्त का कथनमात्र किया है, किन्तु दृष्टान्त में किसी प्रकार के दोष का उद्भावन नहीं किया । अतः दृष्टान्त निर्दुष्ट है और वह साध्य कः साधक है। प्रतिदृष्टान्त के कथनमात्र से दृष्टान्त साध्य का असाधक नहीं हो सकता ।
1. न्यायभूषण, पृ. ३४७ 2. न्यायसूत्र, ५/१/१०
3. वही
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